✍ दिलीप बेतकेकर
अभावग्रस्त नियोजन
युद्ध के लिए केवल सेना और शस्त्र का होना ही पर्याप्त नहीं। केवल इन्हीं के आधार पर युद्ध में विजय प्राप्त नहीं होती। केवल धन और कल्पना के आधार पर उद्योग-व्यापार में यश प्राप्त नहीं होता है। साधन-सामग्री भरपूर हो परन्तु नियोजन ठीक न हो तो अपेक्षित सुयश नहीं मिलता है। इस हेतु व्यवस्थापन, उचित नियोजन ये महत्त्वपूर्ण घटक होते हैं।
हम यदि अपना नियोजन नहीं करेंगे, अपने आपको ‘मैनेज’ नहीं करेंगे तो बाकी अन्य लोग हमें ही नियोजित-मैनेज करने लगेंगे ये ध्यान रखने योग्य पहलू है। विद्यार्थी होने के नाते किन बातों का नियोजन आवश्यक है? सबसे महत्वपूर्ण घटक है समय का नियोजन! महत्वपूर्ण होने के कारण इसका विस्तृत विवेचन करेंगे –
किसी एक शालेय वर्ष (सत्र) का विचार करें तो उस सत्र के लिए एक निश्चित अभ्यास क्रम, पाठ्य क्रम तय होता है। इसमें से थोड़ा थोड़ा, टुकड़ों टुकड़ों में पाठ्यंश कक्षा में पूर्ण करते हैं। क्रमवार इसे शिक्षक कक्षा में पूर्ण करते हैं। ये हुआ शिक्षक द्वारा नियोजन। अब हमें अपना भी नियोजन करना। है। अध्ययन के लिए अपनाई गई पद्धति दूसरे विषय के लिए भी उतनी ही उपयुक्त होगी यह आवश्यक नहीं। इस हेतु किस विषय के लिए कौन सी पद्धति अपनाई जाए, कौन सा पूरक साहित्य, सामग्री की आवश्यकता होगी, किस समय, किस विषय को, किसकी सहायता ली जाए, इन सबका विचार पूर्वक निश्चय करना ही नियोजन कहलाता है।
बहुत से कार्य छोटे-मोटे होते हैं, उनसे दूर भागना भी उचित नहीं। बस आवश्यकता प्रधान्य क्रम तय करने की! योजना बनाना तो आसान है परन्तु उसका क्रियान्वयन करना उतना ही कठिन।
Plans are only good intentions until you carry them out.
इसीलिए –
Plan the work, and work the plan.
ये सूत्र ध्यान में रखना चाहिए।
टी.वी.
इस संदर्भ में क्या लिखें? कोई इसे ड्राइंग रूम का दैत्य कहते हैं, तो कोई इसे इडियट बाक्स कहकर बुलाते हैं। एक बात तो सोचने योग्य है कि यदि टी.वी. एक इडियट बॉक्स है तो उसके समक्ष घंटों गुजार देने वालों को क्या कहेंगे! सुपर इडियट ही न! कई लोग कितना समय टी.वी. देखने में निकाल देते हैं, ये वे तय कर सकते हैं न!
टी.वी. को ‘अध्ययन की बाधा’ बोलने वाले बहुत लोग हैं; परन्तु ग्रवचो मार्क्स टीवी को ऐसे कहते हैं – T.V. has played great part in my education. Whenever somebody turns it on, I leave the room and read a book. (मेरी शिक्षा में टी वी की भूमिका महत्वपूर्ण रही है, जब भी कोई टी. वी. शुरू करता था, मै वहां से उठ जाता था और कहीं जाकर कोई पुस्तक पढ़ने लगता था।) किसी का चलता हुआ टी.वी. तो बंद नहीं कर सकते परन्तु स्वयं उठकर कहीं जाकर अपना अधिक महत्तवपूर्ण कार्य अवश्य कर सकते हैं।
टी.वी. के प्रतिकूल परिणामों को देखते हुए कई लोगों ने लिखा भी है। डॉ. अलका वाडकर द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘टी वी आणि मुलं’ (मराठी में) शिक्षक, पालक और बालकों के लिए पठनीय है। टी.वी. के चलते उत्सर्जित किरणें मस्तिष्क को हानि पहुंचती हैं, मन और शरीर के लिए भी हानिकारक है।
एफ. एल राइट के अनुसार- टेलीविजन आंखों के लिए च्युइंग गम है।
टीवी की एक धनात्मक विचारधारा भी है, उस ओर कोई गंभीरता पूर्वक नहीं देखता। कई टीवी चैनल्स उपयोगी, ज्ञान देने वाले, जानकारी उपलब्ध कराने वाले भी हैं। उदाहरण – डिस्कवरी, नैशनल जियोग्राफिक आदि। परन्तु इन्हें देखने वाले कम ही लोग हैं। समाचार शुरू होते ही लोग उठकर चाय, नाश्ता अथवा भोजन के लिए जाना पसंद करते हैं। टीवी को शुरू-बन्द करने हेतु, आवाज कम-अधिक करने हेतु, चैनल बदलने हेतु…….. अर्थात टीवी को नियंत्रित करने हेतु रिमोट होता है। आजकल तो किसका रिमोट कंट्रोल किसके हाथ में है यह प्रश्न सामने आता है।
प्रेक्षकों के हाथ टी.वी. का ‘रिमोट कंट्रोल’ या टी.वी. के हाथ में प्रेक्षकों का कंट्रोल?
अध्ययन के कुछ शत्रुओं को हमने पहचाना। संस्कृत विद्वानों ने छः प्रकार के दोष (विकार अथवा शत्रु कहें) ऐश्वर्य की इच्छा रखने वालों के लिए निषेधात्मक बताया गया है:-
अफसोस, छह दोषों से युक्त व्यक्ति को यहां हारना पड़ता है जो सुख की इच्छा रखता है। नींद उनींदापन भय क्रोध आलस्य लंबे धागे।
षड् दोषा: पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता।।
(निद्रा, तंद्रा (ऊंघना), भय, क्रोध, आलस्य और शिथिलता ये छह दोष हैं)
अभी तक देखे गए ये दोष कहां होते हैं? वे कहां बसते हैं, कहां स्थित हैं? वे कहीं बाहर नहीं होते, वे हम सब में ही उपस्थित हैं। अर्थात मैं स्वयं ही मेरा शत्रु और स्वयं ही मेरा मित्र!
हेनरी फोर्ड कहते थे – आप आपकी सहायता करने वाले हाथों को खोज रहे हैं क्या? यह हाथ तो आपके अपने पास ही हैं!
ये हाथ किसी दूसरे के नहीं, अपने स्वयं के हैं।
अपना हाथ जगन्नाथ !!
(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)
और पढ़ें: अध्ययन के शत्रु – 2
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