समरसता की सुधा

✍ गोपाल माहेश्वरी सुधांशु पाठक सायं चार बजे अपना कुर्ता पायजामा पहने कांधे पर झोला लटकाए अकेले निकल पड़ते अपने विद्या मंदिर की गोद ली सेवाबस्ती…

छोटे-छोटे श्रवण कुमार

✍ गोपाल माहेश्वरी रागिनी और रोहित के माता-पिता दोनों कर्मचारी हैं दोनों बच्चे विद्यालय जाने के समय के अतिरिक्त अपनी बूढ़ी दादी मां के पास…

आषाढ़ का वह दिन

✍ गोपाल माहेश्वरी आषाढ़ मास आरंभ हो चुका था। गरमियों का सूनेपन से ऊब चुका आकाश इस माह कभी भी चित्र-विचित्र छोटे-बड़े बादलों से भर…

आरती

✍ गोपाल माहेश्वरी “आरती! जरा गाय को  चारा डाल दे, भूखी होगी।” माँ ने कहा। “अभी डाल देती हूँ माँ!” आरती लगते जेष्ठ को चौदह…

नई संवत् की नई भोर

✍ गोपाल माहेश्वरी नवल और किसलय नववर्ष की तैयारियां करने में जुटे थे। हुआ यह कि अनके पिताजी का स्थानांतरण होने से वे इस महानगर…

प्रह्लाद की होली

✍ गोपाल माहेश्वरी रंगों का पर्व होली आते ही बच्चों के मन में बहुत ही उल्लास छाया हुआ था। रंग, गुलाल, पिचकारी की होड़ तो…

विश्वहित का अनुसंधान यज्ञ

✍ गोपाल माहेश्वरी उनके सामने मिट्टी की दो मटकियां, एक बड़े से कटोरे जैसे पात्र में बारीक छनी हुई मिट्टी का गाढ़ा घोल और कपड़े…

रामलला के धाम

✍ गोपाल माहेश्वरी “दादी! हम नहीं चलेंगे अयोध्या जी!” सात वर्ष के राघव ने शाला से लौटते ही पूछा। “चलेंगे जब राम जी बुला लेंगे।”…

भारतीय ज्ञान परंपरा

✍ गोपाल माहेश्वरी “गुरुदेव! प्रणाम।” अनिरुद्ध ने बैठक कक्ष में प्रवेश कर सामने बैठे हुए अपने शिक्षक विद्वांस जी के चरण स्पर्श किए। “आओ आओ…

अंदर के दीपक

✍ गोपाल माहेश्वरी वीर ने जैसे ही दीपक जलाए हवा के झोंके ने बुझा दिए। उसने फिर जलाए, फिर ऐसा ही हुआ। तीसरी चौथी बार…