कोठारी आयोग और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020

✍ प्रोफेसर रवीन्द्र नाथ तिवारी

यह सार्वभौमिक सत्य है कि किसी भी राष्ट्र के समग्र विकास के लिए सदैव शिक्षा का स्थान सर्वोपरि रहा है। शिक्षा किसी भी समाज में निरंतर चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य मनुष्य की आंतरिक शक्तियों का विकास तथा व्यवहार को परिष्कृत किया जाता है। प्राचीन काल में भारत शिक्षा का वैश्विक केंद्र था तथा तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, बल्लभी, उज्जयिनी, काशी आदि विश्वविद्यालय शिक्षा एवं शोध के प्रमुख केन्द्र थे तथा यहां कई देशों के शिक्षार्थी ज्ञानार्जन के लिए आते थे। प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति अतिसमृद्ध थी तथा इसका उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के दर्शन को जीवन में अंगीकृत करते हुए भारतीय सनातन संस्कृति के मूल तत्व सर्वे भवन्तु सुखिनः के आधार पर जीवन का निर्वहन किया जाता था। गुरुकुल शिक्षा के प्रमुख आधार स्तंभ थे। वर्तमान में प्रचलित शिक्षा प्रणाली मूलतः मैकाले की देन थी जिसके तहत भारत के उच्च तथा मध्यम वर्ग के एक छोटे से हिस्से को शिक्षित करना था ताकि ऐसा वर्ग तैयार हो जो रंग से भारतीय हो लेकिन विचारों एवं नैतिकता में अंग्रेज हो। वास्तव में जिस शिक्षा प्रणाली से हम अभी तक शिक्षा प्राप्त कर रहे थे वह यूरोप केन्द्रित थी।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त भारत सरकार ने देश की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुरुप उच्च शिक्षा के पुनर्गठन के लिए सर्वप्रथम 1948 में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (राधाकृष्णन आयोग) का गठन, तत्पश्चात 1952 में माध्यमिक शिक्षा (मुदालियर शिक्षा आयोग) के पुनर्गठन हेतु माध्यमिक शिक्षा आयोग गठित किया। इसी अनुक्रम में 14 जुलाई 1964 को  कोठारी आयोग का गठन किया गया तथा दौलत सिंह कोठारी इस आयोग के अध्यक्ष थे। कोठारी आयोग ने भारत में शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए 23 सिफारिशें दी थीं। इन सिफारिशों में मौजूदा शिक्षा प्रणाली में दोष, शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण के तरीके, पाठ्यपुस्तक, पाठ्यक्रम, शैक्षिक संरचनाएं और मानक, छात्रों का शारीरिक कल्याण, महिलाओं की शिक्षा, मार्गदर्शन और परामर्श, पर्यवेक्षण एवं निरीक्षण की समस्याएं, त्रिभाषा सूत्र, दूरस्थ शिक्षा, चयनात्मक प्रवेश, व्यावसायिक शिक्षा, नैतिकता और धर्म पर शिक्षा, विश्वविद्यालय स्वायत्तता, शिक्षक की शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, विश्वविद्यालय के उद्देश्य, लक्ष्य और कार्य, प्रशासनिक समस्याएं, कार्य अनुभव, उच्च शिक्षा में नामांकन और मूल्यांकन शामिल थे। सिफारिशों में शिक्षा का उद्देश्य लोगों के जीवन की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं से जोड़कर राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करना था। इसके लिए पाँच मुख्य बिंदुओं वाली योजना बनाई गई। इस योजना में स्कूलों में विज्ञान शिक्षा को महत्वपूर्ण बनाना, यह सुनिश्चित करना कि सभी बच्चे उपयोगी कौशल सीखें, शिक्षा और सामुदायिक सेवा के माध्यम से लोगों को एक साथ लाना, बच्चों को दूसरों के प्रति निष्पक्ष और दयालु होना सिखाना, देश के विकास में सहायता करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करना और बच्चों को अच्छे मूल्य सिखाना शामिल था। इसका लक्ष्य प्रत्येक व्यक्ति को अपना सर्वश्रेष्ठ बनने में सहायक होकर देश को श्रेष्ठ बनाने में सहायता करना था।

आयोग द्वारा 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने तथा राज्य स्तर पर त्रिभाषा फार्मूला अपनाने की अनुशंसा भी की गयी। इसका उद्देश्य हिंदी भाषी राज्यों में दक्षिणी राज्यों की एक भाषा को बढ़ावा देना था। इसका उद्देश्य गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी, अंग्रेजी और एक क्षेत्रीय भाषा को बढ़ावा देना था। कोठारी आयोग ने क्षेत्रीय भाषाओं, संस्कृत के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं, अधिमानतः अंग्रेजी को बढ़ावा देने की अनुशंसा की थी। शिक्षकों के लिए अनुकूल और पर्याप्त सेवा शर्तें उपलब्ध कराने तथा उन्हें अपने निष्कर्षों को संचालित करने और प्रकाशित करने के लिए आवश्यक स्वतंत्रता प्रदान करने की भी अनुशंसा की गई थी। सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए कोठारी आयोग ने बालिका शिक्षा, पिछड़े वर्गों की शिक्षा, जनजातीय लोगों की शिक्षा, शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग बच्चों की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया। गणित और विज्ञान को शिक्षा का अभिन्न अंग बनाने की अनुशंसा की थी। आयोग ने स्नातकोत्तर स्तर के अनुसंधान, प्रशिक्षण, पर्याप्त पुस्तकालयों, प्रयोगशालाओं और धन उपलब्ध कराने पर विशेष ध्यान देकर विश्वविद्यालय स्तर पर शिक्षा में सुधार के लिए सुधारों की अनुशंसा की।

कोठारी आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर बनायी गयी 1986 की शिक्षा नीति मानव मूल्य, रोजगारपरकता, समग्र विकास और अन्य उद्देश्यों में सफल नहीं रही। उच्च शिक्षा में विषयों का कठोर विभाजन, मूल्यांकन संबंधी समस्याएं, शोध केंद्रित न होना आदि समस्याएं उच्च षिक्षा मे विद्यमान थीं। भारत के शिक्षा संस्थान वैश्विक स्तर की रैंकिंग में उच्चतम 10 में नहीं थे। इन सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में 2017 में एक समिति बनायी गयी जिसने 2019 में अपना ड्राफ्ट सार्वजनिक किया। इस समिति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर रिपोर्ट सौंपी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में, 1986 की शिक्षा नीति की तुलना में अधिक व्यापक और आधुनिक दृष्टिकोण अपनाया गया है। इसमें न केवल शिक्षा की गुणवत्ता और समावेशिता पर ध्यान दिया गया है, बल्कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक सुधार भी शामिल हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य भारत को विश्व के अग्रणी देशों के समकक्ष लाना तथा शिक्षा को भारत केंद्रित करना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में अपनी जड़ों से जुड़ने की प्रमुख पहल दिखायी देती है जो भारत के परम्परागत ज्ञान के पुनर्स्थापन का आग्रह रखती है। इस नीति द्वारा देश में विद्यालय और उच्च शिक्षा में परिवर्तनकारी सुधारों की अपेक्षा की गई है। इसके उद्देश्यों के तहत वर्ष 2030 तक विद्यालयी शिक्षा में 100 प्रतिशत सकल नामांकन अनुपात के साथ-साथ पूर्व-विद्यालय से माध्यमिक स्तर तक शिक्षा के सार्वभौमीकरण का लक्ष्य रखा गया है। विद्यालयीन शिक्षा हेतु बाल वाटिका में गुणवत्ता ईसीसीई, निपुण भारत, परीक्षा सुधार तथा कला-एकीकृत शिक्षा, खिलौना आधारित शिक्षा शास्त्र जैसे अभिनव शिक्षण पहल बेहतर अधिगम परिणामों एवं बच्चों के समग्र विकास के लिए अपनाई जा रही हैं। बहुविध शैली (मल्टी मॉडल) शिक्षा हेतु स्वयं, दीक्षा, स्वयं प्रभा, वर्चुअल लैब्स तथा अन्य ऑनलाइन संसाधन पोर्टलों पर प्रवेश एवं छात्र पंजीकरण में तीव्र वृद्धि देखी गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत वर्ष 2030 तक सकल नामांकन अनुपात को 100 प्रतिशत लाने का लक्ष्य रखा गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में 5+3+3+4 डिज़ाइन वाले शैक्षणिक संरचना का प्रस्ताव किया गया है, जो 3 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों को शामिल करता है। इसमें पाँच वर्ष की फाउंडेशनल स्टेज, तीन वर्ष का प्रीपेट्रेरी स्टेज, तीन वर्ष का मध्य (या उच्च प्राथमिक) चरण और चार वर्ष का उच्च (या माध्यमिक) चरण शामिल हैं। इसके तहत ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’ की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है, जिससे वर्ष 2025 तक कक्षा-3 स्तर तक के बच्चों के लिए आधारभूत कौशल सुनिश्चित किया जाएगा। भाषायी विविधता का संरक्षण, पाठ्यक्रम और मूल्यांकन संबंधी सुधार, शिक्षण व्यवस्था से संबंधित सुधार, उच्च शिक्षा से संबंधित प्रावधान, डिजिटल शिक्षा से संबंधित प्रावधान, पारंपरिक ज्ञान-संबंधी प्रावधान और वित्तीय सहायता के प्रावधान राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शामिल हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में उच्च शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन का उल्लेख है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बहुविषयक संस्थान अध्ययनरत विद्यार्थियों को 1 वर्ष में सर्टिफिकेट, 2 वर्ष में डिप्लोमा, 3 वर्ष में डिग्री तथा 4 वर्ष पूर्ण करने पर मास्टर डिग्री प्रदान करेंगे। वर्ष 2035 तक सकल नामांकन अनुपात 50 प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। वर्ष 2030 तक प्रत्येक जिले में अथवा उसके समीप कम से कम एक बहुविषयक उच्चतर शिक्षा संस्थान स्थापित होगा। वर्ष 2040 तक सभी वर्तमान उच्चतर शिक्षा संस्थानों का उद्देश्य अपने को बहुविषयक संस्थानों के रूप में स्थापित करना होगा। उच्च शिक्षा में एक साथ दो डिग्री (यूजी, पीजी या डिप्लोमा) प्राप्त करने का अवसर, एकेडमिक बैक आफ क्रेडिट (एबीसी) की स्थापना भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों के बीच सहयोग के लिए विनियम तैयार करना और स्नातक छात्रों को स्नातक के बाद पीएचडी करने की अनुमति दी जाएगी। इनका मुख्य उद्देश्य शिक्षा की एक बहु-विषयक प्रकृति को बढ़ावा देना है जिसमें विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, वाणिज्य, कला और मानविकी के बीच कोई निश्चित सीमा नहीं है। यह उद्देश्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के साथ भी मजबूती से जुड़ा हुआ है जो छात्रों को अपनी पसंद का रास्ता अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेगा।

अनुसंधान, ऊष्मायन एवं स्टार्ट-अप की संस्कृति निर्मित करने हेतु राष्ट्रीय शिक्षा नीति के साथ गठबंधन नवाचार उपलब्धि पर संस्थानों की अटल रैंकिंग ऑफ इंस्टिट्यूशंस ऑन इनोवेशन अचीवमेंट (आरआईआईए) प्रारंभ की गई है। भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने हेतु दीक्षा मंच पर शिक्षण सामग्री 33 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराई गई है। एनआईओएस ने माध्यमिक स्तर पर भारतीय सांकेतिक भाषा (आईएसएल) को भाषा विषय के रूप में पेश किया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति शोध के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन की बात करती है। स्नातक स्तर से ही शोध क्षेत्र में रुचि रखने वाले विद्यार्थियों को इस हेतु प्रेरित करने की बात कही गयी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति अनुसंधान की गुणवत्ता हेतु एक व्यापक दृष्टिकोण को लागू करने की बात करती है। इस हेतु एनआरएफ (नेशनल रिसर्च फाउंडेशन) के गठन किया गया है। इसका व्यापक लक्ष्य विश्वविद्यालयों में शोध की संस्कृति को बढ़ावा देना होगा। उत्कृष्ट शोध हेतु अन्तर विषयक शोध के साथ साथ वर्तमान समय में शैक्षणिक संस्थान, उद्योग एवं प्रयोगशालाओं में समन्वय की अनिवार्य आवश्यकता है। इसके साथ-साथ विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में शोध संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु अनवरत प्रयास की भी आवश्यकता है।

इससे यह स्पष्ट है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त भारतीय शिक्षा प्रणाली में ‘स्व’ का तंत्र स्थापित करना है। सरकार द्वारा पारित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य भारत केंद्रित, समाज पोषित, विकेंद्रित, लचीली और रसमय शिक्षा उपलब्ध कराना है। निश्चित रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 स्वामी विवेकानन्द, सुभाष चन्द्र बोस, दीन दयाल उपाध्याय, रवीन्द्र नाथ टैगोर तथा महर्षि अरविन्द के सपनों को साकार करते हुये भारत को परम वैभव राष्ट्र तथा जगतगुरु बनाने में महती भूमिका निभायेगी।

(लेखक भारतीय शिक्षण मंडल महाकौशल प्रांत अनुसंधान प्रकोष्ठ के प्रांत प्रमुख हैं।)

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