राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में भारतीय भाषाओं की प्रासंगिकता

✍ डॉ. कुलदीप मेहंदीरत्ता

भारतीय भाषा दिवस
एक प्राचीन राष्ट्र के रुप में भारत, विविध भाषाओं का अद्भुत सामाजिक मिश्रण है, जहाँ बड़े लंबे समय से भारत के समाज ने अपनी भाषाई विविधता को अपनी संस्कृति के एक महत्त्वपूर्ण पहलू के रूप में विकसित किया है। देववाणी संस्कृत, क्लासिक तमिल आदि साहित्यिक समृद्ध भाषाओं से लेकर स्थानीय बोलियों के रूप भारत के बहुभाषी और बहुरंगी स्वरूप को प्रकट करते हैं। कुछेक राजनीति आधारित अपवादों को छोड़कर भारतीय भाषाओं में परस्पर संवाद तथा संवर्धन की दीर्घकालीन परम्पराएँ रही हैं। भाषा का विकास समाज और संस्कृति के विकास से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। भारत की आध्यात्मिक और धार्मिक चेतना ने भारत की इन सभी भाषाओं के परस्पर जुडाव में केंद्रीय भूमिका निभाई है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी 2020) ने भारत के शैक्षिक परिदृश्य में भारतीय भाषाओं के पहचानने, स्वीकारने और उनके प्रसार को लक्षित किया है। प्रत्येक विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास में भारतीय भाषाओं विशेषकर मातृभाषा के महत्व पर बल देते हुए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति उस महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है जो एक मातृभाषा एक विद्यार्थी की संज्ञानात्मक क्षमताओं, सांस्कृतिक समझ और शैक्षिक आधार को आकार देने में निभाती है।

प्रत्येक देश ने अपनी मातृभाषा में शिक्षण व्यवस्था के माध्यम से ही विकास के नये नये प्रतिमान स्थापित किये हैं। औपनिवेशिकवाद और साम्राज्यवाद के शिकार देशों में बहुत से देशों ने अंग्रेजी भाषा में शिक्षा व्यवस्था तो की, लेकिन उसके सामाजिक और सांस्कृतिक दुष्परिणाम भुगतने पड़े। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 स्वीकार करती है कि किसी भी विद्यार्थी के जीवन में मातृभाषा न केवल उसकी शिक्षा का मजबूत आधार होती है बल्कि यह विद्यार्थी की अपनी संस्कृति और गौरव से जुडाव कर आत्मविश्वास का करती है।

अनुसंधान और शैक्षणिक अध्ययनों ने प्रारंभिक शिक्षा में मातृभाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका को निरंतर सिद्ध किया है। मातृभाषा विद्यार्थी के जीवन के शैक्षिक आधार के रूप में कार्य करती है जिससे साक्षरता, विचार-क्षमता, विश्लेषण क्षमता और आलोचनात्मक दृष्टि को संपोषित किया जा सकता है। शिक्षा के इन मूलभूत पहलुओं के अलावा, प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर कम उम्र से ही अपनी मातृभाषा के संपर्क में आने से उसमें कई भाषाओं को समझने की क्षमता शीघ्र विकसित होती है, जिससे विद्यार्थी को एक अधिक समावेशी ज्ञान और विविध भाषाई कौशल को प्राप्त करने का अवसर मिलता है। इसके अतिरिक्त, मातृभाषा एक विचार-सेतु के रूप में कार्य करती है, जो बच्चों को उनकी सांस्कृतिक विरासत से अधिक निकटता से जोड़ती है। यह कक्षा के भीतर संवाद और सक्रिय भागीदारी में आत्मविश्वास पैदा करता है, जिससे छात्र की समाज में जुड़ाव और अपनेपन की भावना मजबूत होती है।

हालाँकि, भारत में शैक्षिक परिदृश्य को लंबे समय से भारतीय भाषाओं के शिक्षण और सीखने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। ये चुनौतियाँ राजकीय और प्रशासनिक स्तर पर, औपनिवेशिक मानसिकता और अंग्रेजी भाषा के पक्षधरों, नौकरशाही और अंध हिंदी विरोध के कारण उत्पन्न हुई। लेकिन इन सब गतिविधियों का प्रभाव हिंदी से इतर विभिन्न भारतीय भाषाओं पर भी पड़ा और उनकी समृद्धि भी प्रभावित हुई। इसके अतिरिक्त वरीयताओं के आधार पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा संसाधनों तक पहुँच में असमानताओं ने भी समाज में एक प्रकार के शैक्षणिक विभाजन को जन्म दिया है, जिससे ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्र असमान रूप से प्रभावित हुए हैं और उन्हें शिक्षा प्रणाली में नुकसान हुआ है। इसे स्वीकार करते हुए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में मातृभाषा को ध्यान शिक्षकों के लिए प्रावधानों और मातृभाषा में सीखने की सामग्री की रूपरेखा तैयार की गई है, जिसका उद्देश्य एक अधिक समावेशी शैक्षिक वातावरण बनाना है जो वंचित समूहों को लाभान्वित करता है। छात्रों को तीन या अधिक भाषाओं को सीखने का विकल्प प्रदान करना विभिन्न अवसरों के लिए दरवाजे खोलता है।

भारतीय भाषा उत्सव

भारतीय भाषाओं का पुनरुद्धार और सुदृढ़ीकरण, हमारी भारतीय संस्कृति के शास्त्रों में विद्यमान अंतर्निहित प्राचीन ज्ञान प्रणालियों के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। भारतीय भषाओं से हिंदी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद, ज्ञान तथा भारतीय संस्कृति के संरक्षण और प्रसार की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है परन्तु इन प्राचीन भाषाओं की बारीकियां और समृद्धि अक्सर अनुवाद में खो जाती है, जिससे भारतीय भाषाओं का पुनरुद्धार, इस विपुल सांस्कृतिक थाती की अद्यतन व्याख्याओं और प्रासंगिकता के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। यह पुनरुद्धार न केवल दार्शनिक और वैज्ञानिक अवधारणाओं की गहरी समझ को बढ़ावा देता है, बल्कि जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक मुद्दों जैसी आधुनिक चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए इन सदियों पुरानी प्रणालियों का दोहन करने में भी सहायता करता है।

रोजगार/ स्वरोजगार सृजन करने की दृष्टि से, भारत की विभिन्न भाषाओं से विभिन्न प्रकार के कार्यों, व्यवसायों, विशेषकर डिजिटल युग में सेवा क्षेत्र में बहुत सी सेवाओं को जोड़े जाने की आवश्यकता है। मातृभाषा में शिक्षा तथा भारतीय भाषा आधारित द्वि/ त्रि/ बहुभाषी शिक्षा, व्यक्ति की रचनात्मकता, अभिव्यक्ति और कार्यक्षमता और व्यवसाय के प्रति दृष्टिकोण को महत्वपूर्ण और सकारात्मक रूप से बढ़ाती है। यह व्यक्ति में विभिन्न प्रकार के कौशलों का विकास करती है, इसके अतिरिक्त भारतीय भाषाओं और मातृभाषा का अधिकाधिक उपयोग मानविकी, साहित्य और उद्यमिता के विभिन्न क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देता है। इसके अलावा, यह क्षेत्रीय नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान देता है, नए विचारों और समाधानों के लिए एक उपजाऊ भूमि को तैयार करता है।

इन भाषा-केंद्रित पहलों के साथ प्रभावी ढंग से आगे बढ़ने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। विभिन्न भाषाओं में निपुण गुणवत्ता वाले शिक्षकों की भर्ती और प्रशिक्षण सर्वोपरि है। वर्तमान परिदृश्य में, विशेषकर कोरोना संकट के बाद ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली का सारे विश्व में प्रचार-प्रसार हुआ है। भारत भी इस प्रक्रिया से अछूता नहीं रहा है। प्रमुख भारतीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तकों, कहानियों और शैक्षिक ऐप विकसित करने से शिक्षा संस्थानों के लिए व्यापक शिक्षण संसाधन सुनिश्चित किये जा सकते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं को डिजिटली संरक्षण तथा भंडारण के लिए अनेक प्रावधान किये गये हैं।

इसके अतिरिक्त, स्थानीय समुदायों के साथ सक्रिय जुड़ाव, बिखरे हुए या संकलित साहित्य को एकत्र करना और भाषा मूल्यांकन उपकरणों पर अनुसंधान को बढ़ावा देना इसकी ओर लिए गये कुछ महत्वपूर्ण कदम हैं। इस परिवर्तनकारी शैक्षिक दृष्टिकोण के लिए व्यापक भागीदारी और समर्थन प्राप्त करने के लिए भाषा दक्षताओं से जुड़ी कैरियर की संभावनाओं पर प्रकाश डालना और संरक्षण व परिवर्धन अभियानों को बढ़ावा देना आवश्यक है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में उल्लिखित शैक्षिक ढांचे में भारतीय भाषाओं की मान्यता और संवर्धन न केवल सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करता है, बल्कि भारत में अधिक समावेशी, अभिनव और जुड़े हुए शैक्षिक परिदृश्य का मार्ग भी प्रशस्त करता है।

(लेखक विद्या भारती विद्वत परिषद के अखिल भारतीय संयोजक है एवं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र-हरियाणा में राजनीति शास्त्र के सहायक प्रोफेसर है।)

ये भी पढ़े: शिक्षा, भाषा और शिक्षा की भाषा – भाग एक

Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *