राष्ट्र चेतना, सांस्कृतिक गौरव एवं हिन्दुत्व चिंतन की प्रधानता है सावरकर जी के लेखन में

 – रमेश शर्मा स्वातंत्र्यवीर विनायक सावरकर का पूरा जीवन राष्ट्र चेतना और सांस्कृतिक गौरव की पुनर्प्रतिष्ठा के लिये समर्पित रहा। बालवय से जीवन की अंतिम…

नागार्जुन के साहित्य में भारतीयता

 – डॉ. सुनीता कुमारी गुप्ता कई दिनो तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास। चमक उठी घर भर की आखें, कई दिनों के बाद। मानव के…

राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी का साहित्य दर्शन

 – शिरोमणि दुबे कोई चलता पद चिह्नों पर, कोई पद चिह्न बनाता है। जो राहों को खुद गढ़ता है, वही युगों तक गाया जाता है।…

लज्जाराम तोमर कृत ‘भारतीय शिक्षा के मूल तत्व’

✍ डॉ. पिंकेश लता रघुवंशी कहते हैं किसी भी स्थान की प्रकृति को नष्ट करना है, तो उस स्थान पर प्रवाहित जल स्रोतों में विष…

बंकिम चन्द्र का साहित्य दर्शन

✍ डॉ. कुलदीप मेहंदीरत्ता बंकिम चन्द्र चटर्जी का नाम सुनते या पढ़ते ही प्रत्येक भारतीय को वन्दे मातरम का स्मरण हो आता है, मानो दोनों…