21वीं शताब्दी का शिक्षक

 ✍ किशन वीर सिंह शाक्य

21वीं शताब्दी का शिक्षक हमारी कल्पना में कुछ विशेष है क्योंकि 21वीं शताब्दी में हमारे लिए करने के लिए अनेक कार्य शेष हैं। भारत एक विविधताओं वाला विशाल देश है जहां 25 करोड़ से अधिक विद्यार्थियों के लिए विज्ञान एवं तकनीकी ने ज्ञान के असंख्य द्वार खोले हैं। 21वीं शताब्दी का शिक्षक परम्परा के अनुसार पुस्तकों से ही शिक्षण नहीं कर सकता, अपितु शिक्षण के अद्यतन प्रयोगों को करने की महती आवश्यकता हो गयी है। विद्यार्थियों में अपार क्षमताएँ एवं योग्यताएँ विद्यमान है। हमें उनको समुचित अवसर प्रदान करना है। आज छात्र छात्राओं की इच्छाएं एवं महत्वाकांक्षाएं आकाश से भी ऊँची है और शिक्षक अभी भी औपनिवेशिक मानसिकता के धरातल पर खड़ा है। अतः 21वीं शताब्दी के शिक्षक का व्यक्तित्व कैसा हो? इसका चिन्तन आवश्यक है।

शिक्षक जाने शिक्षा का मर्म। शिक्षक माने शिक्षण का धर्म।

शिक्षक छात्र को समझायें कम, समझे ज्यादा। शिक्षक जाने भारत की मर्यादा।

शिक्षक विश्व को एक गाँव समझे। 21वीं शताब्दी की मांगे समझें।

शिक्षक कक्षा को परिवार बनायें। शिक्षक नित नूतन प्रयोग करायें।

प्रत्येक छात्र की पृथक योजना बनायें। शिक्षक स्वयं उदाहरण बनें।

उचित तकनीकी को अवश्य चुनें।

(1) शिक्षा

  1. “Education is what remains when you forget what you have been target.” -Albert Einstein

जो कुछ पढ़ा है या पढ़ाया गया है उस सब को भूल जाने पर जो शेष बचे वह शिक्षा है। इस शेष फल में जो बचता है वह शिक्षक का अनुभव, शिक्षक की विधि, व्यवहार, प्यार, भावना प्रयोग और संवेदनाएं जिन्होंने बच्चे को कुछ बनाया है।

  1. 2. “The Soul of the education is the education of soul.” -Ravindra Nath Tagore

शिक्षा की आत्मा, आत्मा की शिक्षा है नव छात्र में अपना जो कुछ है वह सब परम पिता की चेतना है। इसका सही आभास शिक्षक ही करा सकता है।

  1. “While educating the minds of the youths. We should not forget to educate their hearts.” -Dalai Lama

जब हृदय पढ़ाना होता है तब साधन कम शिक्षक की साधना ही अधिक कार्य करती है, शिक्षक बिना कुछ बोले ही हृदय से हृदय की बात कर लेता है।

  1. “What you think you become, what you feel, you attract, what you imagine you learn.” -Lord Budha

अर्थात् Imagination is education जब शिक्षक छात्रों की कल्पनाशीलता, प्रश्नों का उत्तर देने, प्रश्न करने की स्वतन्त्रता देता है तब सही शिक्षा प्राप्त होती है।

  1. “I am not a teacher. But an awakener.” -Robert Frost

जब शिक्षक जागरूकता लाने वाला हो जाता है तब वह व्यक्तित्व के विकास के लिए सभी आवश्यक बातें सिखाता है। इसके बाद जीवन में न अभाव रहता है और न तनाव।

महापुरुषों के प्रेरक वाक्यों के माध्यम से मैंने शिक्षा का वास्तविक अर्थ बताने का प्रयास किया है। प्रत्येक शिक्षक इस प्रकार की चार-पाँच परिभाषाओं को अपने जीवन का अंग बनाएं तो शिक्षण में आनन्द आयेगा।

(2) शिक्षक एक धर्म

धर्म का अर्थ है स्वभाव अर्थात् जीवन जीने की कला। शिक्षक अपने स्वभाव से सीखता है, सिखाता है तब ही राष्ट्र निर्माता कहलाता है। आचार्य चाणक्य ने कहा है-

“Teaching is the training of country and love of nation.” -Acharya Chanakya

जब आचार्य चाणक्य की यह शिक्षा एक शिक्षक को समझ में आ जाती है तो उसका प्रत्येक कार्य राष्ट्र के लिए समर्पित हो जाता है। शिक्षक ज्ञान का दाता नहीं निर्माता है अतः वह ज्ञान से नवीन ज्ञान बनाने की प्रक्रिया अपनाता हैं जब शिक्षण स्वभाव बन जाता है तो सेवा शर्तें नहीं केवल पढ़ाने की शर्त शेष रह जाती है। अपने देश में अनेक शिक्षक हुए हैं जिन्होंने शिक्षण धर्म को पूरे जीवन निभाया है।

(3) छात्राओं को समझाएं कम, समझें अधिक

21वीं शताब्दी का छात्र अप्रतिम क्षमता का धनी है, उसको समझकर वर्तमान का शिक्षक अपनी समझ बढ़ा सकता है। उदाहरण के लिए शिक्षण संस्थाओं में छात्रों की उपस्थिति कम हो रही है। यदि हम प्रत्येक छात्र को समझकर उसकी प्रतिभा के अनुसार केवल दो-तीन मिनट की प्रस्तुति कक्षा-कक्ष में ही करा जाएं तो सुनाने वाले आयेंगे, सुनने वाले भी आयेंगे। उपस्थिति शत-प्रतिशत हो जाएगी। जब हम छात्र को वहीं परम्परागत पढ़ायेंगे तो छात्र अनुपस्थिति की नयी परम्परा बनायेंगे ही। छात्रों को समझने के लिए शिक्षक को जागरूकता का केन्द्र बनना पड़ेगा। समझने के लिए व्यक्तिगत वार्ता, व्यक्तिगत सहयोग, सहज स्नेह आदि को प्रयोग में लाना चाहिए। शिक्षक का जीवन नियमों का नहीं अपितु जीवन में नियम हों। जब छात्रों को अधिगम में बराबर का भागीदार बनायेंगे तो शिक्षार्थी शिक्षक को और शिक्षक शिक्षार्थी को समझ पायेंगे।

(4) शिक्षक जाने भारत की भाषा और ज्ञान परम्परा

NEP 2020 के विजन का पहल वाक्य ही इस ओर स्पष्ट संकेत करता है। “NEP 2020 incision an education system rooted in Bhartiya ethos, contributes nation Bharat sustainably into an equitable vibrant knowledge society by providing quality education to all.”

जब शिक्षक जीवंत ज्ञान से सभी को पूरित कर एक सतत् भारतीय ज्ञान को शिक्षा के माध्यम से पहुँचाने का कार्य करेंगे तो प्रत्येक विषय में प्रत्येक पाठ के लिए भारतीय ज्ञान सन्दर्भों का संकलन सम्पन्न करेंगे और उसे समयानुकूल बनाकर कक्षा में प्रस्तुत करेंगे। भारत ज्ञान भारत की भाषाओं में हमारे छात्रों को भास्कर भगवान की तरह छात्रों को भास्वित करेगा।

(5) शिक्षक भारत को ज्ञान का वैश्विक केन्द्र बनाएं

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारत को Global Super knowledge power बनाने का दृष्टिकोण दिया गया है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विश्व की सूचनाओं और आवश्यकताओं से परिचित होकर शिक्षक Atal Innovation Mission जैसे नवाचारी अभियानों के माध्यम से छात्रों को विश्व स्तर पर अपनी प्रतिभाओं को दिखाने का अवसर प्रदान करें। वैश्विक ज्ञान के लिए केन्द्र एवं राज्य स्तर पर ATL के माध्यम अनेक प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है। इन नवाचारी, वैज्ञानिक, गणितीय ज्ञान पर आधारित विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं के लिए छात्रों को तैयार करना।

(6) 21वीं शताब्दी के कौशल अपनाएं

विश्व स्तर पर सभी छात्रों एवं शिक्षकों को सीखने के लिए अधिगम कौशलों का विकास किया गया है जिनके प्रयोग से हम अच्छा सीख सकते हैं –

  1. Collaboration 2. Creativity 3. Critical Thinking 4. Communication

इन चार कौशलों को कक्षाकक्ष का अंग बनाकर शिक्षक अपने शिक्षक को प्रभावी बना सकते हैं। इन कौशलों को व्यवहार में लाने के लिए शिक्षक एवं शिक्षार्थी को कुछ नया करने का अवसर मिलता है।

(7) मेरा विद्यालय मेरा परिवार

शिक्षक अपने विद्यालय को अपना परिवार, अपनी कक्षा को अपना घर और अपने विद्यार्थी को अपना पुत्र/पुत्री समझेंगे तो घर, परिवार, स्वच्छ, व्यवस्थित, संस्कारित तथा ज्ञान से सम्पन्न होगा ही। परस्पर स्नेह, आत्मीय सम्बन्ध, मन की बात कहने का वातावरण और साहस प्रदान करेंगे। हमारे छात्रों को तनाव, दबाव अथवा अवसाद जैसी कोई समस्या नहीं होगी। सब सभी का सम्मान करेंगे और नये ज्ञान का सृजन करेंगे।

(8) शिक्षक नित नूतन नवाचार करें

The teacher of yesterday and the teacher of today will not be the teacher of tomorrow. यह बात 21वीं शताब्दी के शिक्षक पर पूर्णतया प्रभावी है। शिक्षक प्रतिदिन निर्धारित पाठों को पढ़ाता है किन्तु सत्र बदल गया, समय बदल गया, शिक्षक का तन-मन बदल गया तो फिर पढ़ाने का ढ़ंग क्यों नहीं बदलना चाहिए। यह हो सकता है कि पाठ्यक्रम, पुस्तकें और विद्यालय पूर्ववत् हों किन्तु शिक्षक, शिक्षार्थी और समय तो प्रतिपल बदलते है। शिक्षक वर्तमान चुनौतियों को स्वीकार करते हुए प्रतिदिन नये उत्साह के साथ नये प्रश्नों का निर्माण करें। छात्रों की क्षमताओं को बढ़ाने वाले प्रयोग करें। प्रत्येक छात्र को किसी न किसी गतिविधि से जोड़े तो कक्षा शिक्षण में आनन्द आयेगा ही।

(9) प्रत्येक छात्र की पृथक योजना बनायें

मा. दीनानाथ बत्रा ने कहा है – “We do not teach a class but many classes in a class.” अर्थात् प्रत्येक छात्र स्वयं में एक संस्था है। उसकी अपनी प्रतिभा है। छात्र की प्रतिभा के अनुसार कम से कम एक दो परियोजना पृथक रूप से बनाएं और बनवाएं। Innovative pedagogical plan में शिक्षक छात्रों को उनकी रूचि के अनुसार नवाचार करने का अवसर देते है। इस प्रक्रिया में छात्रों को आत्म सम्मान और आत्म विश्वास की भावना आज की चुनौतियों का सामना सफलता पूर्वक कर लेते हैं।

(10) शिक्षक स्वयं उदाहरण बनें

किसी ने कहा है – “Integrity is not a quality, it is the way of living.” सत्यनिष्ठा कोई गुण नहीं है यह जीवन जीने का एक ढ़ंग है। वर्तमान शिक्षक के जीवन में सद्गुण स्वाभाविक रूप से दिखायी दे। समय पालन, समर्पण, स्नेह, वक्तृता, प्रतिबद्धता, सहनशीलता, सदाशयता, सहयोग और सहकार आदि गुण आज के शिक्षक जीवन के अभिन्न अंग होंगे तो विद्यार्थी आदर्श बन जायेंगे। विद्यार्थी शिक्षक के ज्ञान को तो भूल भी जाते हैं, किन्तु अपने शिक्षक के गुणों का अनुकरण करना नहीं भूलते हैं।

(11) आधुनिक तकनीकी का उचित प्रयोग करें

चार Learning skills के साथ ही तीन literacy को भी 21वीं शताब्दी के शिक्षक को परिभाषित किया गया हैं –

  1. Information 2. Media 3. Technology.

वर्तमान शिक्षक के पास सूचनाओं का भण्डार है। शिक्षक को शिक्षण सम्बन्धी प्रयोगों की सूचनाओं को संकलित करना चाहिए। उनके आधार पर शिक्षण एवं व्यवहार में परिवर्तन लाना चाहिए। हम जो भी अच्छा करते हैं उसको संचार के माध्यम से समाज को देना चाहिए। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में तकनीकी का भरपूर प्रयोग करना चाहिए। तकनीकी का प्रयोग उचित कार्यों के लिए उचित मात्रा में उचित तरीके से करना चाहिए। इसके विषय में समय-समय पर अपने शिक्षार्थियों को भी अवगत कराना चाहिए। साक्षरता के कौशलों का प्रयोग करने पर शिक्षक और शिक्षा की स्थिति में सकारात्मक सुधार अवश्य होगा।

उक्त एकादश बिन्दु संकेतों से 21वीं शताब्दी का शिक्षक अपने एकादश बिन्दु और बना सकेंगे तथा समाज एवं राष्ट्र के कार्य के लिए स्वयं को समर्पित कर सकेंगे। वर्तमान शताब्दी बहुत तेजी से सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रही है। शिक्षक सतत् व्यापक लक्ष्यों की पूर्ति में शिक्षा के लक्ष्य को निश्चित रूप 2030 तक प्राप्त करने में सफल होंगे। इसके लिए सतत् प्रयास, स्व प्रेरणा से युक्त होकर शिक्षक अपने जीवन को सार्थक बना सकेंगे। श्री रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है – “जीवन का अंतिम ध्येय स्वयं जीवन है।” शिक्षक का अन्तिम ध्येय मात्र शिक्षण नहीं है।

गोस्वामी तुलसीदास की निम्न चौपाई 21वीं शताब्दी के शिक्षक के लिए पूर्ण प्रासंगिक है। शिक्षक इसके भाव को समझकर कक्षा शिक्षण में अपनायें।

गुरु गृह पढ़न गए रघुराई, अलप काल विद्या सब आई।

विद्या विनय निपुण गुण शीला, खेलमहिं खेल सकल नृप लीला।।

(लेखक उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सदस्य है और विद्या भारती के अखिल भारतीय मंत्री है।)

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