✍ डॉ. रवीन्द्र नाथ तिवारी
शिक्षक का स्थान समाज में अनादिकाल से ही पूजनीय रहा है। शिक्षा का प्रमुख आधार शिक्षक ही होता है। शिक्षक विद्यार्थी के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास कर समाज में सम्मानजनक स्थान पर स्थापित करने हेतु अनवरत प्रयासरत रहता है। राष्ट्र के समग्र विकास के साथ-साथ नागरिकों को सही दिशा एवं मार्गदर्शन देने तथा उनको गढ़ने का कार्य शिक्षक ही करता है। शिक्षक विद्यार्थी को उसकी क्षमतानुसार सही दिशा देने के साथ-साथ कल्याणकर्ता भी होता है तथा अपने विद्यार्थियों की कमजोरियों को दूर करते हुए उसे शिखर तक पहुँचाता है जहाँ वह पूर्णता प्राप्त कर सके। विद्यार्थी जब पूर्णता प्राप्त कर लेता है तो जीवन पथ पर अग्रसर होने में आने वाली समस्याओं का आसानी से सामना करने में सक्षम हो जाता है। इस प्रकार शिक्षक किसी भी देश या राष्ट्र के भविष्य का निर्माता होता है।
भारत में प्रत्येक वर्ष देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन की भारतीय सनातन संस्कृति के मूल तत्व ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ एवं ’लोक कल्याण’ में अटूट निष्ठा थी। वह समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे। उन्होंने ब्रिटेन के एडिनवरा विश्वविद्यालय में अपने भाषण में कहा था कि “मानव को एक होना चाहिए। मानव इतिहास का सम्पूर्ण लक्ष्य, मानव जाति की मुक्ति तभी संभव है, जब देशों की नीतियों का आधार पूरे विश्व में शांति की स्थापना का प्रयत्न हो।” महर्षि अरविन्द ने शिक्षक के बारे में कहा था कि “शिक्षक राष्ट्र की संस्कृति के चतुरमाली होते हैं, वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से सींचकर उन्हें शक्ति में परिवर्तित करते हैं। राष्ट्र के वास्तविक निर्माता उस देश के शिक्षक ही होते हैं।” स्वामी विवेकानन्द के अनुसार “किसी भी राष्ट्र का विकास वहाँ की शिक्षा के अनुपात में होता है जो शिक्षा जीवन संघर्ष के अनुरूप चरित्रवान, दयालु और साहसी नहीं बना सके वह शिक्षा नहीं हो सकती। शिक्षा चरित्र, मन एवं कर्म को मजबूत और व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है।” प्रत्येक बालक में जन्मजात कुछ मूल प्रवृत्तियाँ अन्तर्निहित होती हैं, शिक्षक उन मूल प्रवृत्तियों को परिमार्जित एवं परिष्कृत कर बालक को सही दिशा में ले जाने हेतु प्रयास कर उन्हें आवश्यकतानुसार नियंत्रित करने का भी कार्य करता है। शिक्षक, बालक को समाज तथा राष्ट्र की सेवा की दिशा की ओर प्रेरित करने का कार्य करता है। वह विद्यार्थियों को इस योग्य बनाता है कि शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् वे परिवार, समाज तथा देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन भली भाँति कर सके।
शिक्षक, विद्यार्थी का आदर्श होता है तथा वह अपनी शिक्षा के द्वारा विद्यार्थियों में आदर्श गुणों का विकास कर आदर्श नागरिक बनने की दिशा में सतत् प्रयास करता है। बालक के चरित्र निर्माण और उनमें नैतिक मूल्यों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शिक्षक द्वारा दी गयी शिक्षा ही शिक्षार्थी के सर्वांगीण विकास का मूल आधार होती है। शिक्षकों द्वारा प्रारंभ से ही पाठ्यक्रम के साथ ही साथ जीवन मूल्यों की शिक्षा भी दी जाती है। शिक्षा ही हमें ज्ञान, विनम्रता, व्यवहारकुशलता और योग्यता प्रदान करती है। देश की संस्कृति और गौरवशाली इतिहास का सही अर्थों में संवाहक शिक्षक ही होता है। वह जिस प्रकार से अपने विचारों को विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत करता है, विद्यार्थी तदनुरूप चिंतन और उसका क्रियान्वयन करते हैं। प्रत्येक नागरिक राष्ट्र निर्माण में सहायक होता है और एक शिक्षक अपने पुरुषार्थ से विद्यार्थियों के अन्तर्मन में राष्ट्रप्रेम की भावना को पिरोकर उन्हें श्रेष्ठ नागरिक बनाकर अपने राष्ट्र निर्माण के दायित्वों का निर्वहन करता है। आचार्य चाणक्य ने कहा है- “शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं।”
वर्तमान परिदृश्य में भारतीय शिक्षा जगत में कई चुनौतियां हैं, यथा- शिक्षा का बढ़ता व्यवसायीकरण, शिक्षकों की कमी और योग्य शिक्षक का चुनाव आदि। भारतीय परिवेश को ध्यान मे रखकर शिक्षा एवं अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में मौलिक अनुसंधान किये जाने चाहिए ताकि सामान्य शिक्षा एवं अध्यापक शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाई जा सके। आज के समय में युवा और छात्र समुदाय भी एक गहरे संघर्ष में हैं। उसके जीवन की चुनौतियां काफी कठिन हैं। बढ़ती स्पर्धा, निजी क्षेत्रों की कार्यस्थितियां, सामाजिक तनाव और कठिन होती पढ़ाई जैसी युवाओं के लिए कई चुनौतियां हैं। इसका समाधान शिक्षक के पास है और शिक्षक ही इन समस्त चुनौतियां के लिए युवाओं को तैयार कर सकता है। भारत केंद्रित शिक्षा हेतु सात प्रमुख तत्व हैं- 1.सही इतिहास दृष्टि; 2.स्वतन्त्रता का सही इतिहास; 3.कला, साहित्य व विज्ञान में भारतीय परम्परा का ज्ञान; 4.शिक्षा में भारतीय मूल्य; 5.सबको समान शिक्षा; 6.संस्कृत शिक्षा का प्रसार तथा 7.स्वदेशी के भाव का जागरण। इस सप्त सूत्रों के माध्यम से विद्यार्थियों और सम्पूर्ण समाज जागरण का कार्य शिक्षक ही कर सकता है।
आधुनिक परिवेश में समाज के विभिन्न क्षेत्रों में जो अवमूल्यन दृष्टिगोचर हो रहा है, निश्चित रूप से इस हेतु समाज के समस्त जनमानस के साथ-साथ प्रचलित शिक्षा प्रणाली भी कहीं न कहीं जिम्मेदार है। आज के मशीनी युग एवं उपभोक्तावादी जीवन में अध्यात्म में कमी, संस्कारों में कमी, शिक्षक के प्रति सम्मान में अपेक्षाकृत कमी, मूल्यों का क्षरण, बच्चों में बढ़ता तनाव एवं अवसाद, हिंसा की प्रवृत्ति आदि चिंता का विषय है। निश्चित रूप से इन समस्याओं के निराकरण एवं निदान में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की प्रमुख भूमिका हो सकती है। आजादी के अमृतकाल के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के समग्र विकास हेतु जो लक्ष्य तय किया है उसमें शिक्षा और शिक्षक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। स्वावलंबी भारत अभियान, आत्मनिर्भर भारत अभियान तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में शिक्षकों की भूमिका अतिमहत्वपूर्ण है। आलय, विद्यालय और देवालय के माध्यम से होने वाले व्यक्ति निर्माण कार्य के पुरोधा एवं कर्ता-धर्ता क्रमशः माता-पिता, शिक्षक और संत हैं। शिक्षा के माध्यम से ही संस्कार प्रसारित होने से ही राष्ट्र निर्माण होता है तथा इस प्रसारण का सबसे प्रभावी माध्यम केवल शिक्षक ही है। शिक्षा को मुक्तकरी, युक्तकरी, अर्थकरी तथा युगानुकूल बनाने में शिक्षक की भूमिका प्रभावकारी हो सकती है।
(लेखक शासकीय आदर्श विज्ञान महाविद्यालय, रीवा (म.प्र.) में भू-विज्ञान विभागाध्यक्ष है एवं भारतीय शिक्षण मण्डल महाकौशल प्रान्त अनुसंधान प्रकोष्ठ के प्रान्त प्रमुख हैं।)