शैक्षणिक कुशलताएँ – प्रयत्न एवं परिणाम

राजेन्द्र सिंह बघेल

पिछले दिनों दिल्ली में एक पुराने मित्र से भेंट हुई। औपचारिक शिष्टाचार वार्ता के क्रम में ध्यान आया कि इतने वर्षों के बाद मिले इस मित्र से पूर्व के विद्यार्थी जीवन के बारे में बातें की जाये।

एक रेस्तरां में हम दोनों ने जलपान किया और शुरू हो गई स्कूली दिनों की वे तमाम सारी बातें; वह मित्र आजकल रेलवे विभाग में बड़े अधिकारी हैं। बात-बात में हिन्दी पढ़ाने वाले गुरुजी की चर्चा चली। उनके पढ़ाने के तरीके और सिखाने की विधियों की बात करते-करते हम दोनों अपने अतीत में चले गए। किसी कविता के एक-एक पद का वह ऐसा सस्वर पाठ करते, कठिन शब्दों का सरल रीति से अर्थ बताते और उस कविता के भाव व संदेश से भी हमें भली-भांति परिचित कराते तो आनंद आ जाता। रेलवे में तकनीकी कामों में व्यस्त रहने के बाद भी हमारे मित्र को साहित्य में ऐसी रूचि जगी कि आज भी वह कविता पाठ करने अनेक कवि सम्मेलनों में जाया करते हैं। मित्र से विदा होने के बाद ध्यान आया कि रेलवे की इंजीन्यरिंग सेवा में व्यस्त रहने के बावजूद उन्हें साहित्य में रूचि कैसे जगी होगी? फिर वही हिन्दी पढ़ाने वाले गुरुजी की याद आई। उनका वह आनन्ददायक शिक्षण, भाव से भरी कविताओं में रचा-बसा रस, छन्द व अलंकार तथा कहानियों में वर्णित मानवता के संदेश से परिचय कराने की कला ही साहित्य में रूचि बढ़ाने का कारण बनी होगी। गुरुजी का भाषा शिक्षण का वह कौशल जो वो कक्षा में दर्शाते, कितनों के मन पर दूरगामी परिणाम डाल जाता था।

अच्छा! आप भी याद करिए उन शिक्षकों को जिन्होने अपने शिक्षण कौशल की कोई न कोई छाप अवश्य डाली होगी। हमारे जीवन में उनका प्रभाव आज भी तो होगा न? यह किसी के जीवन में गहरी जड़ें जमाता है और भविष्य में बहुत काम आता है। कुशलताएँ किसी भी क्षेत्र की हों – आइये! इनकी विस्तृत जानकारी हम सभी करने का प्रयत्न इस लेख के माध्यम से करें।

कुशलता कौशल शब्द से बना है दुनिया में हर प्राणी किसी न किसी क्षेत्र में यह गुण प्राप्त करता है। शिक्षण के क्षेत्र में इसका विकास हम कैसे करें यह जानना जरूरी है। इस दिशा में कुछ परिभाषाएँ इसे समझने में सहायक सिद्ध होंगी “शिक्षण कौशल शिक्षक से संबन्धित व्यवहारों का समूह है जो वह कक्षा में करता है, उसके द्वारा वह छात्र के अधिगम में सहायता करता है। इस परिभाषा से स्वतः स्पष्ट है कि कक्षा में छात्रों को किसी भी विषय वस्तु को समझने व सीखने में शिक्षक के शैक्षणिक कौशल से बहुत बल मिलता है। एक कुशल शिक्षक विषयवस्तु को सीखने का ऐसा अवसर देता है कि प्रत्येक स्तर का विद्यार्थी पाठ के अंत में यह अनुभव करता है कि उसकी जानकारी में अभिवृद्धि हुई। शैक्षणिक कुशलता को परिभाषित करते हुए मेकिनटियर एंड व्हाइट यह वर्णन करते हैं “शैक्षणिक कुशलता कक्षा में विशिष्ट अंतः प्रक्रिया (Interaction) को उत्पन्न करती है जो शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक है और छात्रों को सीखने में सुगमता प्रदान करती है।” यूँ कहिए कि – Interaction between the teacher and the students should be cordial. डा. एस.पी. कुलश्रेष्ठ (1993) ने एक और परिभाषा शैक्षणिक कुशलता की इस प्रकार दी है “शिक्षण कौशल शिक्षक के हाथ में वह शस्त्र है जिसका प्रयोग करके वह अपने शिक्षण को सक्रिय तथा प्रभावी बनाता है; साथ ही कक्षा की अन्तःक्रिया (Interaction) में सुधार लाने का प्रयत्न करता है।” तीनों परिभाषाओ से जो बात उभरकर आई कि हमारे शिक्षण कौशल की विभिन्न प्रक्रियाओं से विद्यार्थी की ग्रहणशीलता (Receptivity) बढ़ी या नहीं। ग्रहणशीलता तभी बढ़ेगी जब विद्यार्थी की बुद्धिशीलता (Brainstorming) होगी।

इस संबंध में कुछ और भी :
  • शिक्षण कौशल कक्षा शिक्षण व्यवहार की इकाई से संबन्धित है।
  • यह शिक्षा के विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होते हैं।
  • यह शिक्षण प्रक्रिया को अधिक सुगम बनाकर प्रभावशाली व परिणामकारी बनाते हैं।
  • शिक्षण कौशल के प्रयोग से छात्रों में विषय वस्तु की अधिगम क्षमता तो बढ़ती ही है साथ ही यह जीवन निर्माण की दिशा में आगे बढ्ने में भी सहायक है।
इस दिशा में ऐसे होंगे हमारे प्रयत्न
  • पाठ आरंभ करने से पूर्व क्या हमने यह तय कर लिया कि इस अमुक पाठ के अध्ययन के बाद विद्यार्थी में किन किन गुणों और क्षमताओं (Learning Objects) का विकास हो पाएगा। आखिर किसी यात्रा के आरंभ करने से पूर्व उसके उद्देश्यों पर तो विचार करना ही होगा।
  • पाठ प्रस्तुति के क्रम में हमने Demonstrative Attitude अपनाया है तो विद्यार्थी इसे अच्छी रीति से समझ सकेंगे और आगे भविष्य में भी इसका अभ्यास ठीक से कर सकेंगे।
  • शिक्षण के समय हमारे उदाहरण कैसे थे? वही पुराने घिसे-पिटे, बार-बार प्रयोग किए गए या Updated Examples उपयोग में लाये गए। ऐसे उदाहरण सुनकर हमारा विद्यार्थी भी अपडेटेड रहेगा।
  • ज्ञान के क्षेत्र में प्रत्येक अवधि के अंतराल में परिवर्तन होते रहते हैं। एक शिक्षक के रूप में कार्य करके हम भी अध्ययनशील बने रहते हैं। नवीनतम जानकारी से जुड़ी विषयवस्तु का अध्ययन करना हमने अपना स्वभाव बनाया है।
  • शिक्षण के समय विद्यार्थियों से नियमित संवाद (Interaction) करना हमारा स्वभाव है क्योंकि हमें भविष्य में अपने छात्रों की वक्तृत्व शैली विकसित करनी है।
  • अध्यापन की बेला में विषयवस्तु को अधिक सुगम बनाने के लिए कक्षा में विद्यार्थियों को आपस में एक दूसरे से तथा छोटे-छोटे समूह में वार्ता (Peer Learning and Group Learning) करने का अवसर देते हैं। इससे उन्हें एक दूसरे की बात सुनने व समझने का अवसर तो मिलता ही है साथ में सामूहिकता (Collectiveness) का स्वभाव उनमें विकसित होता है।
  • सब कुछ पुस्तक की पंक्तियों में ही नहीं वर्णित है; इसके इतर Between the Lines तक जाने का संदेश देना हम अपना कर्तव्य समझते है। जैसे – हमने अध्यापन के समय Learning of Values को विकसित करने हेतु अनाड़ी फिल्म के गीत “किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो लो उधार ….. जीना इसी का नाम है।” गीत सुनकर अन्तर्मन में बुनने का भी संदेश दिया है।
  • पाठ्यचर्या (Curricular), पाठ्यक्रम (Syllabus), पाठ्यपुस्तकें (Text books), पाठ्यवस्तु (Subject matter) की रचना, उसके उद्देश्य तथा क्रियान्वयन का अन्तर्मन से अध्ययन किया है क्योंकि इनकी तारतम्यता (Continuities) के समझ के आधार पर हमें देश के नौनिहालों का विकास करना है।
  • हम मात्र विषय के आचार्य नहीं वरन कक्षा के एक-एक विद्यार्थी की समझ विकसित करना अपना कर्तव्य मानते है। कारण – हमें अपने विद्यार्थी को राष्ट्र कल्याण / विश्व कल्याण की दिशा में आगे बढ़ाना है।
  • विद्यालय की नियमित गतिविधियों में भागीदारी करने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित कर उन्हें छात्र संसद के विभिन्न विभागों की व्यवस्था में अपना दायित्व निर्वहन करने का अवसर देते हैं तभी तो वह देश का एक जिम्मेदार नागरिक बन सकेगा।
  • सभी विषयों का एक दूसरे से अंतरसंबंध है। इस तथ्य को विकसित करने के लिए शिक्षण के समय अंतर्विषयी अभिगमन (Interdisciplinary Approach) की जानकारी कराना अपना कर्तव्य मानते हैं। इससे उसकी समझ का विकास होगा।
  • अध्यापन के समय जानकारी के स्त्रोत के रूप में केवल पाठ्य पुस्तक ही नहीं बल्कि एलेक्ट्रोनिक / सोशल मीडिया (WhatsApp, Facebook, Instagram, News, Story Episodes, Movies and Educational Apps/ Modules) तथा प्रिंट मीडिया ( समाचार पत्र व पत्रिकाएँ आदि ) का भी भरपूर उपयोग स्वयं करते व छात्रों को उपयोग करने का संदेश देते हैं। Teaching Process के स्थान पर Learning Process का क्या महत्व है यह हमने अनुभव किया है; इसलिए अध्ययन के समय Joyful Learning & Toy based Learning प्रक्रिया अपनाते हैं।
  • कला सबके लिए रुचिकर और आनंददायी विषय है। इसका सभी विषयों से अंतर संबंध है। इसलिए कक्षा में Art Integrated Learning की अवधारणा समझाकर कला से आपसी संबंध स्थापित करने का प्रयत्न करते हैं।
  • आज का विद्यार्थी कल देश के अनेक कार्य क्षेत्रों में बड़ी-बड़ी जिम्मेदारियाँ संभालेगा एतदर्थ जो विषय ज्ञान उसने किया है उस पर व्यावहारिक प्रयोग / प्रोजेक्ट्स करके वह क्रियधारित अनुभव कर सकेगा।
  • हमने आरंभ में जिन Learning Objects का वर्णन किया था विषय के अंत में हम इसका आकलन (Assessment) करेंगे कि छात्रों को किस स्तर तक शैक्षिक संप्राप्ति (Learning Outcomes) हुई। किसी स्तर पर यदि कोई न्यूनता रह गई तो उसके लिए अनुप्रयास (Follow-up) करेंगे।

21वीं सदी और विश्व में भारत की जिम्मेदारियों को समझने के अनेक अवसर हमने कक्षा में छात्रों को दिया है। हम यह कह सकते है कि आने वाली चुनौतियों का सामना भी वह सजगता के साथ करेगा। लेख के आरंभ में हिन्दी के एक कुशल शिक्षक व उनकी शिक्षण पद्धति का हमारे मित्र पर क्या प्रभाव पड़ा उनकी चर्चा की थी। हमारे शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की एक बड़ी ज़िम्मेदारी पहले से नियत है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी शिक्षकों के दायित्व तथा उनकी शैक्षणिक कुशलताओं के विकास पर पर्याप्त साहित्य का सृजन किया गया है – प्रस्तुत लेख भी इस दिशा में एक प्रयास है, यह लेख भी कोई परिणाम दे सका तो मुझे भी आनंद का अनुभव होगा।

(लेखक शिक्षाविद है और विद्या भारती के अखिल भारतीय प्रशिक्षण संयोजक रहे हैं।)

और पढ़ें : शिक्षार्थ संकल्प

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