शिक्षण मतलब क्या पापा?

 – दिलीप वसंत बेतकेकर

‘शिक्षा’ (शिक्षण) के विषय पर अनेक शिक्षा शास्त्रियों, विद्वानों द्वारा बहुत कुछ लिखा गया है। इसका अध्ययन करना आवश्यक है। शिक्षा (शिक्षण) क्या यह हमें सबसे पहले यह जानना चाहिए।

शिक्षा का अर्थ सिर के अंदर कुछ ठूसना नहीं। एक बड़े बर्तन से छोटे बर्तन में उड़ेलना जैसा भी नहीं। बाहर से ज्ञान अंदर प्रवेश कराना शिक्षा नहीं कहलाती, परन्तु जो अंदर है उसे धीरे से बाहर निकालने की प्रक्रिया शिक्षा है। सर्व ज्ञान हमारे भीतर ही है और उसी को प्रगट करना ही शिक्षा है। यदि हम एक बीज लेकर उसे परखते हुए प्रश्न पूछें कि इस बीज में वृक्ष है क्या? तो क्या उत्तर मिलेगा?

हां उसमें वृक्ष है यही उत्तर मिलेगा ना!

हमारे इर्द गिर्द जो विशाल वृक्ष दिखाई देते हैं वो कभी बीज रूप में थे। उस बीज को अच्छी मिट्टी, हवा पानी, प्रकाश, आदि पर्याप्त मात्रा में मिले तभी वे अंकुरित होकर बाद में समय के साथ वृक्ष बने। इसके पूर्व वह सुप्तावस्था में ही थे। यदि पूर्व में ही बीज को तोड़कर देखते तो क्या उसमें पेड़ दिखाई देता? बिल्कुल नहीं। परंतु इसका अर्थ यह भी नहीं कि बीज में पेड़ का अस्तित्व ही नहीं।

मराठी भाषा की कुछ पंक्तियां हैं-

वट बीजी असे बाड। फ़ोडूनी पाहता न दिसे झाड़,

नाना वृक्ष्याचे जुंबाड। बीजापासून होती।

ये पंक्तियां उपरोक्त कथन को स्पष्ट करती हैं।

प्राचीन काल में ‘अग्नि’ उत्पन्न करने के लिए चकमक के दो पत्थर लेकर उनको आपस में रगड़ते थे, इस क्रिया से जो चिंगारी प्रगट होती वही ‘अग्नि’ रूप होती। अर्थात अग्नि कहीं बाहर ना होकर उस पत्थर में ही समाहित थी। ठीक वैसे ही बीज में भी पेड़ बनने की सारी क्षमता विद्यमान हैं। मानव को भी इस दुनिया में भेजने के पूर्व सारी क्षमताओं व बुद्धिमत्ता से परिपूर्ण कर भेजा जाता है। उचित परिस्थिति, पोषण आदि मिलने पर सुप्तावस्था से वह जागृत होकर बाहर आते हैं।

न्यूटन सेबों के पेड़ के नीचे बैठा था, एक फल ऊपर से टपका और न्यूटन के भीतर छुपा बैठा सिद्धांत न्यूटन सिद्धांत बाहर आया। आर्कमिडीज स्नानगृह में नहा रहा था कि अचानक बिजली की कौध जैसा विचार मन में आया और बुद्धिमत्ता से उसे उसके प्रश्नों का उत्तर मिला। यह उत्तर कहीं बाहर से नहीं आया, बल्कि स्वयं की लगन और धुन का ही परिणाम था। पेड़ का तना, पत्ते, फूल, फल दिखाई देते हैं, परन्तु जड़ (मूल) नहीं दिखती, जब कि उस छिपी हुई जड़ के कारण ही हमें सुंदर फूल, रसीले फल प्राप्त होते हैं।

Experience teaches the teachable.” – यह एक छोटी सी पंक्ति कितनी सारगर्भित है। हमारे समक्ष कितनी ही घटनाएं, प्रसंग, रोज घटित होते हैं, हजारों-लाखों लोग उसे देखते भी हैं, परन्तु केवल कुछेक ही हैं – teachable जो उन घटनाओं एवं प्रसंगों से कुछ सीख लेते हैं।

खलिल जिब्रान शिक्षा, शिक्षक और विद्यार्थी के संबंध में एक मूलभूत विचार प्रस्तुत करते हैं –  The teacher who is indeed wise does not bid you to enter the house of his wisdom, but rather leads you to the threshold of your mind.” श्रेष्ठ शिक्षक विद्यार्थियों के मन को अनुरूप दिशा में ले जाते हैं। प्रश्नों के रेडीमेड उत्तर तैयार कर देने वाला शिक्षक श्रेष्ठ है, ऐसी गलत धारणा रखने वाले लोगों की इस दुनिया में भरमार है। किन्तु वैसी अनुभूति देने वाले और तेरा है तेरे पास ऐसी समझ देने वाले शिक्षक ही सही शिक्षक और ऐसी प्रक्रिया ही सही शिक्षा है।

दूध में घी विद्यमान है। घी कोई दूध में बाहर से नहीं मिलाते। गन्ने में शक्कर विद्यमान है, बाह्य रूप से उसमें कोई नहीं भरता। उसी प्रकार प्रत्येक के साथ ज्ञान विद्यमान है। उसका बाह्य आवरण निकाल देना ही शिक्षा है।

अपने आप में सब कुछ विद्यमान है। उसका एहसास होना, अथवा एहसास करा देना, और उसके प्रगटीकरण के लिए उचित परिस्थिति, वातावरण निर्माण करना, पोषण देना यह कार्य है पालक-शिक्षक का। इस स्व का एहसास होने पर शिक्षा के मार्ग में कोई बाधा, कोई रोड़ा आने वाला नहीं। यही है वास्तविक शिक्षा।

कलियां खिलकर मुकुलित हो, सुरभित करती मन को,

स्व सुगंध से नित, गुलजार करती अपने दामन को।।

(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)

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