अध्ययन क्या है?

 – दिलीप वसंत बेतकेकर

अभ्यास ‘अभ्यास’, ‘अध्ययन’ अध्ययन।

यह अभ्यास- अध्ययन क्या है? इन शब्दों का उच्चारण दिन रात होता है। शिक्षकों द्वारा तैयार उत्तर रट कर याद कर लेना, क्या यही अभ्यास-अध्ययन है?

एक स्थान में बैठकर, पुस्तकों में सिर घुसाकर ….. समझे या ना समझे……. पढ़ते रहना- क्या यही है अध्ययन? कुछ लोगों की धारणा के अनुसार प्रश्नों के उत्तर अनेक बार लिखना ही अध्ययन है, अभ्यास है।

प्रथम और सरल अर्थ है अच्छी’ आस’ ….. इच्छा। इच्छा तो अच्छी ही होनी चाहिए। इच्छा अच्छी होगी तो फल प्राप्ति भी अच्छी होगी। यह बात मन में बार बार दोहराने पर तनाव दूर होगा। अभ्यास अर्थात श्रम, झंझट जैसा अनुभव नहीं होगा। अध्ययन को ’ स्वाध्याय ’ भी कहते हैं। अर्थात स्व का अध्ययन – ‘स्वेन अधियते इति स्वाध्यायम।’

हम यदि स्वयं से प्रश्न पूछें, और स्वयं समझ लें तो अध्ययन के जड़ में मूल में पहुंचना आसान होगा।

मुझे अध्ययन पसंद है क्या? मैं स्वयं अध्ययन करता हूं क्या?  मैं अभ्यास किस प्रकार से करता हूं? कुछ भिन्न प्रकार से कर सकता हूं क्या? किस समय पर अभ्यास बेहतर होता है? मैं जब अभ्यास करता हूं तो क्या करता हूं? ये और इस प्रकार के अनेक प्रश्न स्वयं को पूछते रहने पर अभ्यास का अर्थ समझ में आने लगेगा।

अभ्यास /अध्ययन मतलब सभी प्रकार से देखना, परखना, जांचना, करके देखना। अभ्यास का अर्थ है आदत डालना। ‘केले चि करावे’ (मराठी)। अर्थात एक बार किया हुआ अनेक बार करना।

पावलो सारासाते एक स्पेनिश संगीतकार हैं। उसके एक संगीत कार्यक्रम में श्रोता मंत्रमुग्ध हुए और मुहँ से प्रशंसोद्गार निकले – जीनियस!!

इस पर संगीतकार बोला – A genius! For thirtyseven years I have practiced fourteen hours a day, and now they call me genius!

सैंतीस साल तक प्रतिदिन चौदह घंटे रियाज – अभ्यास करने के उपरान्त पावलो एक श्रेष्ठ संगीतकार बना।

हॉलमन हैट एक महान कलाकार केवल हाथ से वलय रेखता था। वह इतना अचूक होता कि वलय निकालने के लिए वे केवल पेंसिल अथवा पेन या चाक का ही उपयोग करते थे, कंपाश या किसी अन्य साधन का नहीं। फिर भी circle perfect एक बार किसी ने उनसे पूछा-मिस्टर “हैट, आपके समान ही क्या हम अचूक वलय का रेखांटन कर सकेंगे?”

हैट ने प्रश्नकर्ता को उत्तर दिया-”हां, हां! क्यों नहीं, मेरे समान अन्य कोई भी वलयाकृति बना सकता है।”

प्रश्नकर्ता बहुत प्रफुल्लित हुआ, हॉलमन ने प्रश्नकर्ता के चेहरे पर आश्चर्य और प्रसन्नता का भाव देखा और कहा- “मैं गत चालीस वर्षों से इस हेतु प्रतिदिन आठ घंटे प्रयासरत हूं! कितनी तपश्चर्या!!”

सन 2007 के भारत-आस्ट्रेलिया के बीच क्रिकेट मैंच में ब्रेड हाग – एक नए बालर ने क्रिकेट के सम्राट भारतीय बल्लेबाज, सचिन तेंदुलकर को क्लीन बोल्ड आउट किया, आउट होने के पश्चात सचिन जब जा रहे थे तो दौड़ते हुए वहीं गेंद लेकर आया, और गेंद को सचिन के समक्ष पकड़कर बोला- “सर आज का दिन, मेरे जीवन का सुनहरा दिन है। कृपया इस गेंद पर आप अपने हस्ताक्षर करे तो आभारी रहूंगा!”

सचिन ने गेंद अपने हाथ में लिया और उस पर लिखा-

“ऐसा दिन तुम्हारे जीवन में दुबारा कभी नहीं आएगा”।

तत्पश्चात सचिन और ब्रेड लगभग तीस-पैंतीस बार मैदान में आमने सामने हुए परन्तु ब्रेड सचिन को दुबारा आउट कभी भी नहीं कर पाए।

क्या यह संयोग वश हुआ? या सहज ही घटित हुआ?

बिल्कुल नहीं। सचिन ने अपनी खेल शैली, खेल पद्धति, गलतियों का, सामने वाले बालर खिलाड़ी का गहन अध्ययन किया, अभ्यास किया, तब यह संभव हुआ।

इसीलिए संत तुकाराम कहते है (मराठी में)-

असाध्य ते साध्य, करिता सायास, कारण अभ्यास, तुका म्हणे,!!

अत्यंत सावधानी पूर्वक, सतर्कता से, किसी बात को केवल देखना ही नहीं, वरन सूक्ष्म निरीक्षण करना है ‘अभ्यास’, ‘अध्ययन’।

पढ़ी हुई बात, सीखी हुई बात का प्रत्यक्ष प्रयोग कर देखना, परखना है अभ्यास! केवल ऊपरी तौर पर सुनना ठीक नहीं। ठीक से, समझकर श्रवण करना है अभ्यास प्रत्येक बार, उसी बात को दोबारा करते हुए, पहले की अपेक्षा बेहतर करने का लक्ष्य है अभ्यास! कोई भी घटना कैसे घटी, क्यों घटी, यह जांचना परखना है अभ्यास!

सतत अभ्यास करने की आदत होने पर दृष्टि अभ्यास मय हो जाती है। सहजता प्राप्त होती है। आलस्य, चिड़चिड़ापन तनाव दूर हो जाता है। अभ्यास एक स्वभाव बन जाता है।

मेरे लिए भी अभ्यास स्वभाव बने ऐसी आस!!

(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)

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