उत्तम स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है सम्यक निद्रा

 – रवि कुमार

आज की भागदौड़ वाली आधुनिक जीवन शैली ने मानव स्वास्थ्य के जिन पहलुओं को प्रभावित किया है, उनमें आहार के साथ निद्रा भी है। देरी से सोना और देरी से जगना ये आधुनिक माना जाने लगा है। भागदौड़ की जीवन शैली में देरी से सोएंगे तो स्वाभाविक ही देरी से जगेंगे’ ये उक्ति सहज ही हो गई है। घर में कक्षा 9 से ऊपर का विद्यार्थी है और ट्यूशन का आम प्रचलन व पाठ्यक्रम का दवाब है तो ‘देर तक पढ़ाई की है इसलिए देर तक (प्रातः 10-11 बजे तक) उठेगा’ यह अनुभव भी अनेक परिवारों में देखने को मिलता है। कम सोना, अधिक सोना, अनुचित समय सोना, ये आज की तथाकथित आधुनिक जीवन शैली के परिणाम है। इन परिणामों का सीधा असर मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है।

एक वर्ग में कॉलेज विद्यार्थियों से चर्चा करते समय एक प्रश्न पूछा गया कि रात्रि में देर से सोते हैं और प्रातः देर से उठते हैं, ऐसे कौन-कौन है? काफी बड़ी संख्या इस प्रकार सोने वालों की थी। देरी से सोने वाली संख्या में कुछ ऐसे थे जो इस विषय में चरम पर थे अर्थात् वे रात्रि या यूं कहें कि प्रातः 3 बजे सोते थे और दिन में 12 बजे जगते थे। ये पूछने पर कि इतनी देरी तक क्या करते हैं तो उत्तर मिला- सोशल मीडिया चलाते हैं। निद्रा को प्रभावित करने में टीवी-मोबाइल-इंटरनेट के अत्यधिक उपयोग का भी भरपूर योगदान है।

क्यों आवश्यक है सम्यक निद्रा

चरक संहिता में मानव शरीर के उचित स्वाथ्य के लिए तीन उपस्तंभों का उल्लेख किया है।

“अथ खलु: त्रय उपस्तंभा: आहार: स्वप्नो ब्रह्मचर्यमिति। एभि: त्रिभि: युक्तियुक्तै: इहैवोपदेक्ष्यते।।

– चरक सूत्र अ० १२/३५

अर्थात् आरोग्य के तीन उपस्तम्भ हैं – आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य। इन तीनों का ऋतु अनुसार शास्त्रोक्त विधि से पालन करता हुआ व्यक्ति ही देह को बल, वर्ण, और आरोग्य से युक्त कर सुखपूर्वक दीर्घायु भोगता है।

सम्यक निद्रा की आरोग्य में प्रमुख भूमिका है। इस शरीर के पालन-पोषण में आहार के समान निद्रा भी सुख देने वाली है। आम कहावत है कि निद्रा पर किसी का बस चलता नहीं है। वह सम्यक नहीं हुई तो आप कुछ भी कार्य ठीक से नहीं कर सकते।

मन और इंद्रियां दोनों मिलकर विषयों को ग्रहण करती हैं। मन के संयोग के बिना इंद्रियां शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध को ग्रहण नहीं कर सकती। दिनभर कार्य करते करते मन और इन्द्रियाँ थक कर विषयों से निवृत्त हो जाती हैं और व्यक्ति सो जाता है। निद्रा शरीर और मन को विश्राम देकर पुनः शक्ति अर्जित करने का अवसर देती है। निद्रा शरीर का पोषण व संरक्षण करती है। स्वाभाविक निद्रा जीवन की रक्षा करने वाली वरदान स्वरूपा है।

चरक सूत्र के अनुसार निद्रा छह प्रकार की होती है – तमोगुण से उत्पन्न होने वाली, कफ की वृद्धि से उत्पन्न, मानसिक व शारीरिक थकान से होने वाली, आगंतुकी अथवा बाह्य कारण से होने वाली, रोग के पश्चात होने वाली तथा रात्रि के स्वभाव से होने वाली। इन सब में रात्रि के स्वभाव से होने वाली निद्रा ही प्राणियों के लिए सर्वथा उचित है।

निद्रा के विषय में क्या रखें ध्यान

एक स्वस्थ मनुष्य के लिए 6 से 7 घंटे की स्वाभाविक निद्रा सर्वथा उचित है। बाल अवस्था में 8 से 10 घंटे और तीन से पांच वर्ष के शिशु के लिए 12 घंटे निद्रा की आवश्यकता रहती है। अपने परिवार और आसपास झांक कर देखिए कि क्या ऐसा होता है! ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर शेष ऋतुओं में (वृद्ध, शिशु, बाल व विशेष रोग से पीड़ित के अलावा) सामान्य मनुष्य के लिए दिवाशयन (दिन में सोना) वर्जित है। रात्रि में जागने से वायु में वृद्धि और दिन में सोने से कफ की वृद्धि होती है जो अनेक रोगों को जन्म देती हैं। अतिनिद्रा, असमय में निद्रा और निद्रा का अभाव तीनों ही आरोग्य और आयु को नष्ट करने वाले हैं।

परिवार में समय से सोना और प्रातः जल्दी जगने की आदत डालें। नवीन पीढ़ी के लिए इस आदत पर विशेष ध्यान दें। रात्रि में टीवी-मोबाइल-इंटरनेट का अधिक उपयोग करने से बचे। मोबाइल-टेबलेट-लैपटॉप आदि को दूर रखकर सोए। अनिद्रा की स्थिति रहती है तो कमर सीधी कर श्वास-प्रश्वास (न्यूनतम 10 बार) कर सोने का प्रयास करे। दिन में अधिक सोने से भी रात्रि में अनिद्रा रहती है। हाथ-मुँह धोकर ढीले व स्वच्छ वस्त्र पहन कर प्रकृति के निकट रहने का प्रयास करते हुए सोने की आदत डालें। खुले आकाश के नीचे सोने के बाद प्रातः जागरण के समय अधिक आनन्द की अनुभूति होती है। विद्यार्थियों के लिए रात्रि में देर तक अध्ययन की बजाय प्रातः जल्दी उठकर अध्ययन करना कम समय में अधिक समझना व अधिगम को ओर ले जाता हैं।

आधुनिक जीवन शैली में आधुनिकता को अपनाना अच्छा है लेकिन प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करना विनाश को बुलावा देना है। मानव शरीर प्रकृति से अलग नहीं है। अतः प्रकृति के समान इसका पालन-पोषण भी हमारा ही दायित्व बनता है। आहार के साथ निद्रा का सम्यक ध्यान रखते हुए आधुनिकता और प्रकृति का समन्वय हमें विकास और प्रगति के पथ पर अग्रसर करेगा।

(लेखक विद्या भारती दिल्ली प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)

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