– रवि कुमार
पंजाबी में एक कहावत है- “सवेरे जे चार वजे जग्गे तां देन्न बत्ती घंटे दा हो जान्दा”। अर्थात यदि व्यक्ति प्रातः चार बजे उठ जाता है तो दिन 24 घंटे की बजाय 32 घंटे का हो जाएगा। प्रश्न यह उठता है कि दिन तो 24 घंटे का ही होता है, फिर आठ घंटे अधिक कैसे होगा? आजकल शिक्षा के प्रति सर्व-सामान्य परिवारों में जागरूकता है। इस जागरूकता के कारण मेरे घर का बालक पढ़े और पढ़-लिखकर अच्छा बने यह सभी के मन में रहता है तथा इस विषय में परिवार वाले आग्रह करने वाले और कहीं-कहीं अधिक आग्रह करने वाले भी रहते हैं। शिक्षण अच्छा हो, इसके लिए आग्रह करना ठीक ही है। अच्छे शिक्षण के लिए मन और बुद्धि की तैयारी एवं समय की उपलब्धता आवश्यक है। आहार-विहार का इनसे क्या संबंध है, ये एक विचारणीय प्रश्न है। आइए इसके बारे में समझने का प्रयास करते हैं।
मन और बुद्धि का कार्य
ये मन क्या करता है? मन विचार करता है। मन इच्छा करता है। मन में भावनाएं आती हैं। मन चंचल है। “चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढ़म्। तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्॥” – गीता, (6/34) में ऐसा कहा गया है। अर्थात यह मन बड़ा चंचल, प्रमथन स्वभाव वाला, बड़ा दृढ़ और बलवान है। इसलिए उसको वश में करना मैं वायु को रोकने की भाँति अत्यन्त दुष्कर मानता हूँ। ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध आदि मन में उत्पन्न होते हैं। मन शांत होना चाहिए। मन में एकाग्रता आनी चाहिए। शांत मन में ही एकाग्रता आएगी। और बुद्धि क्या करती है? मन विचार तो करता है परंतु निर्णय नहीं कर पाता। निर्णय करने का कार्य बुद्धि करती है। बुद्धि की कुछ शक्तियां हैं- ग्रहण-धारणा-स्मृति, तर्क-अनुमान, कल्पना, संश्लेषण-विश्लेषण। जब मन शांत होकर एकाग्र होता है, तब बुद्धि में उपरोक्त शक्तियां जाग्रत होती है। इन शक्तियों के जागरण के पश्चात बुद्धि में विवेक (ठीक-गलत की समझ) जाग्रत होता है।
कठोपनिषद में बताया गया है – आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु। बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मन: प्रग्रहमेव च।। अर्थात् यह शरीर एक रथ है। उस रथ में रथ का स्वामी (जीवात्मा) बैठा हुआ है। इस रथ का सारथी बुद्धि है और मन लगाम है।
अतः विवेकशील बुद्धि के वश में मन रहने से व्यक्ति सम्यक विचार व व्यवहार कर पाता है।
मन और बुद्धि के विकास में आहार-विहार का स्थान
छांदोग्योपनिषद् में आहार के बारे में मन्त्र है-
आहार शुद्धो सत्त्व: शुद्धि, सत्त्व:शुद्धि ध्रुवास्मृति:। स्मृति लब्ध्वा सर्व ग्रंथिनाम् विप्रमोक्ष:।।
अर्थात शुद्ध एवं सात्त्विक आहार से सत्त्व बढ़ता है, सत्त्व बढ़ने से स्मृति अटल रहती है और ऐसी अटल स्मृति प्राप्त होने से मन की सारी गांठे खुल जाती हैं।
आहार अर्थात भोजन, जल व वायु और विहार अर्थात दिनचर्या, नींद, शारीरिक-खेल, हास्य-विनोद, संवाद आदि। आहार-विहार दोनों ठीक रहने से शरीर के साथ-साथ मन भी प्रसन्न रहता है और आनंद की अनुभूति होती है। मन प्रसन्न रहेगा और आनन्द में रहेगा तो बुद्धि भी ठीक कार्य करेगी। मन और बुद्धि ठीक कार्य करेंगे तो शिक्षण भी अच्छा रहेगा।
दो विद्यालयों में वंदना सभा में प्रतिदिन 10 मिनट शारीरिक करवाया जाने लगा। आचार्यों से इसका प्रभाव पूछने पर उन्होंने बताया कि बालक अंतिम कालांश तक चुस्त-दुरुस्त रहते हैं और उनमें अध्ययन का उत्साह प्रथम कालांश की तरह बना रहता है। इसी विषय में कुछ बालकों से वार्तालाप के दौरान भी यही बात निकल कर आई।
एक और विद्यालय में शारीरिक क्षमता मापन (बैटरी टेस्ट) का वर्ष में दो बार क्रम बना। उसी विद्यालय में शारीरिक क्रियाकलापों के साथ-साथ आहार-विहार की छोटी-छोटी बातों का आग्रह भी बढ़ा। उसके कुछ परिणाम सामने दिखाई दिए। कक्षा आठवीं का एक बालक जिसका शारीरिक क्षमता मापन (बैटरी टैस्ट) करते समय वजन 75 किलोग्राम था। बाद में उसको शारीरिक क्रियाओं के साथ-साथ उचित आहार एवं व्यवस्थित दिनचर्या की जानकारी दी गई। उस बालक ने दिए गए निर्देशों का पालन कर अपने वजन को 15 किलोग्राम तक कम किया। उस बालक के माता-पिता से बातचीत में पता लगा कि वजन कम करने के अलावा उसके स्वभाव में भी परिवर्तन आया। वह बालक अब पहले की तुलना में कोई भी वस्तु लेने की जिद्द नहीं करता। इसी प्रकार कक्षा 9 के एक छात्र के अभिभावक ने विद्यालय में आकर बातचीत के दौरान बताया कि उनका बालक क्रोधी स्वभाव का व चिड़चिड़ेपन वाला था। परन्तु जब से वह शारीरिक एवं खेल-कूद प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेने लगा है, तब से उसका स्वभाव काफी बदल गया है। वह अब परिवार में भी अन्य सदस्यों के साथ सहयोगी बन कर रहता है। ऐसे ही अनुभव कुछ अन्य छात्रों के भी रहे हैं।
नींद और अध्ययन के विषय में ऐसा बताया जाता है कि जो विद्यार्थी रात्रि में जल्दी सो कर प्रातः जल्दी उठकर अध्ययन करते हैं, उनकी अध्ययन क्षमता अधिक अच्छी रहती हैं। रात्रि में देर तक पढ़ने की बजाय प्रातः जल्दी उठकर पढ़ने से उन विद्यार्थियों की उत्पादकता बढ़ती है।
आहार-विहार की छोटी-छोटी बातें बालक के मन-बुद्धि के विकास को प्रभावित करती हैं। बाल अवस्था में आदत में इन छोटी-छोटी बातों के आ जाने से जीवन विकास की ओर बढ़ेगा। मन और बुद्धि के विकास से स्वतः ही शिक्षण भी प्रभावित होगा ही। अब हमें विचार करना हैं कि भारतीय जीवन शैली आधारित आहार-विहार को अपनाकर आगे बढ़ना है या मात्र शिक्षण कार्य का ही दबाव बनाना है।
(लेखक विद्या भारती दिल्ली प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)