– डॉ विकास दवे
प्रिय बिटिया !
यह पत्र आपके हाथों में पहुंचने तक आधा ग्रीष्मावकाश बीत चुका होगा। अवकाश शायद आपके लिए कितना आनंददायक होता है यह तो आप से अधिक कोई नहीं बता सकता? किंतु इस अवकाश को जिसने सदुपयोग करना सीख लिया समझो उसे खजाना मिल गया। हम सब यह समस्या सुनते रहते हैं कि- ‘समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता’ या ‘समय का सदुपयोग करना जिसे आ गया जीवन में वह सफलता पा सकता है’ आदि-आदि किन्तु क्या हम समय का पूरा-पूरा प्रयोग कर पाते हैं? मेरा विचार है, नहीं। हमेशा हमें यही लगता रहता है कि पास समय समय कम है और करें अधिक।
महाराष्ट्र के संस्कृत मंत्री श्री प्रमोद नवलकर से जब पूछा गया कि इतनी व्यस्तताओं के बाद भी लेखन कार्य कैसे कर लेते हैं? तो उन्होंने बताया- ‘साधारण: व्यक्ति प्रात:…….. बजे से …….. बजे तक मात्र शौच जाने मंजन करने और नहाने के अतिरिक्त कुछ नहीं करते जबकि यह सब आधे घंटे में संभव है। मैं इसी समय का सदुपयोग लेखन कार्य में करता हूँ। बेटे, यहीं है समय का सही संयोजन। आधा ग्रीष्मावकाश शेष है। आज ही तय करो हमें इसका उपयोग किस तरह से करना है।
शुद्ध और सुंदर लेखन का अभ्यास सामान्य ज्ञान की वृद्धि, अंग्रेजी तथा संस्कृत के व्याख्यान का अध्ययन, कंप्यूटर सीखना अच्छे मित्रों, सिक्कों या डाक टिकटों का संग्रह ऐसे कार्य है जो समय का उपयोग, मनोरंजन और ज्ञानार्जन सभी दृष्टियों से उत्तम है। तुम तो भावी जीवन में उपयोगिता की दृष्टि से सिलाई, कढ़ाई, पेंटिंग, मेहंदी बनाने जैसे कार्य सीख सकती हो। और कुछ नहीं तो माता जी से रूचिपूर्वक भोजन बनाने की कला तो सीखी ही जा सकती है।
आशा है शेष बचे अवकाश का काल आपके लिए उपलब्धियों से भरा रहेगा। और यह समय संयोजन की मानसिकता केवल ग्रीष्मावकाश हेतु कि नहीं वर्ष-भर के सभी अवकाश के क्षणों हेतु बनी रहे, यह भी अपेक्षित है।
तुम्हारे पापा
(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)
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