– रवि कुमार
योग आज सर्वदूर सभी की चर्चा का विषय बना है। गत कुछ वर्षों से यह सभी की दिनचर्या का भाग बना है। समाज में यह भी विमर्श बना है कि योग शिक्षा का एक प्रमुख भाग होना चाहिए अर्थात् योग शिक्षा प्रत्येक विद्यार्थी को दी जानी चाहिए। 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित होना वैश्विक स्तर पर योग की स्वीकार्यता को दर्शाता है।
श्रीमद्भगवद्गीता में योग पर भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं –
योगस्थः कुरु कर्माणि, संग त्यक्त्वा धनंजय।
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा, समत्वं योग उच्यते॥ (२/४८)
हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर योग में स्थित हुआ कर्त्तव्य कर्मों को कर, समत्व ही योग कहलाता है।
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्॥ (२/५०)
समबुद्धियुक्त पुरुष, पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है अर्थात् उनसे मुक्त हो जाता है। इससे तू समत्व रूप योग में लग जा, यह समत्व रूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात कर्मबंध से छूटने का उपाय है।
समाज में योग शिक्षा का जो विमर्श बना है वह केवल योगासन व प्राणायाम तक सीमित रह गया है। योगाचार्य समाज में योग कक्षाएं चलाते है। इस योग कक्षाओं में रोग निवारण हेतु योग अर्थात किस रोग में कौन सा योगासन-प्राणायाम करना अच्छा रहता है अथवा किस योगासन-प्राणायाम को करने से कौन सा रोग नहीं होता, पर ही केंद्रित रहता है।
वास्तव में योग क्या है और योग शिक्षा क्या है? यह समझना शिक्षा क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के लिए आवश्यक है। महर्षि पतंजलि ने ‘योग सूत्र’ में अष्टांग योग भारतीय समाज को दिया है। अष्टांग योग यानि जिसके आठ अंग हो। ये आठ अंग कौन-कौन से हैं –
१ यम, २ नियम, ३ आसन, ४ प्राणायाम, ५ प्रत्याहार, ६ धारणा, ७ ध्यान एवं ८ समाधि
यम के अंतर्गत पांच बातें है – सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अहिंसा व अपरिग्रह। इसी प्रकार नियम के अंतर्गत भी पांच बातें है – शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय व ईश्वर-प्राणिधान।
योग भारतीय जीवन शैली है अर्थात भारतीय जीवन शैली का प्रकटीकरण पतंजलि अष्टांग योग के अनुसार जीवन जीने में है। योग आधारित जीवन शैली भारतीय शिक्षा का भाग बने इसके लिए विद्यालय की पाठ्यचर्या में योग शिक्षा अनिवार्य रूप से सम्मिलत हो ताकि रोजगारपरक शिक्षा के साथ एक अच्छे मनुष्य का निर्माण शिक्षा से हो सके।
यम के अंतर्गत अपरिग्रह का अर्थ है कि मेरी जितनी आवश्यकता है, उससे अधिक एकत्र नहीं करना। आज के भौतिक जगत की अनेकानेक समस्याएं अधिकाधिक एकत्र करने की प्रवृति के कारण ही उत्पन्न हुई है। आज की पीढ़ी को यदि अपरिग्रह आत्मसात हो जाता है तो वर्तमान व भविष्य के भौतिक जगत की अनेक समस्याओं का समाधान स्वतः ही हो जाएगा।
विद्यालय में कैसे क्रियान्वयन करें –
योग शिक्षा के दो भाग है – एक सैद्धांतिक और एक व्यावहारिक। सिद्धांत का अधिगम व व्यवहारिक का आचरण में प्रकटीकरण आवश्यक है। क्रियान्वयन में दो मूलभूत बातें आवश्यक है –
१ विद्यालयों के आचार्यों का योग शिक्षा पर मानस, अध्ययन, व विद्यार्थियों को योग करवाने के लिए दक्षता
२ विद्यार्थियों को योग करवाने के लिए समय की उपलब्धता।
योग शिक्षा विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है, यह जितना अधिक आचार्यों के मानस में होगा, उतना अधिक योग शिक्षा का क्रियान्वयन विद्यार्थियों में होगा। आचार्य पतंजलि अष्टांग योग एवं विद्या भारती द्वारा प्रकाशित योग शिक्षा पाठ्यक्रम का अध्ययन करें। आचार्यों की दक्षता के लिए विद्यालय आचार्यों के मासिक प्रशिक्षण कार्यक्रम में योग शिक्षा के व्यावहारिक पक्ष का अभ्यास करवाया जाए।
प्रातःकाल की वंदना सभा गतिविधियों में सूर्यनमस्कार, आसन, प्राणायाम व ध्यान को सम्मिलित किया जाए। वंदना सभा में बैठते हुए पद्मासन या वज्रासन में बैठने का आग्रह बढ़ाया जाए। साप्ताहिक कालांश योजना में एक अथवा दो कालांश योग शिक्षा को दिए जाए। अष्टांग योग के एक-एक बिंदु, स्वास्थ्य चेतना सम्बंधी छोटी छोटी बातों की अवधरणा बताई जाए। आहार-विहार संबंधी छोटी-छोटी बातों को आचरण में डलवाया जाए।
विद्यालय की गतिविधियों व कार्यक्रमों में अष्टांग योग को भी स्थान दिया जाए। 21 जून योग दिवस में सभी विद्यार्थियों के साथ अभिभावक व समाज के लोग भी भाग ले। सूर्य रथ सप्तमी पर सूर्यनमस्कार महायज्ञ (सभी विद्यार्थियों द्वारा सामूहिक सूर्यनमस्कार) का आयोजन हो।
योग शिक्षा कार्यक्रम, कालांश अथवा विद्यालय तक ही सीमित न रहकर विद्यार्थी की दिनचर्या का अनिवार्य भाग बने, इस पर ध्यान देना अति आवश्यक है। एक स्वस्थ, समृद्ध व सुसंस्कृत भारत का निर्माण नवीन पीढ़ी को योग आधारित भारतीय जीवन शैली में ढाल कर ही सम्भव हो सकता है।
(लेखक विद्या भारती हरियाणा प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)
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