रामायण सत कोटि अपारा-6 (श्रीराम वन गमन स्थल)

✍ रवि कुमार

श्रीराम भारत की आत्मा है। श्रीराम भारत के प्राण है। श्रीराम भारत के जन जन के राम है। वे जन जन के राम तब बने, जब वन के राम बने! श्रीराम का चरित्र जो सर्व व्याप्त है, उसका अधिक भाग वनवासी राम का ही है। तुलसीदास जी ने लिखा है – ‘निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह’ – राम ने दोनों हाथ उठाकर प्रतिज्ञा की थी कि इस पृथ्वी को राक्षस विहीन कर दूँगा। और राम ने यह प्रतिज्ञा पूर्ण की। वनवासी राम इस दौरान जहां जहां गए उसे श्रीराम वन गमन मार्ग कहा जाता है, जिसके अवशेष आज भी उपलब्ध है। आइए इनके बारे में जानने का प्रयास करते हैं।

वाल्मीकि रामायण

वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड में श्रीराम वन गमन का वर्णन आता है –

इयमद्य निशा पूर्वा सौमित्रे प्रहिता वनम्।

वनवासस्य भद्रं ते न चोत्कण्ठितुमर्हसि॥ अयोध्या काण्ड -४६.२

अर्थात ‘सुमित्रानन्दन! तुम्हारा कल्याण हो। हम लोग जो वन की ओर प्रस्थित हुए हैं, हमारे उस वनवास की आज यह पहली रात प्राप्त हुई है; अतः अब तुम्हें नगर के लिये उत्कण्ठित नहीं होना चाहिए।’

इसी प्रकार युद्धकाण्ड में लंका विजय पश्चात अयोध्या आगमन का भी वर्णन है –

स्वागतं ते महाबाहो कौसल्यानन्दवर्धन।

इति प्राञ्जलयः सर्वे नागरा राममब्रुवन्॥ युद्धकाण्ड- १२७.५२

अर्थात उस समय अयोध्या के समस्त नागरिक हाथ जोड़कर श्रीरामचन्द्र जी से एक साथ बोल उठे- ‘माता कौसल्या का आनन्द बढ़ाने वाले महाबाहु श्रीराम! आपका स्वागत है, स्वागत है’।

तुलसीदासकृत रामचरितमानस

तुलसीकृत रामचरितमानस के अयोध्या काण्ड में श्रीराम वनगमन का वर्णन आता है –

बालक बृद्ध बिहाइ गृहँ लगे लोग सब साथ।

तमसा तीर निवासु किय प्रथम दिवस रघुनाथ ॥ अयोध्या काण्ड – दोहा ८४

अर्थात ‘बच्चों और बूढ़ों को घरों में छोड़कर सब लोग साथ हो लिए। पहले दिन श्रीरघुनाथ जी ने तमसा नदी के तीर पर निवास किया।’

रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में अयोध्या आगमन का वर्णन है –

प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी। जनित बियोग बिपति सब नासी ।।

प्रेमातुर सब लोग निहारी। कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी ।। उत्तरकाण्ड – दोहा २ ।।

अर्थात ‘प्रभु को देखकर अयोध्यावासी सब हर्षित हुए। वियोग से उत्पन्न सब दुःख नष्ट हो गए। सब लोगों को प्रेमविह्वल (और मिलने के लिये अत्यन्त आतुर) देखकर खर के शत्रु कृपालु श्रीराम जी ने एक चमत्कार किया।’

श्रीराम वन गमन मार्ग

श्रीराम वन में दो बार गए। एक बार विश्वामित्र जी के साथ गए, यह यात्रा अयोध्या से मिथिला तक की है। दूसरी बार चौदह वर्ष के वनवास के दौरान गए। दोनों मार्ग अलग अलग है। दोनों मार्ग आज की भौगोलिक रचना के अनुसार उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और श्रीलंका इन क्षेत्रों से होकर निकलता है। यह इतना लंबा मार्ग है, जिसे चौदह वर्ष के दौरान श्रीराम, जानकी व लक्ष्मण ने पैदल ही पूर्ण किया था।

श्रीराम वन गमन स्थल

श्रीराम की वन यात्रा के दौरान कुल कितने स्थान होंगे इसके लिए अलग अलग मत आते हैं। दिल्ली के शोधकर्त्ता डॉ. रामअवतार ने स्वयं जाकर उनके आज के अवशेषों आदि को खोजकर कुल २९० स्थानों के बारे में बताया है जोकि ज्ञात है। पहले वर्ग में ४१ स्थल है जो अयोध्या से मिथिला के मार्ग में है। और २४९ स्थल चौदह वर्ष के वनवास के दौरान अयोध्या से श्रीलंका मार्ग में है। चौदह वर्ष, इतना लंबा मार्ग और भी स्थान रहे होंगे जोकि अभी अज्ञात है।

‘चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देत रघुवीर’। चित्रकूट वह स्थान है जहाँ पर तुलसीदास जी को प्रभु राम के दर्शन हुए थे। आज भी यह चौपाई मन्दाकिनी नदी तट पर स्थित घाट पर लिखी हुई मिलती है। श्रीराम वन यात्रा के दौरान भरत श्रीराम से मिलने चित्रकूट ही आए थे और उनकी पादुका लेकर गए थे। इन पादुकाओं को सिंहासन पर रखकर चौदह वर्षों तक साधुवेश में कुटिया में रहकर राम का राज्य मानकर शासन चलाया। इस प्रसंग का वाल्मीकि रामायण में बड़ा ही सुंदर वर्णन है –

अधिरोहार्य पादाभ्यां पादुके हेमभूषिते।

एते हि सर्वलोकस्य योगक्षेमं विधास्यतः॥ अयोध्याकाण्ड – ११२.२१॥

अर्थात भरत श्रीराम से बोले – ‘आर्य! ये दो सुवर्णभूषित पादुकाएँ आपके चरणों में अर्पित हैं, आप इन पर अपने चरण रखें। ये ही सम्पूर्ण जगत् के योगक्षेम का निर्वाह करेंगी’।

सोऽधिरुह्य नरव्याघ्रः पादुके व्यवमुच्य च।

प्रायच्छत् सुमहातेजा भरताय महात्मने॥ अयोध्याकाण्ड – ११२.२२ ॥

अर्थात ‘तब महातेजस्वी पुरुषसिंह श्रीराम ने उन पादुकाओं पर चढ़कर उन्हें फिर अलग कर दिया और महात्मा भरत को सौंप दिया’।

कर्नाटक में पंपा सरोवर के निकट शबरी आश्रम है। इस आश्रम में प्रभु श्रीराम व लक्ष्मण पधारे थे जिसका बड़ा भव्य वर्णन रामचरितमानस के आरण्यक काण्ड में किया गया है –

ताहि देइ गति राम उदारा। सबरी के आश्रम पगु धार ॥

सबरी देखि राम गृहँ आए। मुनि के बचन समुझि जियँ भाए॥ आरण्यक काण्ड – दोहा – ३३.३॥

अर्थात उदार श्रीरामजी जटायु गति देकर शबरी जी के आश्रम में पधारे। शबरी जी ने श्रीरामचन्द्र जी को घर में आये देखा, तब मुनि मतङ्ग जी के वचनों को याद करके उनका मन प्रसन्न हो गया॥

सरसिज लोचन बाहु बिसाला। जटा मुकुट सिर उर बनमाला॥

स्याम गौर सुंदर दोउ भाई। सबरी परी चरन लपटाई॥ आरण्यक काण्ड – दोहा – ३३.४ ॥

अर्थात कमल-सदृश नेत्र और विशाल भुजा वाले, सिर पर जटाओं का मुकुट और हृदय पर वनमाला धारण किये हुए सुन्दर साँवले और गोरे दोनों भाइयों के चरणों में शबरी जी लिपट पड़ीं ॥

आज की भौगिलिक रचना अनुसार कुछ ज्ञात स्थानों की जानकारी निम्न है –

पहला वर्ग (अयोध्या से मिथिला व जनकपुर)

ताल सलोना (अजमगढ़), बारदुअरिया (मऊ), लखनेश्वरडीह (बलिया), भरोली (बलिया), परेव (पटना), त्रिगना घाट (पटना), रामचौरा मंदिर (वैशाली), गौतम आश्रम (दरभंगा), विश्वामित्र आश्रम (मधुबनी), गिरिजा मंदिर फुलहर (मधुबनी), जनकपुर (नेपाल), मणिमंडप (जनकपुर), सीताकुंड वेदीवन (पूर्वी चंपारण), डेरवां (गोरखपुर), दोहरीघाट (मऊ)।

दूसरा वर्ग (अयोध्या से श्रीलंका)

उत्तर प्रदेश – तमसा नदी तट पर मंडार गाँव, बेसुई नाला, गोमती नदी- सुल्तानपुर, सई नदी – भगवान कीनाराम आश्रम रायबरेली, शृंगवेरपुर (सिंगरौर) गंगा तट, कुराई घाट, खुरई गाँव टापू, प्रयाग वन, वाल्मीकि आश्रम लालापुर, चित्रकूट कामदगिरि- मंदाकिनी नदी, भरत कूप, राजपुर प्रभुघाट।

मध्यप्रदेश – शरभंग आश्रम सतना, सुतीक्ष्णआश्रम, अत्रि ऋषि का आश्रम सतना, दंडकारण्य, शहडोल (अमरकंटक), रामवन (सतना), रक्सैलवा – रामशैल, नचना चौमुखनाथ धाम पन्ना, सिद्धाश्रम (जिला पन्ना), चरणतीर्थ (विदिशा), लक्ष्मण पहाड़ी।

छत्तीसगढ़ – दंडकारण्य का क्षेत्र, सीतामढ़ी गंधिया, सीतामढ़ी हरचौका, सीतामढ़ी, विश्रामपुर – अम्बिकापुर, लक्ष्मणगढ़, रायगढ़, दमाली गाँव (अंविकापुर), बन्दरकोट, राजिम – लोमस ऋषि आश्रम, सिहावा, कांकेर-नारायणपुर, राकसहाड़ा, गीदम दंतेवाड़ा, इंजरम।

झारखण्ड – सिमडेगा-गुमला।

उड़ीसा – कोरापुट, मलकानगिरी क्षेत्र।

महाराष्ट्र – अगस्ती – मनमाड, पंचवटी (नासिक), सर्वतीर्थ, लक्ष्मण सरोवर मुम्बई सह्याद्रि, नांदेड़, उमरधा (होशंगाबाद)।

गुजरात – सापुतारा जिला डांग।

आंध्रप्रदेश – भद्राचलम, तुंगभद्रा व कावेरी नदी क्षेत्र, तिरुपति-कोदंड, कोनावरम।

तेलंगाना –  खम्मम, पर्णशाला, इलेन्तु कोंटा करीम नगर, कंदकुर्ती (निजामाबाद), बासर।

कर्नाटक – ऋष्यमूक पर्वत, बेलगाम, हम्पी, रामनाथपुरम, चुनचुन कट्टे (कृष्ण राजघाट), भुंभा-भुंभी मंदिर रामनगर (बैंगलुरु), शबरी आश्रम पम्पा सरोवर।

तमिलनाडु – कोड़ीकरई, रामेश्वरम, धनुषकोटि, गंधमादन पर्वत, मंडपम।

श्रीलंका – ‘नुवारा एलिया’ पर्वत शृंखला।

श्रीराम वन गमन यात्रा के स्थलों का आज भी धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व है। हर स्थान का अपना एक कथा-प्रसंग है जो वहाँ के स्थानीय समाज को राम और इस भूमि के साथ जोड़े हुए है। किसी अज्ञात कवि ने कुछ पंक्तियों में इस भाव को प्रकट करते हुए कहा है – “चलो चलें उन पथों पर आज, जहाँ चले थे प्रभु रघुराज। वन-वन भटके, कण-कण में बसे, हर पग पावन, हर स्थल विराज॥” “वन गमन के पथ पर चलकर, समझें राम का त्याग महान। धर्म, कर्तव्य, मर्यादा का, करें सदैव हम सब सम्मान॥”

तुलसीदास जी ने लिखा है – “राम वन गमन कथा अति पावन, करत चरित जग मंगल दावन। पिता वचन पालन की रीती, सिखवत सकल धरम की नीती॥” महात्मा गाँधी जी ने श्रीराम वन गमन के बारे कहा है – “श्रीराम का वनगमन त्याग और कर्तव्य का सर्वोच्च उदाहरण है। उन्होंने राजसी वैभव को त्यागकर पिता की आज्ञा का पालन किया, जो सच्चे नेतृत्व का आदर्श है।” स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है – “श्रीराम का वनगमन केवल एक घटना नहीं, बल्कि त्याग, तपस्या और कर्तव्य का महान पाठ है। यह दर्शाता है कि जीवन में सुख-सुविधाओं से बड़ा धर्म का पालन है।”

(लेखक विद्या भारती जोधपुर प्रान्त के संगठन मंत्री है।)

और पढ़ें : रामायण सत कोटि अपारा-5 (संस्कृत साहित्य में रामकथा)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *