पुस्तक समीक्षा : भारतीय शिक्षा दृष्टि – डॉ मोहन भागवत

संपादक – रवि कुमार

समीक्षक – डॉ उदय भान सिंह

“भारतीय शिक्षा दृष्टि” पुस्तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत द्वारा शिक्षा के विभिन्न आयामों पर व्यक्त विचारों और उद्बोधनों का संकलन है, जिसे विद्या भारती के जोधपुर प्रांत के संगठन मंत्री श्री रवि कुमार ने संपादित किया है। यह शिक्षा के ज्ञान, कौशल, मूल्यों और दृष्टिकोण को अर्जित करने की सतत प्रक्रिया पर प्रकाश डालती है। पुस्तक को प्रसिद्ध राष्ट्रवादी सुरुचि प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। प्रस्तुत पुस्तक में डॉ. मोहन भागवत जी द्वारा सन् 2010 से 2020 तक विभिन्न अवसरों पर शिक्षा विषय पर व्यक्त विचारों को समाहित किया गया है। मूलतः आठ भागों में विभाजित यह पुस्तक भारतीय ‘स्व’ के आधार  पर शिक्षा के विभिन्न आयामों पर केंद्रित है। पुस्तक की सम्पूर्ण विषयवस्तु में डॉ. भागवत जी के कुल 29 उद्बोधन व तीन प्रस्ताव शामिल हैं।

वसुधैव कुटुंबकम, अहिंसा, विश्व शांति और साहचर्य जैसे सिद्धांतों पर आधारित भारत की प्राचीन और सनातन शिक्षा परंपरा आक्रमणों और षड्यंत्रों के बावजूद संरक्षित रही। स्वतंत्रता के बाद भी इसे कमजोर करने के प्रयास हुए, किंतु राष्ट्रनिष्ठ संत-मनीषियों ने इसे सहेजने और अगली पीढ़ियों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी कड़ी का स्तुत्य प्रयास इस पुस्तक की विषयवस्तु का संकलन, सम्पादन, प्रकाशन व पाठकों तक सहज ही सुलभ करवाना भी सम्मिलित है, यदि यह कहा जाए तो इसमें कोई भी अतिश्योक्ति नही होगी।

‘भारतीय शिक्षा दृष्टि’ पुस्तक के पहले भाग में सम्पादक ने डॉ. मोहन भागवत जी के विजयादशमी उद्बोधनों (2014-2020) में भारतीय शिक्षा के उद्देश्यों और आयामों पर चर्चा की गई है। वे शिक्षा को सर्वसुलभ, संस्कारयुक्त और स्वाभिमान से जीवन संघर्ष करने योग्य बनाने पर बल देते हैं। शिक्षा के वैश्विक प्रयोगों का संज्ञान लेते हुए, वे भारतीय शिक्षा को सकारात्मक रूप देने का आह्वान करते हैं। शिक्षकों व अभिभावकों की भूमिका को महत्वपूर्ण मानते हुए, वे दायित्व बोध की आवश्यकता बताते हैं। शिक्षा के व्यापारीकरण से बचने और ‘स्व’ आधारित शिक्षा प्रणाली अपनाने की वकालत करते हैं। वे शैक्षिक ढांचे से इतर पाठ्यक्रम और शिक्षकों के प्रशिक्षण में आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता पर बल देते हैं।

पुस्तक के दूसरे भाग “धर्म और शिक्षा” में पुस्तक के सम्पादक रवि कुमार ने डॉ. मोहन भागवत जी के द्वारा 9 अक्टूबर 2020 को लोकप्रिय हिन्दी पत्रिका ‘विवेक’ को दिए गए गए साक्षात्कार का सन्दर्भ लेते हुए बताया है कि धर्म के बिना शिक्षा अधूरी है। धर्म हमें सन्मार्ग दिखाता है और शिक्षा हमें उसके लिए सक्षम बनाती है। पुस्तक के इसी भाग में सम्पादक ने राजकोट (गुजरात ) गुरुकुल में डॉ. भागवत द्वारा 28 जनवरी को ‘धर्म, राष्ट्र और राष्ट्रधर्म’ पर व्यक्त विचारों को शामिल किया है।

पुस्तक के तीसरे भाग में “गुरुकुल शिक्षा पद्धति” के अंतर्गत 29अप्रैल 2018 को अन्तर्राष्ट्रीय विराट गुरुकुल सम्मेलन में तथा 10 फ़रवरी 2021 को हरिपुर स्थित प्रबोधिनी गुरुकुल में आयोजित अर्ध-मण्डलोत्सव कार्यक्रम में डॉ. मोहन भागवत के द्वारा दिए गए उद्बोधनों की चर्चा की गई है। आज हम अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की चकाचौंध में बच्चों को अपनी जड़ों से काट रहे हैं, जिससे उनका भविष्य संकट में पड़ रहा है। ऐसे में भारत की प्राचीन गुरुकुल शिक्षा पद्धति ही सर्वांगीण विकास का समाधान है। डॉ. भागवत के अनुसार, 21वीं शताब्दी में भी यह पद्धति प्रासंगिक है और भारत को विश्व का मार्गदर्शक बना सकती है, क्योंकि “सा विद्या या विमुक्तये” – विद्या ही सच्ची मुक्ति और दिशा प्रदान करती है।

पुस्तक के चौथे और पाँचवे भाग में सम्पादक रवि जी ने विद्या भारती के अनेक आयोजनों /कार्यक्रमों तथा विद्या भारती के ही पूर्व विद्यार्थियों के बीच दिए गए डॉ. भागवत जी के व्याख्यानों में शिक्षा दृष्टि के बिंदुओं को रेखांकित किया है। इन व्याख्यानों में भी स्थान-स्थान पर भागवत जी ने विद्यालय-महाविद्यालयों के विद्यार्थियों के भटकाव, शिक्षक-अभिभावकों की भूमिका, शिक्षा में युगानुकूल परिवर्तन, संस्कारवान शिक्षा की आवश्यकता, विद्या भारती के विद्यालयों की भूमिका तथा पूर्व विद्यार्थियों की सामाजिक सक्रियता व भागीदारी की अपेक्षा जैसे अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला है।

शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास शिक्षा के क्षेत्र में भारतीयकरण के अभियान में प्रमुखता से कार्य करने वाले संगठन है। न्यास के द्वारा आयोजित ज्ञानोत्सव 2018, भारतीय भाषा अभियान 2018, शिक्षाविद् गोष्ठी 2019, ज्ञानोत्सव 2019 तथा इसी वर्ष अगस्त में शिक्षा में भारतीयता विषय पर अनेक आयोजन हुए हैं, जिनमें  डॉ. मोहन भागवत जी के उद्बोधनों को पुस्तक के इस छठे भाग में संकलित करते हुए संपादक ने उनके शिक्षा के विविध आयामों पर डाले गए प्रकाश की चर्चा की है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोगधर्मिता की आवश्यकता, समाज आधारित शिक्षा की पुर्नस्थापना, भाषा में स्व व अपनी भाषा, भारत की भाषा तथा मातृभाषा का महत्व जैसे बिंदुओं पर बल दिया गया है। वास्तव में यही समय की आवश्यकता भी है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी इसकी स्पष्ट झलक दिखाई भी देती है।

पुस्तक के अगले भाग में डॉ. मोहन भागवत जी के द्वारा विभिन्न कार्यक्रम अवसरों पर दिए गए शिक्षा सम्बन्धी उद्बोधनों को संग्रहित किया गया है। इन उद्बोधनों में मुख्यतः शिक्षकों को कर्तृत्व उदाहरण बनने, ग्रन्थ लेखन का उद्देश्य व महत्व, शिक्षा में अपेक्षित परिवर्तन के लिए शोध की महती आवश्यकता, पाठ्यक्रम परिवर्तन, शिक्षा क्षेत्र में नव चिंतन का महत्व, शिक्षा क्षेत्र में मातृ शक्ति की भूमिका तथा विद्या-अविद्या की समझ, जैसे महत्वपूर्ण बिन्दुओं की चर्चा है। इन बिंदुओं पर व्यापक चर्चा कर व्यवहार के धरातल पर उतारने की तुरंत आवश्यकता है।

“भारतीय शिक्षा दृष्टि” पुस्तक के अंतिम खंड में सम्पादक ने उन विषयों को समाहित किया है जिन्हें संघ ने अपने वार्षिक प्रतिवेदन में प्रस्ताव के रूप में सम्मुख रखा है। इस दृष्टि से पुस्तक के इस भाग में संपादक ने संघ की तीन अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा यथा, मार्च-2016 नागौर, मार्च-2018 नागपुर एवं मार्च-2019 ग्वालियर में पारित प्रस्तावों का उल्लेख किया है। इन प्रस्तावों में गुणवत्ता पूर्ण एवं सस्ती शिक्षा सबको सुलभ हो, भारतीय भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्धन की आवश्यकता तथा भारतीय परिवार व्यवस्था-मानवता के लिए अनुपम देन जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण विषय प्रस्तावों में शामिल हैं। यदि गहनता से देखा जाए तो यह सब विषय न केवल भारतीय सन्दर्भ में ही आवश्यक हैं अपितु वैश्विक दृष्टि से भी नितांत महत्वपूर्ण हैं।

यह पुस्तक शिक्षा के सभी प्रमुख आयामों को समेटते हुए इसके उपविषयों व महत्व को रेखांकित करती है। इसमें प्रस्तुत सुझाव यदि क्रियान्वित हो सकें, तो भारतीय शिक्षा प्रणाली में व्यापक परिवर्तन संभव है, जिससे शिक्षा में भारतीयता का समावेश होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को अपनाया है, लेकिन क्रियान्वयन में अभी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। यह पुस्तक शिक्षाविदों, शोधार्थियों व शिक्षा सुधार से जुड़े कार्यकर्ताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

पुस्तक का मूल्य भी अपेक्षाकृत काफ़ी कम है। इसलिए सर्व सुलभता की राह में कोई अड़चन नही होगी, ऐसा लगता है। आशा है आगामी संस्करण में संपादक पुस्तक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रासंगिक प्रावधानों तथा चित्रों या रेखाचित्रों का यथोचित समावेशन करेंगे जिससे इस पुस्तक की विषयवस्तु और अधिक प्रभावी बन पड़ेगी। पुस्तक की विषयवस्तु पठनीय है, कलेवर व आवरण आकर्षक है तथा भाषा सरल है। इसलिए पाठकों के मध्य पुस्तक लोकप्रिय होगी, ऎसी अपेक्षा की जानी चाहिए।

(लेखक, दीनदयाल उपाध्याय अध्ययन केंद्र, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय में सह आचार्य है।)

पुस्तक का नाम : भारतीय शिक्षा दृष्टि – डॉ. मोहन भागवत

संपादक : श्री रवि कुमार

प्रकाशक : सुरुचि प्रकाशन, केशव कुंज झंडेवाला, नई दिल्ली-110055

प्रथम संस्करण : अक्टूबर 2024

मूल्य : 235 रुपए

पृष्ठ संख्या : 204

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