पुस्तक समीक्षा: भारतीय जीवन शैली

✍ डॉ. कुलदीप मेहंदीरत्ता

लेखक – रवि कुमार

प्रकाशक – सुरुचि प्रकाशन, झंडेवाला, नई दिल्ली

पृष्ठ संख्या – 156, मूल्य 150₹

लेखक द्वारा रचित और सुरूचि प्रकाशन, दिल्ली द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक ‘भारतीय जीवन शैली’ पोषण की भारतीय अवधारणा और जीवनशैली  गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। 156 पृष्ठों में विस्तारित यह  पुस्तक भारतीय आहार-विहार और स्वास्थ्य परम्पराओं के सिद्धांतों पर एक व्यापक मार्गदर्शिका प्रस्तुत करती है। आठ भागों में संरचित यह पुस्तक पाठकों को भोजन, जीवनशैली, और स्वास्थ्य के बीच के संबंधों को पारंपरिक भारतीय दृष्टिकोण से समझने का अवसर प्रदान करती है।

भारतीय जीवन शैली की आहार व्यवस्थाओं और व्यवहारों का सैद्धांतिक विश्लेषण पुस्तक के पहले भाग ‘सैद्धांतिक चिन्तन’ की विषयवस्तु है, जो हमारी सांस्कृतिक परंपराओं और ऋतुओं पर आधारित हैं। लेखक भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में लिखित प्राकृतिक ऋतुओं के अनुरूप आहार को संयोजित करने के महत्व को रेखांकित करता है। पुस्तक शरीर के दोषों – ‘वात, पित्त और कफ’ के वैज्ञानिक वर्गीकरण पर चर्चा करती है और समझाती है कि इन तत्वों का संतुलन मानव स्वास्थ्य को कैसे निर्धारित करता है। लेखक द्वारा ‘भोजन ही औषधि है’ सिद्धांत की व्याख्या विशेष स्वास्थ्य स्थितियों को प्रबंधित करने और समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देने की व्यावहारिक अंतर्दृष्टि के साथ की गई है। इसके अतिरिक्त, इस भाग में असंगत आहार विषय को भी शामिल किया गया है, जो पाठक को यह समझाने का प्रयास करता है कि कैसे कुछ खाद्य संयोजन पाचन और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। यह भाग विशेष रूप से उन लोगों के लिए मूल्यवान है जो पारंपरिक भारतीय आहार दर्शन से अपरिचित हैं, क्योंकि यह भाग सैद्धांतिक और वैज्ञानिक अवधारणाओं को सरलता से प्रस्तुत करता है ताकि पाठक बिना किसी पूर्व जानकारी के भी इसका अनुसरण कर सकें।

सैद्धांतिक विचारों से व्यावहारिक अनुप्रयोगों की ओर बढ़ते हुए, दूसरा भाग ‘भोजन संस्कार’ अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक आहार अनुशासन पर बल देता है। पुस्तक का यह भाग संतुलित भोजन दिनचर्या को विकसित करने के लिए आवश्यक दिशानिर्देश प्रदान करता है, जिसमें,  क्या, कैसे और कब खाना चाहिए, इसका सटीक और सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है। लेखक आधुनिक जीवन शैली की आहार आदतों के दुष्प्रभावों को हमारे सम्मुख प्रस्तुत करता है और आधुनिक जीवनशैली को संतुलित रखने के लिए आयुर्वेद के साथ उचित समन्वय की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

पुस्तक का तीसरा भाग ‘पाकशाला’ घर के केंद्र के रूप में पारंपरिक भारतीय ‘रसोई’ के प्रति एक समग्र और व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है।  यह भाग रसोई को औषधीय जड़ी-बूटियों, मसालों और पौष्टिक तत्वों को संरक्षित करने वाले एक उपचार स्थल के रूप में चित्रित करता है। लेखक  ‘पारंपरिक भारतीय रसोई में स्थित चिकित्सक’ की अवधारणा का पुनः स्मरण करता है और सामान्य घरेलू उपचारों और कुछ सामग्रियों, जैसे हल्दी और अदरक, के स्वास्थ्य लाभों का वर्णन करता है। यह भाग पाठक को रसोई के चिकित्सीय महत्त्व को दर्शाता है कि यदि भोजन को सही ढंग से तैयार किया जाए, तो हमारा भारतीय भोजन, बीमारियों के विरुद्ध प्रथम रक्षा पंक्ति के रूप में कार्य कर सकता है।

आयुर्वेद से प्रेरित चौथा भाग ‘पंच महाभूत’ हमारा ज्ञानवर्धन करता है कि पंच तत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश) हमारे भोजन से कैसे सम्बन्धित हैं और उनका स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होता है। इसमें विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों और उनके हमारे शरीर की शारीरिक और मानसिक स्थिति पर प्रभाव के बारे में चर्चा की गई है। लेखक जल को ‘आदर्श भोजन’ के रूप में इसके शरीर को शुद्ध करने की क्षमता, गुण और उचित तरीके से जल पीने के लाभों की व्याख्या करता है। इसी प्रकार इस भाग में लेखक ने प्रकाश, वायु और अग्नि के पाचन प्रक्रिया एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रभावों पर भी प्रकाश डाला है, जो संतुलित जीवन शैली को बढ़ावा देने में पंच तत्त्व की भूमिका को समझने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं।

पांचवें भाग ‘विहार अर्थात् सम्यक दिनचर्या’ में हमारी दैनिक गतिविधियों का विशद विवेचन और विश्लेषण किया गया है। यह भाग सम्यक निद्रा को उत्तम स्वास्थ्य के लिए आवश्यक तत्त्व के रूप में दर्शाता है, आधुनिक चिकित्सा के विभिन्न अनुसन्धान भी इस प्राचीन भारतीय विचार की पुष्टि करते हैं। इसी प्रकार खेल तथा व्यायाम की चर्चा के साथ ‘संवाद’ और वस्त्र चयन आदि के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। लेखक योग और ध्यान आधारित एक सुव्यवस्थित दैनिक दिनचर्या पर बल देता है।

छठे भाग ‘स्वस्थ बालक, स्वस्थ राष्ट्र’ में लेखक ने बालकों, विशेषकर विद्यार्थियों के व्यक्तिगत स्वास्थ्य और राष्ट्रीय कल्याण के बीच के संबंध को स्पष्ट किया है। लेखक का स्पष्ट मत है कि एक स्वस्थ बालक ही एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण में योगदान कर सकता है। यह भाग उचित शिशु आहार, बाल्यावस्था सुपोषण, और मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य विकसित करने वाली आहार आदतों पर केन्द्रित है। यह भाग इस पारम्परिक भारतीय विचार की पुष्टि करता है कि प्रारंभिक जीवन में सुपोषण और अच्छी आदतों का निर्माण, व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन और अंतत: एक राष्ट्र के स्वास्थ्य के लिए आधारशिला का कार्य करता है।

आधुनिक आहार और स्वास्थ्य आदतों, जैसे फास्ट फूड, जंक फ़ूड, और आलस आदि ने मनुष्य के जीवन के समक्ष कई चुनौतियों को उत्पन्न किया है। यह एक ऐसी समस्या है जिससे विश्व के विकसित कहे जाने वाले सभी समुदाय जूझ रहे हैं। पुस्तक का भाग सात ‘इक्कीसवीं सदी’ इसी चुनौती और समाधान को समर्पित है। लेखक वर्तमान भारतीय जीवन शैली में फ़ास्ट फ़ूड और जंक फूड की भूमिका का विश्लेषण  करते हुए उसके हमारे जीवन पर पड़े दुष्प्रभावों को स्पष्ट करता है। आधुनिक विज्ञान भी लेखक द्वारा प्रस्तुत इस प्राचीन भारतीय विचार की पुष्टि करता है कि ‘आहार- विहार और तनाव’ में सीधा सम्बन्ध है।   सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग के हमारे आहार- विहार पर हुए दुष्प्रभावों का विश्लेषण लेखक द्वारा सरल भाषा में किया गया है।

पुस्तक का अंतिम और आठवां भाग ‘परिशिष्ट’ है जो अपने आप में इस पुस्तक का लघु रूप है जिसमें अत्यंत महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को लेखक ने सूत्रात्मक शैली में प्रस्तुत किया है। इसमें ऋतुचर्या अनुसार पथ्य तथा अपथ्य आहार और ऋतुचर्या अनुसार विहार का अद्भुत संकलन है। इस भाग और पुस्तक की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में लेखक ने आदर्श दिनचर्या के मूलभूत न्यूनतम अथवा सामान्य बिंदु प्रस्तुत किए हैं जिसे पाठक एक चार्ट के रूप में अपने सामने रख सकता है और दैनिक और सामयिक आत्म-विश्लेषण कर सकता है।

लेखक रवि कुमार की यह पुस्तक ‘ भारतीय जीवन शैली’ एक सहज, सरल और सूचनात्मक पुस्तक है जो पारंपरिक भारतीय आहार और जीवन शैली प्रथाओं को हमारे समक्ष प्रस्तुत करती है। सरल भाषा में लिखित यह पुस्तक, पारम्परिक भारतीय सैद्धांतिक चिन्तन को आधुनिक जीवन में अपेक्षित व्यावहारिक मार्गदर्शन के साथ जोड़ती है, और यह बिंदु इस पुस्तक की पठनीयता, महत्ता और आवश्यकता को स्थापित करता है। सरल रूप में ज्ञान का यह प्रकटीकरण, आयुर्वेद और पारंपरिक भारतीय स्वास्थ्य दर्शन से परिचित और अपरिचित दोनों प्रकार के पाठकों के लिए पुस्तक को आकर्षक बनाता है। पुस्तक का सुव्यवस्थित संगठन, सरल भाषा और परिशिष्टों का विचारशील समावेश यह सुनिश्चित करता है कि पाठक इस पुस्तक में चर्चा किए गए सिद्धांतों को अपने दैनिक जीवन में आसानी से क्रियान्वित कर सकें, और सही अर्थों में यही इस पुस्तक की विशेषता और सफलता है। इसलिए यह पुस्तक स्वास्थ्य, पोषण, और सांस्कृतिक ज्ञान में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए एक पठनीय और संग्रहणीय संसाधन है।

(लेखक कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र हरियाणा में राजनीति शास्त्र के सहायक प्रोफेसर है।)

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