तैयारी परीक्षा की…भावी जीवन की

 – दिलीप वसंत बेतकेकर

“नमस्कार विद्यार्थी मित्रों, कैसी चल रही है तैयारी?” आपके पास पढ़ने के लिये शुरूआत करने के दिन से कितने दिन पहले यह प्रश्न पूछा जाना ठीक होगा? देखा जाये तो कितने भी दिन बहुत कम अर्थात पर्याप्त नहीं भी हैं और हो सकता है पर्याप्त हों भी!

इतने दिनों की अवधि में रोज आठ घंटे; झटका लगा न सुनकर? पर्याप्त मेहनत की जाये तो कितने घंटे आपको उपलब्ध होंगे? इन घंटों का ईमानदारी से, मनःपूर्वक, नियोजन व उपयोग करें तो किसी भी परीक्षा के किले पर विजय प्राप्त करना कठिन नहीं है।

पूरे वर्ष भर जिसने अध्ययन की ओर गंभीरता से ध्यान न दिया हो, ऐसा विद्यार्थी भी कितने दिन के अथक परिश्रम करने पर आसानी से उत्तीर्ण हो सकता है? ‘आसानी से’ का अर्थ ‘कुछ न करते हुए’, ऐसा कदापि न लें। भूख-प्यास, नींद आदि की परवाह न करते हुए परिश्रम करने की तत्परता होना आवश्यक है। दिनभर में आठ घंटे अध्ययन करने की मानसिकता होगी तभी परीक्षा की नैया पार हो सकेगी। यह अधिक कठिन नहीं है। देखा जाये तो आजकल बोर्ड परीक्षा में तो अनुत्तीर्ण होना ही कठिन है। तो अब करेंगे न निश्चय?

अब शेष बचे दिन कठिन तपस्या करना संभव हो तो ही लेख का आगामी भाग पढ़ना उचित होगा, अन्यथा आगे का लेख न पढ़ना बेहतर!

मित्रों, परमेश्वर द्वारा हमें जो बुद्धि का अपार खज़ाना प्रदान किया गया है उसके सामने परीक्षा तो वास्तव में सामान्य बात है। किन्तु सबसे बड़ी समस्या तो यही है कि परमेश्वर द्वारा प्रदत्त बुद्धि का हम पर्याप्त उपयोग नहीं करते हैं।

हम ‘परिस्थिति’ और ‘मनःस्थिति’, इन दो शब्दों से परिचित हैं ही! इन्हें हम पढ़ते हैं, उपयोग में लेते हैं। हमें ‘टग ऑफ वॉर’ अर्थात ‘रस्सी खेंच’ खेल तो मालूम ही है। एक लम्बी डोरी, उसके दो छोर, दो समूह, खींचतान…!!! याद है ये खेल?

यह खेल केवल मैदान में ही नहीं… जीवन में भी, हर घड़ी चलता रहता है। एक ओर परिस्थिति और दूसरी ओर मनःस्थिति, इन दोनों में खींचतान होती है। परिस्थिति कैसी भी हो, मनःस्थिति मजबूत, सकारात्मक, विजिगीषु; अर्थात विजय की आकांक्षा रखने वाली होगी तो ऐसी मनःस्थिति के सामने परिस्थिति को घुटने टेकने ही पड़ते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलेंगे। ढूंढने, याद करने पर आपको भी मिल सकते हैं!

घर की परिस्थिति कठिन, दो वक्त का भोजन भी उपलब्ध नहीं, पुस्तकें नहीं, कपड़ों का अभाव, घर में अध्ययन के लिये बैठने हेतु भी पर्याप्त जगह नहीं, अन्य प्रकार की भी कोई सुविधा नहीं, ऐसी परिस्थिति को भी टक्कर देते हुए अनेक बच्चों ने अनेक परीक्षाओं के शिखर पर अपनी विजय पताका फहराई है। ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं।

घर की अनेक समस्याओं, आर्थिक तंगी आदि समस्याओं से जूझते हुए उनसे हार न मानकर, उनके सिर पर ही नाच करते बच्चे भी दिखते हैं, कालिय के फन पर नर्तन करने वाले कन्हैया समान!! श्रीकृष्ण के उस मनोरम दृश्य को आंखों के समक्ष रखकर निश्चय करो विजयी होने का! शाला में प्रवेश लेने के समय से आज तक आपने कितनी परीक्षाएं दी हैं? उन सभी परीक्षाओं की अपेक्षा अब तुम जो परीक्षा देने जा रहे हो वह अनेक अर्थों में भिन्न है –

  1. अब तक की परीक्षाएं छोटे स्तर की थीं। यह परीक्षा आपके जीवन की महत्वपूर्ण सार्वजनिक परीक्षा है।
  2. अभी तक के प्रश्नपत्र प्रायः स्कूल-कॉलेज के शिक्षकों द्वारा तैयार किये जाते थे। इस परीक्षा के लिये कोई अन्य अपरिचित, बाहरी शिक्षक होंगे।
  3. आपके पेपर्स शाला शिक्षक ही जांचते थे। अब इनकी जांच अपरिचित, बाहरी, विषय विशेषज्ञ शिक्षकों द्वारा होगी।
  4. आपके भविष्य की दिशा तय करने वाली ये परीक्षा है। एक ‘टर्निंग प्वाइंट’ है। आपने जो सपने संजोये हैं; यदि देखे हों तो वे इसी परीक्षा के आधार पर साकार होने वाले हैं। एक अर्थ से ये परीक्षा आपके कैरियर का “लाँचिंग पैड” है।
  5. इसके पूर्व की परीक्षाओं हेतु निश्चित पाठ रहते थे, अब पाठ्यक्रम की सीमा क्या है?
  6. इस परीक्षा में सुयश मिलने पर आगामी परीक्षा हेतु आत्मविश्वास में वृद्धि होगी।

अब, करें क्या? लक्ष्य निर्धारित करें – लक्ष्य निर्धारित होगा तो अध्ययन में ध्यान लगेगा। अभी तक प्रत्येक विषय में अधिकतम कितने अंक मिले ये एक कागज़ पर लिखें। उसके साथ उस विषय में आगामी परीक्षा में कितने अंक अधिकतम प्राप्त होंगे इसका विचार कर लक्ष्य निश्चित करें। अभी प्राप्त हुए अंकों से कम न हों, परन्तु उनसे कम से कम दस प्रतिशत अधिक अंकों का लक्ष्य हो। प्रत्येक विषय का अलग लक्ष्य निश्चित करें। यह चार्ट अध्ययन के स्थान पर सामने दिखता रहे।

जिस विषय का अध्ययन कर रहे हों उस विषय का निर्धारित लक्ष्य आंखों के समक्ष देखें और फिर उस विषय का अध्ययन प्रारंभ करें। स्वयं ही स्वयं को सूचना… स्वयं सूचना दें। फलां विषय में निश्चित अंक प्राप्त करने का मेरा लक्ष्य है। वह लक्ष्य मैं निश्चित रूप से प्राप्त करूंगा, ऐसा वाक्य स्वयं ही उच्चारित करें। तत्पश्चात अध्ययन प्रारंभ करें। फिर देखें जादू!!

(लेखक शिक्षाविद् है और विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है।)

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