– दिलीप वसंत बेतकेकर
अपने देश मे वर्षभर अनेक पर्व-उत्सव बड़े उत्साह से, आनंदपूर्वक, धूम-धड़ाके से मनाये जाते हैं। दीपावली, गणेशोत्सव आदि की आतुरता के साथ बाट जोहते हैं। होली पर्व के बहाने रंगों से सराबोर हो जाते हैं। एक पर्व आगे आने ही वाला है, ज्यादा दिन नहीं है शेष!!
पहचाना क्या उस पर्व को? भ्रमित हो गए! रामनवमी और हनुमान जयंती तो है ही, परंतु अब हमें तैयार होना है एक अन्य पर्व के लिये! इस पर्व के लिये आपने सालभर तैयारी की है। वह पर्व है- ‘परीक्षा’!
सच कह रहा हूँ मित्रों, आनेवाला परीक्षा पर्व हमें अत्यंत उत्साह से मनाना है। किस प्रकार मनाना है उसका विचार करें –
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कल से प्रातः नींद से जागते ही, बिस्तर पर बैठकर ही, स्वंय से कुछ बोलना है। इसे ‘स्वगत’ अथवा ‘स्वयंसूचना’ (ऑटो सजेशन) कहते हैं। बोलना क्या है? प्रथम, ईश्वर की मनःपूर्वक प्रार्थना कर उसका आभार मानना। उपकार याद करना। उसके द्वारा दिये हुए मानव देह के लिये आभार, बुद्धि रूपी वैभव प्रदत्त करने के लिये आभार, कृतज्ञता! “मैं आने वाले परीक्षा पर्व के लिये तैयार हूँ। प्रसन्नतापूर्वक इस पर्व का स्वागत करता हूँ। वर्षभर बहुत अध्ययन किया है। परिश्रम किया है, अब मुझे अच्छे प्रकार से प्रस्तुति देना है, और वह मैं भली प्रकार से कर सकता हूँ,” आपके द्वारा किया गया स्वगत सकारात्मक, प्रथम पुरुष, एकवचन,; अर्थात् मैं, मुझे और वर्तमान काल दर्शी हो! ‘मैं प्रसन्न हूँ, खुश हूँ’ कहना नहीं भूलें!
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बिस्तर से उठते ही एक ग्लास गरम पानी पीयें! थोड़ा शहद और नींबू रस मिलाया जाए तो बेहतर! दिनभर में सात से आठ ग्लास पानी पीयें (बिना नींबू, शहद के)। अपना दिमाग अर्थात 78 प्रतिशत पानी, ये तो ध्यान होगा ही।
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परीक्षा मेरी दुश्मन नहीं, परीक्षा मुझे निराश नहीं कर सकती। परीक्षा का सामना करने हेतु जाते समय ये बात न भूलें कि परीक्षा से अधिक सामर्थ्य शक्ति, युक्ति, बुद्धि अपने पास है।
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“मेरा अभ्यास नहीं हुआ”, “उत्तर याद नहीं”, “तैयारी हुई नहीं”, ऐसा समझने की, भय पालने की आवश्यकता नहीं। ये चिंता, भय अनावश्यक है, कारण आपने तैयारी तो की हुई है। और रही बात याद न रहने वाली! तो ध्यान रखें, प्रश्नपत्र हाथ में आने पर, प्रश्न पढ़ने पर, उसका उत्तर मन के किसी कोने में छिपा बैठा होता है वह उछलकर बाहर आ जाता है, और उत्तर पुस्तिका पर उतर जाता है- इसलिये “अभ्यास हुआ नहीं”, “उत्तर याद नहीं”, आदि मन में से दूर हटा दो, अभी याद नहीं ऐसा लग रहा हो तो भी समय आने पर जरूर याद आ जायेगा इस बात का पूरा विश्वास करो। सौ प्रतिशत सच है यह बात!
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अब याद करना होगा बार-बार। इस विधि को कहते हैं ‘Revision’ इस शब्द का अर्थ क्या है? इसमें दो शब्द है- ‘री’ और ‘विजन’ का अर्थ- बार-बार (पुनः) और ‘विजन’ का अर्थ ‘देखना’! ‘दिखाना’! बार-बार केवल पढ़ना ही नहीं, अपितु लिखो, याद करो।
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बिस्तर पर बैठकर, तिरछे-आड़े होकर अथवा लेटे हुए पढ़ाई न करें। पैंतालिस मिनट एक ही स्थान पर बैठें, तत्पश्चात पंद्रह मिनट कॉपी-पुस्तक बंद करके घर में, आंगन में, बगीचे में, थोड़ा चलते-फिरते, स्मरण, मनन, चिंतन करें। आकृति, चित्र आंखों के समक्ष लाने का प्रयास करें, पढ़ा हुआ… किसी को बताएं, कॉपी पुस्तक की सहायता न लेते हुए जो-जो याद हो वह एक कागज पर उतारें, क्रम बद्ध लिख सकें तो बेहतर, अन्यथा जो याद हो वह शब्द, चित्र, आकृति कागज पर अंकित करें। फिर क्यों, कैसे, कारण, ऐसे प्रश्न पूछने के अंदाज से एक-दूसरे से संबंध दर्शाने का प्रयास करें। पुनः अभ्यास के लिये बैठें, पौने अथवा एक घण्टा पश्चात छोटा-सा ‘ब्रेक’, कुछ नाश्ता-पानी हेतु!
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निम्नांकित में से कोई भी एक पद्धति अदल-बदल कर अपनाएं –
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खड़े होकर शरीर को सभी दिशाओं में तनाव दें। (Stretch)
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ठंडा पानी हाथ में लेकर चेहरे पर चार-पांच बार हल्के से फेंक (Splash) कर चेहरा धोएं और फिर धी से पोंछ लें।
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आँखें बंद रखकर दोनों हथेलियाँ आपस में रगडे़ं। उष्णता निर्मित होगी। पोला सा आकार देकर आंखों पर रखें, हाथों का उष्ण स्पर्श आँखों को मिलेगा, उसका आनंद उठाइये, फिर चेहरे पर धीमे से मलते हुए आंखें धी-धीमे खोलें। दो मिनट में आप एकदम फ्रेश!
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छोटा-सा विश्राम (ब्रेक) बगीचे में टहलते हुए लें, बगीचा न हो तो किसी पेड़, वनस्पति, फूलों की ओर देखते हुए आनंद लें। हरे-भरे पेड़ों के पत्तों में आपको ‘फ्रेश’ करने का जादू होता है। आवश्यकता है इस क्रिया को आनंद लेते हुए प्रसन्न मन से करने की!
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अपनी पसंद का कोई गाना गुनगुनाएं अथवा सुनें, संगीत में एकाग्रता वृद्धि करने की विलक्षण क्षमता होती है, दिमाग में पोषक हल-चल होने लगती है। अध्ययन के लिये सहायक रसायन उत्पन्न होते हैं।
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आलस्य अथवा सख्ती के कारण अध्ययन करने बैठने पर अपेक्षित अध्ययन नहीं होगा। इसके विपरीत आनन्द, उत्साह, सकारात्मक दृष्टि रखते हुए अभ्यास करने बैठने पर दिमाग में डोपामाइन, सेरोटोनिन, ऑक्सीटोनिन जैसे हॉरमोन्स का स्राव शुरू होता है और इसी कारण पढ़ना थकाने वाला या उबाऊ नहीं लगता।
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सबसे महत्वपूर्ण बात स्वयं से एक प्रश्न पूछें, “मैं पढ़ाई क्यों करता हूँ?” पालकों की सख्ती के कारण, परीक्षा के अंक और नौकरी के लालच के कारण, अथवा स्वयं के आनंद और संतोष प्राप्ति हेतु? ‘मेरे अध्ययन’ हेतु किसी को मुझे याद दिलाने अथवा कोसने की आवश्यकता नहीं। वह मेरा है ऐसी ‘मानसिकता’ हो। आप दूसरों के लिये, दूसरों के कहने के कारण अभ्यास कर रहे है तो दिनभर में अट्ठारह घंटे ‘उस प्रकार’ से पढ़ाई की तो भी उपयुक्त नहीं होगा। ये कोई उपदेश नहीं है। ये है वैज्ञानिक सत्य, अनेक शोधकार्यों पर आधरित।
आपने कभी एक खेल खेला होगा… अथवा देखा तो होगा ही! ‘रस्सा-खींच- (टग ऑफ वॉर)! एक रस्से के दोनों छोर पर खड़े खिलाड़ी अपनी-अपनी ओर खींचते हैं। ये केवल मैदानी खेल ही नहीं अपितु ये खेल अपने जीवन में हरपल, कदम-दर-कदम चलता रहता है, जीवनभर रस्सा खींच चलती रहती है। एक तरफ मनःस्थिति तो दूसरी ओर परिस्थिति में खींचतान चलती है। जब मनःस्थिति सकारात्मक, विजयी और कृतज्ञता से भरी हुई हो, यश अपनी झोली में आ गिरता है।
मुझे अध्ययन क्यों करना है? केवल अच्छे अंक परीक्षा में प्राप्त कर, भारी भरकम वेतन वाली नौकरी प्राप्त कर पेट भरने के लिये ही न? ये एक छोटा-सा उद्देश्य भले ही हो, परंतु उससे भी अधिक उदात्त, विशाल उद्देश्य होने पर तो अपार यश मिलता ही है।
ईश्वर ने विश्वास के साथ जो भाग्य मुझे प्रदत्त किया है, उसके प्रति कृतज्ञता कैसे व्यक्त की जाये? उसके उपकार कैसे याद रखें? आभार कैसे मानें? जो मुझे उसने दिया है (समय, बुद्धि, शक्ति) उसका भरपूर उपयोग करके वह उसी के (ईश्वर के) चरणों में समर्पित करेंगे ऐसा विशुद्ध भाव मन में हो तो प्राप्त यश का सौंदर्य, मूल्य, अद्भुत, अद्वितीय रहेगा। इस दृष्टिकोण से अभ्यास करें तो परीक्षा तो ‘बाएं हाथ का खेल’ समान रहेगी।
दो विद्यार्थी परीक्षा पूर्व मंदिर में जाकर प्रार्थना कर रहे थे। एक विद्यार्थी बोला- “हे परमेश्वर, पेपर कितना भी कठिन हो, मैंने तैयारी पूर्ण की है, मुझे उसका भय नहीं है। केवल परीक्षा का सामना करने हेतु मुझे मेरे प्रयासों को तुम्हारी प्रेरणा आवश्यक है।”
दूसरा विद्यार्थी प्रार्थना करते हुए बोला, “भगवान, पेपर एकदम आसान हो, सुपरवाईजर बुदधू आए और पेपर जांचने वाला दयालु हो, बस और कुछ नहीं चाहिये।’’
आपकी प्रार्थना कैसी होगी इसका निर्णय आप करो।
आचार्य विनोबा जी प्रार्थना के संबंध में कहते थे, “अपनी संपूर्ण शक्ति का उपयोग करते हुए ईश्वर से मांग करना, अर्थात् प्रार्थना!”
प्रार्थना से अपनी परिस्थिति नहीं बदलती, वरन् प्राप्त परिस्थिति का सामना करने हेतु मनःस्थिति बदलती है। भगवान हमारे लिये कार्य नहीं करता, वह हमारे साथ कार्य करता है, यह ध्यान रखने वाली बात है।
कृष्ण कन्हैया का एक दृश्य आंखों के समक्ष रखें। कालिया मर्दन का, कालिया को बुरी तरह परास्त कर, एक हाथ से उसकी पूंछ पकड़कर उसके सिर पर पैर रखे हुए विजयी और प्रसन्न मुद्रा वाला कृष्ण याद करो। कितना सुंदर, मनोहर, पराक्रमी… ।
अब एक और दृश्य आंखों के समक्ष लाइये। कृष्ण के स्थान पर आप विजयी और प्रसन्न मुद्रा में परीक्षा के सिर पर खड़े हो। हाथ में प्रश्नपत्र आने पर इसी दृश्य को याद करो, और करो प्रश्नपत्र को परास्त! विजय आपका ही है, विजयी भव! यशस्वी भव!
आओ, मनायें परीक्षा पर्व धूमधाम से!!
(लेखक शिक्षाविद् है और विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है।)
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