अंक लाने वाली मशीन नहीं है बच्चे, हर बच्चा है खास

 – रचना प्रियदर्शिनी

एक बार फिर से रिजल्ट्स का दौर आ गया है । सीबीएसई, आईसीएसई, स्टेट बोर्ड एक-एक कर के सभी परीक्षा परिणामों की घोषणा कर रहे हैं।

“मेरे बेटे ने 96% मार्क्स स्कोर किया….. मेरी बिटिया ने 99% मार्क्स के साथ स्टेट टॉपर हुई…… मेरे भांजे ने कंप्यूटर में पुरे स्कूल में टॉप किया।” पिछले कुछ दिनों से पूरा सोशल मीडिया ऐसे पोस्ट्स से भरा पड़ा है। यहाँ तक की ट्वीटर और इन्स्टाग्राम पर भी कई दिनों तक बोर्ड रिजल्ट 2019 का हैसटैग ट्रेंड करता रहा।

वाकई रिजल्ट का यह दौर बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावकों को भी बहेद टेंशन भरा होता है, क्योंकि कुछ लोग इसे अपनी आन-बान-शान से जोड़ कर देखते हैं।

कहीं ख़ुशी, कहीं गम हर साल ये एग्जाम रिजल्ट कुछ बच्चों और उनके साथ-साथ अभिभावकों के चेहरे पर भी गर्वीली मुस्कान लेकर आते हैं, तो कुछ के लिए अवसाद और उदासी की वजह है। जो बच्चे सफल होते हैं अर्थात् वर्तमान कसौटी के अनुसार 90% से ऊपर अंक लाने वाले (हम स्टेट बोर्ड वाले बच्चे इतने नंबर लाने की तो कभी कल्पना भी नहीं कर सकते थे), उनके घर मिठाइयाँ बटती हैं। अडोसी-पडोसी मोहल्ले वाले उनके घर बधाई देने आते हैं। वहीं दूसरी ओर जो बच्चे औसत अंक से पास हुए होंगे यानी 80% या इससे कम अंक लाने वाले (इतने में तो हमारे समय में बच्चे स्टेट टोपर बन जाते थे), उन्हें दिन रात ताने मिल रहें होंगे (भले ही सोशल मीडिया पर उनके अभिभावक उन्हें गले लगाये अपनी तस्वीर क्यों न पोस्ट कर रहे हों) – “कहा था साल भर पढ़ाई कर लो तुमको पेंटिंग/डांसिंग/फोटोग्रफिव/घुमने से फुर्सत मिले तब ना। अब हो गया न रिजल्ट खराब।”

इतना ही नहीं कुछ अभिभावक टोपेर्स बच्चों से अपने बच्चों की तुलना करके उन्हें कमतर महसूस करवाने से पीछे नहीं हटते –      “शर्मा जी के बेटे/बेटी को देखो कितने अच्छे अंक लेकर पास हुआ/हुई है। तुमने तो हमारी मुहल्ले में नाक कटवा दी। “अब जाहिर सी बात है कुछ बच्चे पास हुए है तो कुछ बच्चे फैल भी होंगे। ऐसी स्थिति में बच्चों के बारे में सोच कर ही जी घबराता है कि इस घोर प्रतिस्पर्धी माहौल में उन पर क्या बीतती होगी।

अधिकतर बच्चे ऐसे होते हैं औसत बुद्धिवाले : आखिर ऐसे बच्चों के माता-पिता यह क्यों नहीं समझते कि सभी बच्चों की रूचि, योग्यता, बौद्धिक क्षमता, अभिव्यक्ति का स्तर आदि एक समान नहीं हो सकता। मनोविज्ञान भी कहता है 100 में से करीब 70% बच्चे औसत बुद्धि के होते हैं। बाकी 10% तीव्र बुद्धि के और 20%औसत से कम बुद्धि के या मंद बुद्धि के होते हैं । ऐसे में हर बच्चे से ‘धाकड़’ होने की उम्मीद करना बेमानी है।

दूसरी और, किसी भी बच्चे की बौद्धिक क्षमता के विकास पर उसके परिवार, समाज, परवरिश, गर्भावस्था की परिस्थिति सहित अन्य कई वातवरणीय कारक यहाँ तक की मौसम अनुभवों का भी प्रभाव पड़ता है। यह कहना कि आप के बच्चे का पढने-लिखने में मन नही लगता या फिर वह बेवकूफ है, सही नहीं होगा। कई बार सारी सुख-सुविधाएँ मिलने के बावजूद भी कोई बच्चा पढ़ाई से पिछड़ रहा हो, तो उसे डांटने की बजाए पहले उसके पीछे निहित वजहों को जानने समझने की जरूरत है।

हालाँकि कई बच्चों के रिजल्ट खराब आने की वजह समार्ट फ़ोन भी है, जिसमें बच्चे दिन भर अपना सर घुसाए रहते हैं, लेकिन हम यहाँ उन बच्चों की चर्चा नही कर रहे हैं क्योंकि उस समस्या के भी कई सारे पहलु हैं।

हर बच्चा होता है स्पेशल : अगर आप को लगता है कि जिन बच्चो के अंक कम आये हैं, वो कमजोर हैं, तो आपका सोचना बिल्कुल गलत है। किसी भी व्यक्ति-विशेष की शिक्षा का आंकलन उसके प्राप्त अंको से करना निहायत ही बेवकूफी है। जरूरी नहीं हर बच्चा पढ़ाई में धाकड़ हो। कुछ बच्चे खेल में, कुछ बच्चे किसी अन्य क्षेत्र में, कुछ बच्चे कला के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं जिन्होंने 90 या इससे अधिक अंक प्राप्त किये हैं।

अत: अभिभावक न तो खुद दबाव में आये और न ही अपने बच्चों पर कम मार्क्स लाने का दबाव बनाये। उन्हें यह जानने की जरूरत है कि परीक्षा से और अंकों से आगे भी दुनिया में काफी कुछ है देखने, जानने और करने के लिए।

जिन्दगी की पाठशाला इससे कही अधिक ऊँची और बड़ी है, जिसे समझने के लिए इन कोरे अंको की नहीं बल्कि अनुभव की जरूरत होती है। अत: कम मार्क्स वाले बच्चों को अपने रास्ते खुद चुनने दीजिये। हो सकता है जिन्दगी की पाठशाला में अपने अनुभवों से उन्हें इससे कुछ बेहतर हासिल हो जाए।

अंक लाने वाली मशीन नहीं है बच्चे : बच्चों में भरपूर कल्पनाशीलता और सिखने की इच्छा होती है, लेकिन वर्तमान शिक्षा प्रणाली, लम्बा-चौड़ा पाठ्यक्रम, बच्चों के वजन से भारी बस्ते और आज का बोजिल शिक्षातंत्र। ये सब मिल कर बच्चों की प्रतिभा को कहीं गायब कर देते हैं। इसी वजह से आज के दौर के ज्यादातर बच्चे इस भेड़चाल में शामिल होकर सिर्फ मार्क्स लाने वाली मशीन बन गये हैं। उनकी असली प्रतिभा तो शायद ही कभी उभर कर सामने आ पाती है। वह कही किसी कोने में दुबक कर रह जाती है और बच्चों का पूरा बचपन अपने अभिभावकों की अपेक्षाओं को पूरा करने में बीत जाता है।

जरूरत है उन्हें बिना शर्त प्यार और सम्मान देने की : मुश्किल और अनिश्चतता की इस घड़ी में आपके बच्चों को सबसे ज्यादा जरूरत है आपके प्यार और भरोसे की। आपको विपरीत परस्तिथियों में भी कदम-से-कदम मिला कर उनके साथ चलना होगा। केवल अभिभावकों को ही नहीं बल्कि आस-पड़ोस, नाते-रिश्तेदार सभी को उन्हें भरपूर सपोर्ट और प्यार देना होगा, ताकि किसी भी बच्चे को निराश होकर आत्महत्या जैसा भयावह कदम न उठाना पड़े। आपके नि:स्वार्थ प्रेम के दम पर ये बच्चे एक दिन जरूर दुनियां जीतेंगे।

हार और जीत जिन्दगी का हिस्सा : उन्हें यह समझाएं कि निराश नहीं होना है। न ही अपने अंदर नकारात्मक समाहित करके गलत कदम उठाना है। हारना-जीतना तो जिन्दगी का एक हिस्सा है। हमें बस जरूरत है, सही समय पर सही सीख लेने की और निरंतर अपने ईमानदार प्रयास जारे रखने की। ऐसा करने से आज जो हारा है निश्चय ही कल वह जीतेगा। हमें हर राह पर अपने दृढ़ता का प्रदर्शन करना होगा, बाकी इस तरह की छोटी-मोटी बाधा रूपी लहरे तो आती ही रहती हैं। हमारे धैर्य एवं संयम की परीक्षा लेने के लिए असली शिक्षा तो संस्कारों को प्रदर्शित करती है। हमारे अंदर कितनी कमियां रह गई हैं, हमें इस बात का आभास करता है।

अभी समय है आप बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं निराश न हों। अपने अंदर जीतने की चाह को कभी समाप्त न होने दें। यह होनी भी नहीं चाहिए । किसी की उम्मीद के मुताबिक परिणाम न आने पर कुंठित न हों।

शिक्षा तंत्र में है सुधार की जरूरत : महात्मा गाँधी ने अपनी पत्रिका ‘हरिजन’ में लिखा था कि अंग्रेजी एजुकेशन सिस्टम हमें गिटर-पीटर अंग्रेजी बोलने वाले ग्रेजुएट देगी, जो चाय की दुकानों पर जोबलेस रह कर सिर्फ देश की बदहाली पर चर्चा करते मिलेंगे। वास्तविकता के धरातल पर वह देशहित में योगदान देने में असमर्थ होंगे।

आज हम उसी दौर में शामिल हो गये हैं। आज जिस गति से देश-दुनिया की आबादी बढ़ रही है और उसके अनुकूल साधनों की पर्याप्तता पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है, ऐसे में क्या हम वर्तमान शिक्षा प्रणाली के सहारे समग्र विकास का सपना साकार कर सकते हैं, इस बारे में गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

(साभार हिंदी विवेक)

और पढ़े: पढ़ें कब अर्थात् विद्यार्थी जीवन में अध्ययन किस समय करे?

3 thoughts on “अंक लाने वाली मशीन नहीं है बच्चे, हर बच्चा है खास

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *