✍ डॉ. कुलदीप मेहंदीरत्ता
बंकिम चन्द्र चटर्जी का नाम सुनते या पढ़ते ही प्रत्येक भारतीय को वन्दे मातरम का स्मरण हो आता है, मानो दोनों परस्पर अविभाज्य हों और भारत भूमि की श्रेष्टता के प्रतीक हों। कवि और उपन्यासकार बंकिम चन्द्र ने भारत भूमि से वंदनीया माँ का स्वरूप प्रदान कर स्वतन्त्रता संग्राम में भारतीयों का जो अमिट सम्बन्ध स्थापित किया वह साहित्य के जगत में अतुलनीय और अभिनन्दनीय है। वन्दे मातरम उनकी वह रचना थी जिसने बंकिम चन्द्र को साहित्य के आकाश में सूर्य के समान स्थापित कर दिया।
बंगाल के चौबीस परगना क्षेत्र के गांव कंतलपारा में 27 जून 1838 को जन्मे बंकिम चन्द्र प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे। बचपन से ही लेखन और पठन में रूचि होने के कारण युवावस्था के प्रयत्न से बंकिम चन्द्र ने उपन्यासों की रचना आरम्भ करी दी। प्रारम्भ में उनके उपन्यास, समाचार पत्रों में शृंखला रूप में प्रकाशित हुए। अंग्रेजी उपन्यास लेखन बंगाली भाषा में साहित्य सृजन करने लगे और 1865 में उनका पहला बंगाली उपन्यास प्रकाशित हुआ।
बंकिम चन्द्र की सर्वाधिक प्रतिष्ठित कृति ‘आन्नद मठ’ जो कि प्रारम्भ में एक मासिक पत्रिका ‘बंग दर्शन’ में किस्तों में प्रकाशित हुई थी। 1882 में ‘आन्नद मठ’ एक उपन्यास के रूप में प्रकाशित हुआ यह उपन्यास इतना प्रसिद्ध हुआ कि इसे पांच बार पुनर्प्रकाशित किया गया। अन्य भाषाओं में अनुदित इस उपन्यास को बांग्ला में इतर भी हाथोंहाथ लिया गया।
बंकिम चन्द्र ने चौदह बंगाली तथा एक अंग्रेजी उपन्यास की रचना की। जिसमें से दुर्गेशनदिनी, कपाल कुण्डला, देवी चौथरानी, सीताराम मृणालिनी आदि रचनाएँ बहुत पंसद की गई। उनकी विभिन्न रचनाओं पर फिल्मों का निर्माण भी किया गया, जिसमें कपाल कुण्डला, दुर्गेशनन्दिनी, रजनी, आनन्द मठ, देवी चौथरानी आदि सम्मिलित हैं।
बंकिम चन्द्र का प्रारम्भिक राष्ट्रवादी लेखकों और उपन्यासकारों में प्रमुख स्थान है। महर्षि में संवर्धन की भूमिका की प्रशंसा की। बंकिम ने साहित्य सृजन का मूल तत्व राष्ट्रवाद तथा देशभक्ति है। ‘आनन्दमठ’ का एक छोटा सा गीत हमारे स्वतंत्रता संघर्ष का अमूर्त नायक बना जिसमें श्रद्धेय मानते हुए न जाने कितने भारतीयों ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक ‘वन्दे मातरम’ ने भारतीयों में देशभक्ति का वह ज्वार उत्पन्न किया कि कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक ‘भारत’ शब्द ‘भारतमाता’ के रूप में स्थापित हो गया। भारत माता केवल भूमि का टुकड़ा न रहकर भारतीयों की माता के रूप में प्रतिष्ठित हो गई।
धर्म और आध्यात्मिकता बंकिम चन्द्र चटर्जी के साहित्य रचना के अभिन्न अंग है। उनके साहित्य में राष्ट्रवाद भी आध्यात्मिक आवरण में पाठकों के समक्ष उपस्थित होता है। आनन्द मठ में चित्रित भारत माता का रूप देशभक्ति और आध्यात्मिक एकरूपता का स्थापित प्रतीक चिन्ह् है। उनकी रचनाएँ लोक रहस्य, विज्ञान रहस्य तथा विचित्र प्रबन्ध आदि उनके आध्यात्मिक मूल्यों और ज्ञान को स्पष्टतः प्रतिपादित करते हैं।
धर्म की भारतीय अवधारणा अर्थात् नैतिक मूल्य और कर्त्तव्य आधारित जीवन, बंकिम चन्द्र के साहित्य सृजन के प्रमुख प्रेरक तत्वों में से एक है। उनके साहित्य में जीवन के नैतिक मूल्यों की स्थापना का प्रयास किया गया है। उनके द्वारा रचे गए चरित्रों में हम नैतिक द्वन्द्व से घिरा पाते है। ‘कृष्ण चरित्र’ में उन्होंने भगवान कृष्ण के जीवन ओर कार्यों में आने वाली नैतिक प्रश्नों और द्वन्दों को स्पष्टता से प्रकट किया है।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का काल भारतीय इतिहास में जागरण का काल है। अंग्रेजों के विरूद्ध इस विकट संघर्ष में महिलाओं की भूमिका कहीं भी पुरूषों की तुलना मे कम नजर नहीं आती। महिलाओं की भूमिका और योगदान को बंकिम चन्द्र ने अपने साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान दिया। बंकिम चन्द्र ने महिला पात्र सुदृढ़ और आत्मविश्वासी पात्र हैं जो न केवल परिवार बल्कि समाज के सुधार में भी महत्वपूर्ण भमिका निभाते हैं। उनकी प्रसिद्ध रचना ‘देवी चौथरानी’ बंकिम चन्द्र के महिला सम्बन्धी विचारों की प्रतिनिधित्व रचना है जिससे महिला पात्र के माध्यम से महिला सशक्तिकरण को तथा समाज में आए परिवर्तनों को प्रतिपादित किया है।
जाति प्रथा और अंधविश्वासों पर बंकिम चन्द्र ने अत्यन्त कठोर प्रहार किए। सामाजिक बुराईयों की साहित्य के माध्यम से बंकिम चन्द्र ने तीव्र आलोचना की। अपनी रचना ‘विष वृक्ष’ में बंकिम चन्द्र ने सामाजिक रीतियों तथा पूर्वाग्रहों के व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों की चर्चा की है। नगेन्द्र और कुंदनंदिनी की दुःखद कहानी बंकिम चन्द्र की समाज सुधारक दृष्टि की परिचायक है।
बंकिम चन्द्र के ऊपर वेदान्त दर्शन तथा आदर्श वादी विचार मूल्यों का अत्यन्त प्रभाव था। उनके उपन्यासों के संवादों और पात्रों की संरचना योजना पर वेदान्त दर्शन का प्रभाव दिखाई पड़ता है। उनके उपन्यासों के चरित्र आदर्शवाद से प्रेरित दिखाई पड़तें है। चरित्रों को ऐतिहासिक आवरण प्रदान करते हुए उनमें विशिष्ट आदर्श गुणों का संयोजन बंकिम चन्द्र ने इस प्रकार किया है कि उनके बहुत से पात्र-पुरातन सतयुग अथवा वैदिक कालीन प्रवृतियों के दिखाई पड़ते हैं।
बंकिम चन्द्र का साहित्य एक ओर जहां इतिहास उन्मुख है, परम्परावादी दिखाई पड़ता है वहीं दूसरी ओर अप्राकृतिक मूल्यों और अप्राकृतिक जीवन की प्रवृतियों को उन्होंने अपने साहित्य में पर्याप्त स्थान दिया है। वस्तुतः बंकिम चन्द्र पुरातन आदर्श मूल्यों के साथ आधुनिक जीवन शैली का आदर्श समन्वय स्थापित करना चाहते थे। जातिवाद से टकराहट, महिला शिक्षा और अग्रणी भूमिका आदि उनके प्रगतिशील विचारों के परिचायक है। उनके साहित्य में अनगिनत ऐसे स्थान है जहां उन्होंने भारत की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर ओर आधुनिक विकास के उचित सामंजस्य स्थापना की कल्पना प्रस्तुत की है।
उपनिवेशवाद तथा पराधीनता से संघर्ष की प्रेरणा उनके साहित्य दर्शन की एक प्रमुख विशेषता है। बंकिम चन्द्र के पिता तथा वे स्वयं अंग्रेजी शासन में बड़े दायित्वों पर रह चुके थे। उन्होंने बड़े निकट से औपनिवेशिक शोषण को देखा था इसलिए उनके साहित्य में उपनिवेशवाद तथा पराधीनता में संघर्ष के निरन्तर दर्शन होते हैं, उन्होंने इस शोषण के विरूद्ध संघर्ष में अपनी साहित्यिक वाणी प्रदान की। अमानवीय औपनिवेशिक शासन और दमन के विरुद्ध उनका साहित्य स्वतंत्रता तथा आत्म निर्भरता जैसे तत्वों को साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करता है।
बंकिम चन्द्र का साहित्य ‘कर्मयोग’ की समाज में स्थापना का दर्शन है। श्रीमद् भगवदगीता से प्रभावित बंकिम चन्द्र ‘निष्काम कर्मयोग’ की स्थापना की धारणा में समर्थक थे। उनके उपन्यासों के अधिकांश पात्रों निष्काम कर्म वृति को प्रदर्शित करती है। उनके पात्र तथा साहित्य ‘कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:’ की प्रकृति का जयघोष है जिसमें उनके पात्र परिणाम की अपेक्षा किए बिना निस्पष्ट भाव से कर्म पथ पर निरन्तर अग्रसर नजर आते है। संन्यासी विद्रोह पर आधारित आनन्द मठ में पात्रों में यह विशेषता स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है।
प्राचीन भारतीय संस्कृति तथा दर्शन की पुनर्स्थापना का प्रयास उनके साहित्य की अनुपम विशिष्टता है, प्राचीन भारतीय गौरव के प्रति बंकिम चन्द्र निरन्तर चिन्तनशील तथा आग्रही थे। उनके ऐतिहासिक उपन्यास दुर्गेश नन्दिनी और अंग्रेजी उपन्यास ‘राजमोहन्स वाईफ’ में उन्होंने भारतीय इतिहास और प्राचीन संस्कृति का जो जयघोष किया है वह अन्यत्र कहीं दुर्लभ है और पाठकों में अपनी सस्कृति और सभ्यता के प्रति गौरव की अनुभूति कराने में सक्षम है।
इस प्रकार बंकिम चन्द्र चटर्जी का साहित्य भारत की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक परिस्थितियों को आधार बनाना, नए समरस समाज और विकसित राष्ट्र की अवधारणा की प्रस्तावना है। उनके साहित्य दर्शन का लक्ष्य श्रेष्ठ, समरस और समर्थ भारत की स्थापना है। बंकिम चन्द्र का अधिकांश साहित्य भले ही बांग्ला भाषा में रचित हो पर उनकी विचार भूमि तथा दर्शन दृष्टि भारतीय थी जो अन्ततः ‘सर्वे भन्तु सुखिनः’ तथा ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का संदेश देती है। उनका साहित्य निरन्तर युगों तक भारतीय तथा विश्व के पाठकों को भारतीय विचार तथा संस्कृति की दृष्टि से अवगत कराता रहेगा।
(लेखक विद्या भारती विद्वत परिषद के अखिल भारतीय संयोजक है एवं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र-हरियाणा में राजनीति शास्त्र के सहायक प्रोफेसर है।)
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