– संदीप कुमार
लाला लाजपत राय एक महान स्वतन्त्रता सेनानी, समाज सुधारक, लेखक, शिक्षाविद तथा राष्ट्र-विचारक थे। शेर-ए-पंजाब के नाम से विख्यात लालाजी राष्ट्रवाद तथा स्वाधीनता संग्राम के निर्भीक योद्धा के रूप में सम्पूर्ण देश के स्नेह के पात्र थे। उनका जन्म 28 जनवरी 1865 को पंजाब के लुधियाना जिले में स्थित जगराव में हुआ। ब्रह्म समाज, आर्य समाज, हिन्दू महासभा तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय सदस्य के रूप में देश की सेवा की। राष्ट्रीय विषयों पर विचार करते हुए लालाजी ने तात्कालिक शिक्षा की दशा को देखते हुए समुचित विचार करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा की दशा सुधारने के लिए “राष्ट्रीय शिक्षा योजना” प्रस्तुत की जोकि समुचित रूप से भारतीय मूल्यों तथा समाज की तात्कालिक और दीर्घकालिक आवश्यकताओ की पूर्ति करने वाली थी। 1 जून 1886 को ‘नेशनल डी.ए.वी. कॉलेज’ लाहौर की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान था।
1905 को कलकत्ता-बंगाल में राष्ट्रीय शिक्षा विषय पर एक महत्वपूर्व बैठक का आयोजन हुआ। इस बैठक में भारत में तत्कालीन शिक्षा की स्थिति, भारत के अनुकूल शिक्षा एवं राष्ट्रीय विद्यालय आदि विषयों के बारे में चर्चा हुई। बैठक में विपिनचंद्र पाल, रविन्द्र नाथ टैगोर, बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय विशेष रूप से उपस्थित थे। लालाजी ने इस बैठक में पंजाब की ओर से नेतृत्व किया।
लाला लाजपत राय के द्वारा तात्कालिक शिक्षा पर काफी गंभीरतापूर्वक विचार किया गया। उन्होंने शिक्षा पर काफी महत्वपूर्ण पुस्तकें तथा लेख लिखे। उनके द्वारा शिक्षा पर निम्न पुस्तकें लिखी गई ‘भारत में राष्ट्रीय शिक्षा’ (1919), ‘अप्रसन्न भारत’(1928), ‘भारत में राष्ट्रीय शिक्षा की समस्याएं’(1918) आदि। इसी प्रकार उन्होंने शिक्षा पर काफी महत्वपूर्ण लेख भी लिखे, जिनमें से कुछ मुख्य लेख इस प्रकार हैं; ‘भारत में शिक्षा’(1906,) ‘जापान में शिक्षा’(1920), ‘राज्य के नियंत्रण में शिक्षा’(1921), ‘राष्ट्र-भक्ति का शिक्षण’(1919) आदि। इन सभी पुस्तकों तथा लेखों में उन्होंने शिक्षा के प्राय: सभी आयामों का विवेचन करते हुए अपने विचार प्रस्तुत किये। शिक्षा की समस्याओं का गहनता से विश्लेष्ण करते हुए अपनी ‘राष्ट्रीय शिक्षा योजना’ प्रस्तुत की।
लाला लाजपत राय ने शिक्षा पर विचार करते हुए आजाद भारत के लिए अपनी एक राष्ट्रीय शिक्षा योजना प्रस्तुत की। राष्ट्रीय शिक्षा से लाजपत राय का अभिप्राय ऐसी शिक्षा प्रणाली से था जो सम्पूर्ण देश में एक समान हो, जो देश के सच्चे प्रतिनिधियों द्वारा नियंत्रित हो तथा देश के वास्तविक उद्देश्यों को प्राप्त करने में योगदान करने वाली हो। उनका राष्ट्रीय शिक्षा से अभिप्राय ऐसी शिक्षा से था जो मानव-मस्तिष्क का उद्बोधन करे, आत्मा को प्रबुद्ध करे तथा रचनात्मकता तथा वैचारिक शक्ति को बढ़ाती हो और देशवासियों को महान तथा अच्छे नागरिक बनाने में सहयोग करे।
लाजपत राय के अनुसार शिक्षा मातृभाषा में प्रदान की जानी चाहिए, क्योंकि राष्ट्रप्रेम, संस्कार, और आत्मीयता की भावना मातृभाषा के द्वारा उत्पन्न की जा सकती है। वह अन्य किसी भाषा के द्वारा उत्पन्न नहीं की जा सकती। पूरे देश के छात्रों को शिक्षा मातृभाषा में ही दी जानी चाहिए। अंग्रेज सरकार जहाँ शिक्षा में अंग्रेजी को बढ़ाने का भरपूर प्रयास कर रही थी वहीं लालाजी का मत था कि सभी पाठ्य पुस्तकों का लेखन और पठन-पाठन मातृभाषा में होना चाहिए तथा बच्चों को पुस्तकें मुफ्त में प्रदान की जानी चाहिए।
महान देशभक्त लाला लाजपत राय ने अपनी शिक्षा योजना में राष्ट्रीय चेतना को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया। लाजपत राय की शिक्षा योजना का एक प्रमुख उद्देश्य था कि शिक्षा नागरिकों में देशभक्ति की भावना पैदा करने में समर्थ हो। उन्होंने जापान, जर्मनी, फ्रांस आदि देशों की यात्राओं में यह अनुभव किया कि वहाँ के लोगों में राष्ट्र-भक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है और इसका कारण वहाँ की शिक्षा प्रणाली में उन देशों के राष्ट्रीय चेतना के तत्त्व हैं। इन देशों की शिक्षा प्रणाली से प्रेरित होकर उन्होंने देशभक्ति को बढ़ाने वाली शिक्षा का समर्थन किया। उनका विचार था कि शैक्षिक पाठ्यक्रम में भारत के गौरवपूर्ण इतिहास, हमारी महान विभूतियों के जीवन परिचय, राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण भाव तथा उनके योगदान को शामिल किया जाना चाहिए। शिक्षा के द्वारा विद्यार्थियों में ऐसी भावना भरी जानी चाहिए जिससे वे जाति, पंथ, समुदाय आदि को भूलकर अपने आप को एक राष्ट्र के निवासी समझें और अपने राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव रखें।
जीविकोपार्जन, स्व-रोजगार तथा आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की दृष्टि से लाला लाजपत राय ने तकनीकी शिक्षा को भी शैक्षिक पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने पर भी बल दिया। उन्होंने भिन्न देशों की अपनी यात्राओं में अनुभव किया कि भारतीय नागरिकों के समकक्ष सीखने की योग्यता अन्य किसी देश के नागरिकों में नहीं है, परन्तु उचित प्रशिक्षण तथा तकनीकी शिक्षा के अभाव में हमारी उत्पादन क्षमता और उत्पादन की गुणवत्ता अन्य देशों के मुकाबले काफी कम है। इसलिए गुणवत्तापूर्ण तथा पर्याप्त उत्पादन के लिए हमें अपने पाठ्यक्रमों में अनिवार्य रूप से तकनीकी शिक्षा को शामिल करना चाहिए ताकि नागरिकों को रोजगार प्राप्त हो और नागरिक आत्मनिर्भर बन सकें।
शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य का सर्वांगीण विकास माना जाता है लेकिन वर्तमान शिक्षा में भौतिक संसाधन प्राप्त करने का लक्ष्य बहुत से शिक्षा-संस्थानों की शिक्षा-व्यवस्था का केंद्र बिंदु है। अर्थ-प्रधानता के कारण व्यक्ति के शारीरिक विकास और स्वास्थ्य को अपेक्षानुसार महत्त्व नहीं दिया जाता। दूरदर्शी लालाजी ने शारीरिक शिक्षा को अपनी शिक्षा योजना में प्रमुख रूप से शामिल किया। लाजपत राय जी का यह मानना था कि ‘स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन वास करता है’ उन्होंने शारीरिक शिक्षा पर काफी बल दिया। उनका कहना था कि जब तक शरीर स्वस्थ नहीं होगा, नागरिक किसी भी रूप में देश के विकास में योगदान नहीं कर सकते, इसलिए वे शिक्षा के पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से शारीरिक शिक्षा को शामिल किये जाने के पक्षधर थे। उनका विचार था कि शारीरिक शिक्षा के माध्यम नागरिकों को शरीर और स्वास्थ्य के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वे निर्बाध रूप से देश के विकास में योगदान कर सकें।
“वर्तमान शिक्षा प्रणाली में मूल्यों की कमी को आज सारे विश्व के बुद्धिजीवी अनुभव कर रहे हैं। विभिन्न देशों में मूल्य शिक्षा अथवा चरित्र निर्माण के पाठ्यक्रमों को शिक्षा व्यवस्था का अनिवार्य अंग बनाया जा रहा है। भारतीय जागरण के पुरोधाओं ने स्वतंत्रता आन्दोलन में ही इस स्थिति की कल्पना कर ली थी। लाला लाजपत राय ने देश और पंजाब के लिए शैक्षिक रूपरेखा में भी आदर्शों तथा मूल्यों को शामिल किया। भारतीय जीवन मूल्य ऐतिहासिक रूप से संसार को मार्ग दिखलाने वाले मूल्य रहे हैं। लालाजी का कहना था कि शिक्षा का स्वरूप भारतीय मूल्यों पर आधारित होना चाहिए। भारतीय मूल्य जैसे आपसी भाईचारा, प्रेम, सहयोग, त्याग, बलिदान आदि को शिक्षा के माध्यम से भारतीयों के मन में बैठाना चाहिए ताकि वे अपने जीवन में तथा अपने आचरण में उनको शामिल कर सकें।
लाजपत राय जी ने हस्त-कौशल को भी बढ़ाने पर बल दिया। उनका मानना था कि राष्ट्रीय शिक्षा का उद्देश्य केवल सूचना अथवा तथ्य-आधारित ज्ञान न देकर नागरिकों में किसी हस्त-कौशल का विकास करना होना चाहिए ताकि उनका क्रियात्मक तथा रचनात्मक विकास हो सके। लाजपत राय का मानना था कि शिक्षा राज्य द्वारा नियंत्रित तथा निर्देशित होनी चाहिए ताकि शिक्षा में एकरूपता लाई जा सके हालांकि उनका यह भी कहना था कि शिक्षा में निजी भागीदारी हो सकती है परन्तु यह अनिवार्य रूप से राज्य के निर्देशों के अनुसार होनी चाहिए।
उपर्युक्त वर्णन के आधार पर हम निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि लाला लाजपत राय नि:संदेह न केवल निर्भीक राष्ट्रीय योद्धा थे बल्कि एक बड़े सामाजिक चिंतक और विचारक भी थे। उन्होंने न केवल भारतीय नागरिकों के मन में देशभक्ति की भावना को जागृत किया बल्कि एक वैचारिक क्रांति को भी पैदा किया। उन्होंने अपनी राष्ट्रीय शिक्षा योजना के माध्यम से एक राष्ट्र के लिए एक उत्तम शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला, उन्होंने अपनी शिक्षा योजना के द्वारा आजाद भारत की शिक्षा के लिए एक नींव तैयार की।
(लेखक चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय भिवानी-हरियाणा के राजनीति विज्ञान विभाग में शोध छात्र है।)
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