– रवि कुमार
1857 के स्वातंत्र्य समर के बारे में जिन्होंने अध्ययन किया है उनके सामने इस महान समर का उल्लेख आता है तो मन-मस्तिष्क में उस समय की घटनाएं दृश्यमान होने लगती हैं। वे सभी हुतात्मा सामने आ जाते हैं जिन्होंने इस राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। वे सभी वृक्ष जिन पर बंधे फांसी के फंदों पर हमारे पूर्वज झूम गए, सामने आ जाते हैं। वे सभी ग्राम जिन्हें अंग्रेजों ने जला दिया, अग्नि की लपटों के साथ दिखने लगते हैं। ये सब उनके साथ होता है, जिन्होंने इस स्वातंत्र्य समर के बारे में प्रकाशित साहित्य सागर में डुबकी लगाई हो। आइए जानने का प्रयास करते हैं इस साहित्य सागर को…
1857 के स्वातंत्र्य समर के विषय में सबसे महत्वपूर्ण एवं सर्वाधिक प्रचलित ग्रंथ वीर सावरकर कृत ‘1857 प्रथम स्वातंत्र्य समर’ है। 1909 में अंग्रेजी भाषा में इसकी प्रथम प्रति प्रकाशित हुई थी जिसका शीर्षक था- ‘1857 The Indian war of independence of 1857’ और लेखक का नाम छपा था- An Indian Nationalist. यह ग्रंथ मात्र इतिहास की पुस्तक नहीं है बल्कि स्वयं में इतिहास है। प्रकाशन पूर्व प्रतिबंधित हुई एवं लगभग सभी भारतीय भाषाओं में प्रकाशित यह पुस्तक 1947 स्वतंत्रता प्राप्ति तक के राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में स्वाहा हुए सभी क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों की प्रेरणा स्रोत रही हैं। इस प्रथम पुस्तक में सन्दर्भ ग्रन्थ सूची में वर्णित 33 पुस्तकें जो ब्रिटिश लेखकों द्वारा लिखी गई थी, उन्हें पढ़कर और लंदन के दो पुस्तकालयों (इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी व नेशनल म्यूजियम लाइब्रेरी) के दस्तावेजों को दो वर्ष खंगालकर वीर सावरकर ने यह ग्रन्थ लिखा। ये सभी ब्रिटिश पुस्तकें व दस्तावेज पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर ब्रिटिशों के गुणगान का उल्लेख करते हैं। परंतु इन्हें पढ़ते हुए स्वराज के लिए भारतीयों ने जो जो किया उसका वर्णन इस विशेष कृति में सावरकर ने संजोया है। राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए इस महासंग्राम को जो मात्र एक सैनिक विद्रोह का नाम देते हैं इस ग्रन्थ की झलक मात्र पाकर अपनी धारणा बदलने के लिए विवश हो जाते हैं।
1857 के महासंग्राम पर दो पुस्तकें प्रसिद्ध इतिहासकार श्री सतीश मित्तल द्वारा रचित हैं। एक है- ‘1857 की महान क्रांति का विश्व पर प्रभाव’। विश्व में अनेक क्रांतियाँ हुई। उन क्रांतियों में और 1857 की क्रांति में तुलनात्मक विश्लेषण को इस पुस्तक में लेखक ने रोचकता से उल्लेखित किया गया है। भारत में 1857 की घटना के कारण विश्व में अमेरिका, यूरोप और एशिया में जो उथल-पुथल हुई और इन महाद्वीपों के देशों में जो घटनाक्रम हुआ, लेखक द्वारा उसका सारगर्भित वर्णन इस पुस्तक का वैशिष्ट्य है। श्री सतीश मित्तल की दूसरी पुस्तक है- ‘1857 का स्वातंत्र्य समर : एक पुनरवलोकन’। इस पुस्तक में सम्पूर्ण समर को कम परंतु सारगर्भित शब्दों में सतीश मित्तल जी ने समेटा है। इस लघु ग्रन्थ में 1857 के सन्दर्भ में कुछ इतिहासकारों द्वारा फैलाई गई भ्रांतियों का निराकरण तथ्यों के आधार पर किया गया है। साथ ही लेखक द्वारा तथ्यों व सन्दर्भों को सही परिवेश में रखने का प्रयास किया गया है।
1857 के स्वातंत्र्य समर के पश्चात क्या हुआ होगा, एक ही वाक्य साहित्य जगत में घूमता है कि क्रांति विफल रही और अंग्रेजों का आधिपत्य सम्पूर्ण भारत पर हो गया। इसका उल्लेख साहित्य जगत में नहीं आता कि इस महासंग्राम से प्रेरणा प्राप्त कर राष्ट्र में स्वराज लाने के लिए प्रेरणा का केंद्र बिंदु यह महासंग्राम बना रहा। ‘1857 की क्रांति के प्रतिसाद’ श्रीधर पराधकर द्वारा लिखित इस पुस्तक में महासंग्राम से प्रेरणा प्राप्त कर देशभर में राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए क्या-क्या हुआ…इसका वर्णन है। महाराष्ट्र में वासुदेव बलवंत फड़के, पंजाब में रामसिंह कूका, क्रांतिकारियों एवं आजाद हिंद फौज के सैनिकों द्वारा चलाए गए स्वतंत्रता आंदोलन की प्रेरणा इस महासंग्राम को बताते हुए रोचक व सारगर्भित वर्णन इस पुस्तक का वैशिष्ट्य है।
दिल्ली इस स्वातंत्र्य समर का बड़ा केंद्र रहा। देशभर में सबसे अधिक बलिदान इस एक नगर में हुए। दिल्ली में जिसकी संख्या कुल एक लाख 53 हजार थी, 27000 लोग मारे गए थे। सबसे लंबा युद्ध इस नगर ने किया। ‘स्वतंत्र दिल्ली’ नाम से पुस्तक जो कि डॉ.सैयद अतहर अब्बास रिजवी द्वारा लिखित एवं उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा प्रकाशित है। यह पुस्तक उस समय के उर्दू समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों के आधार पर दिल्ली के संघर्ष को व्याख्यायित करती है।
स्वतंत्र भारत में 1857 की क्रांति का इतिहास लिखने के लिए रमेश चन्द्र (आर.सी.) मजूमदार को भारत सरकार द्वारा नियुक्त किया गया था परन्तु सरकारी समिति से अनबन होने के कारण वे इस कार्य से अलग हो गए और स्वतंत्र रूप से इस लेखन को पूर्ण किया। ‘सिपोय म्युनिटी एंड द रिवोल्ट ऑफ़ 1857’ इस नाम से अपनी पुस्तक को 1957 में प्रकाशित करवाया। उनके स्थान पर भारत सरकार ने एस.एस.सेन को नियुक्त किया और उन्होंने ‘एट्टीन फिफ्टिन सेवन’ के नाम से पुस्तक लिखी। मजूमदार द्वारा लिखित पुस्तक से 1857 की घटना के स्वरूप के बारे में मजूमदार एवं उनके शिष्य एस.बी.चौधरी में बौद्धिक बहस छिड़ गई, जिसका समापन करने के लिए 1965 में एस.बी.चौधरी ने ‘थ्योरी ऑफ इंडियन म्युटिनी’ नामक पुस्तक प्रकाशित की। इस पुस्तक में 1857 से 1965 तक इस महासमर के विषय में जितने मत प्रकट हुए थे और जितने नामकरण हुए थे, उन सभी की समीक्षा की गई है। इस पुस्तक के अंत में सावरकर द्वारा प्रस्तुत चित्रण और नामकरण को ही तथ्यों की कसौटी पर सही ठहराया है।
उपरोक्त वर्णित सात पुस्तकें ही 1857 के स्वातंत्र्य समर का वर्णन करने के लिए रची गई, ऐसा नहीं है। और भी अनेक रचनाएँ है जिनका वर्णन शब्द सीमा के कारण यहाँ नहीं हो सका। एक जानकारी के अनुसार, विनायक दामोदर सावरकर ने जब ‘1857 प्रथम स्वतंत्रता समर’ ग्रन्थ की रचना की उस समय उनके सामने मात्र दो हजार दस्तावेज उपलब्ध थे। आज इस महासंग्राम पर लगभग पच्चीस हजार दस्तावेज उपलब्ध है। कबीर जी ने कहा है- “जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ”। हम भी इस साहित्य सागर में डुबकी लगाने का विचार करें।
(लेखक विद्या भारती दिल्ली प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)
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