भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात 62 (तंत्रज्ञान का सांस्कृतिक स्वरूप)

 – वासुदेव प्रजापति

विज्ञान की भांति तंत्र ज्ञान का भूत भी हमारे सिर पर चढ़कर बोल रहा है। यंत्रों के नये-नये आविष्कारों में हमें अपने पुरुषार्थ की महत्ता जान पड़ती है। किन्तु तंत्रज्ञान के सन्दर्भ में सांस्कृतिक दृष्टि से विचार करने की आवश्यकता प्रतीत होती है। इस दृष्टि से विचारणीय बिन्दु निम्नलिखित हैं –

  1. तंत्रज्ञान भौतिक विज्ञान का एक अंग है, आज यही माना जाता है। वास्तव में यह भौतिक विज्ञान से जुड़ा हुआ नहीं है। यह समाजिक विषय है। भौतिक विज्ञान के साथ इसका सम्बन्ध केवल यंत्र बनाने की पद्धति और वह कैसे काम करता है, यहीं तक सीमित है। यंत्रों का क्या उपयोग करना? यह निर्णय करने का काम समाजशास्त्र का है।
  2. आज जिस टेक्नोलॉजी से हम प्रभावित हैं, वह यंत्रों का प्रयोग करने का शास्त्र है। भारत के इतिहास में बिना यंत्रों के अद्भुत सामग्रियों के निर्माण का उल्लेख मिलता है। आज समस्त विश्व को मानव निर्मित अद्भुत कलाकृतियों की जानकारी देने की आवश्यकता है। हमारे मंदिर केवल धार्मिक स्थल ही नहीं हैं, वे ज्ञान-विज्ञान के केन्द्र भी हैं।

जगन्नथपुरी मंदिर का वास्तुशिल्प

जगन्नाथपुरी का मन्दिर तकनीकी दृष्टि से अद्भुत है। यह मंदिर अनेक विशेषताओं को अपने में समेटे हुए है, जिसे देखकर सभी लोग दांतों तले अंगुली दबाने को विवश हो जाते हैं। ऐसी विशिष्ट तकनीक से निर्मित इस मंदिर के कुछ प्रमुख आश्चर्य ये हैं –

  • यह मंदिर समुद्र तट के समीप बना हुआ है। समुद्र की गर्जना दूर-दूर तक सुनाई देती है। परन्तु दर्शनार्थी ज्योंही मंदिर के सिंहद्वार में प्रवेश करता है, उसे समुद्र की आवाज सुनाई देनी बन्द हो जाती है। जब वह दर्शन करके बाहर आता है, उसे समुद्र की आवाज पुनः सुनाई दे जाती है। है न ध्वनि नियंत्रण का अद्भुत चमत्कार!
  • मंदिर के गुम्बद पर एक अष्टधातु का चक्र लगा हुआ है। इस चक्र को ऐसी तकनीक से लगाया है कि किसी भी दिशा से दर्शनार्थी इस चक्र को देखे, उसे चक्र सदैव उसके ठीक सामने ही दिखलाई पड़ता है। है न दिशा ज्ञान का चमत्कार!
  • मंदिर के गुम्बद के ऊपर एक विशाल ध्वज लहराता रहता है। अन्य सभी मंदिरों में लगा ध्वज हवा की दिशा में लहराता है, परन्तु इस मंदिर का ध्वज हवा की विपरीत दिशा में लहराता है। है न वायु ज्ञान का अद्भुत चमत्कार!
  • प्रत्येक भवन की छाया सूर्य की गति के अनुसार पृथ्वी पर पड़ती है। परन्तु आपको यह जानकर घोर आश्चर्य होगा कि इतने विशाल मंदिर की छाया दिन के किसी भी समय पृथ्वी पर नहीं पड़ती। है न प्रकाश के ज्ञान का चमत्कार!
  • हम देखते हैं कि प्रत्येक मंदिर के ऊपर अनेक पक्षी बैठे रहते हैं और मंदिर की दीवारों को गन्दा करते हैं। परन्तु यह मंदिर इसका अपवाद है। इस मंदिर पर बैठना तो दूर, इसके ऊपर कोई पक्षी कभी भी उड़ता हुआ दिखाई नहीं देता। इतना ही नहीं मंदिर के ऊपर से कोई हवाई जहाज भी नहीं उड़ता। इसका यह अर्थ निकलता है कि मंदिर निर्माण करने वालों ने इस मंदिर के चारों ओर ऐसा ऊर्जा चक्र बनाया हुआ है, जिसे पक्षी भेद नहीं सकते। है न ऊर्जा विज्ञान का चमत्कार!
  • मंदिर है तो दूर-दूर से दर्शनार्थी भी आयेंगे। उन्हें प्रसाद भी मिलना चाहिए। इसलिए मंदिर में ही प्रसाद बनता है। यहाँ की पाकशाला में प्रसाद पकता है। प्रसाद मिट्टी के सात बर्तनों में पकाया जाता है। इन बर्तनों को लकड़ी के चूल्हे पर एक के ऊपर एक सात बर्तन रखे जाते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि अग्नि सभी बर्तनों के नीचे जलती है, परन्तु सबसे ऊपर के बर्तन का भात सबसे पहले पकता है। शेष बर्तनों में भी इसी क्रम से भात पकता है। है न वाष्प द्वारा पाककला के ज्ञान का चमत्कार! यह है भारत की तकनीक। जो यंत्रों का चमत्कार नहीं, मानव बुद्धि का चमत्कार है। और ये चमत्कार व्यष्टि, समष्टि और सृष्टि का अहित करने वाले भी नहीं हैं। इसलिए हमारा यह मानना है कि तंत्र ज्ञान केवल भौतिक विज्ञान का विषय नहीं है, यह उससे अधिक सामाजिक विषय है।
  1. यंत्रों का निर्माण कठिन कार्यों को सरलता से व शीघ्र पूर्ण करने के उद्देश्य से हुआ है। इस अर्थ में यंत्र मनुष्य के सहयोगी हैं। किन्तु मनुष्य जीवन को सरल व सुखी बनाने वाले यंत्र आज मनुष्य के सामने अनेक संकट खड़े कर रहे हैं। वे मनुष्य का स्थान ले रहे हैं।

यंत्रों द्वारा मनुष्यों का स्थान ले लेने के कारण, मनुष्य बेकार हो रहा है। उसकी कार्यक्षमता तथा कार्यकुशलता दोनों में कमी हो रही है। उसका हुनर उसके हाथ से जा रहा है। और तो और उसकी काम करने की वृत्ति क्षीण होकर उसे आलसी व निकम्मा बना रही है। मनुष्य की यह स्थिति उसके स्वयं के लिए तथा समाज के लिए चिन्तनीय बन गई है। हमें इसका उपाय खोजना होगा।

  1. यंत्रों ने व्यष्टि व समष्टि के साथ-साथ सृष्टि के समक्ष भी पर्यावरण का नाश करने की भयंकर चुनौती खड़ी कर दी है। यंत्र मनुष्य का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य तो नष्ट कर ही रहे हैं, साथ में वायु, जल और ध्वनि को भी खराब कर रहे हैं। और अर्थ तंत्र को भी विनाशक बना रहे हैं। इसलिए पर्यावरण को नष्ट करने वाली यांत्रिक तकनीक का कोई उपाय तो ढूंढना ही होगा।

भारत विकास परिषद का अहमदाबाद में एक वर्ग था। एक जैन मुनि उसमें आए थे। उन्होंने अपना एक अनुभव सुनाया। मैं एक महाविद्यालय के कार्यक्रम में गया। उसमें एक वक्ता ने कहा, विज्ञान के कारण आज से सौ साल तक जो समस्या उत्पन्न होने वाली है, उसका आज ही विचार करना है। जैसे- सौ साल में कोयला समाप्त हो जाएगा, तो ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत की खोज वह आज करता है। इस पर जैन मुनि ने कहा कि जैसे आज का वैज्ञानिक विकास नीति विहीन, मूल्य विहीन तथा जैव सृष्टि का शत्रु बन रहा है, जैसे रासायनिक व आणविक संहारक शस्त्रास्त्र बने हैं और मानव जैसा स्वार्थी व लोलुप बन रहा है, उससे आने वाले समय में विज्ञान का यह सामर्थ्य सारी दुनिया को ही कोयला बना देगा। अतः विकल्प कोयले का नहीं, उस कोयला बनी दुनिया के उस कोयले को जलाएगा कौन? यह विचार करने की आवश्यकता है।

आज के विज्ञान में प्रकृति के प्रति मातृत्व की भावना के स्थान पर भोग्या की मानसिकता के फलस्वरूप विज्ञान समूची जैव सृष्टि का दुश्मन बनता जा रहा है। विभिन्न उद्योगों से निकलने वाली किरणें एक ओर घातक रोगों का कारण बन रही हैं तो दूसरी ओर ओजोन परत जो सूर्य से आने वाली घातक पराबैंगनी किरणों से सृष्टि की रक्षा करती है, उसमें छेद हो रहा है, इस कारण सम्पूर्ण सृष्टि को खतरा है। जंगल कटने के कारण मौसम अनियमित हो रहा है। अनियंत्रित औद्योगीकरण से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। तामान के बढ़ने से ग्लैशियर पिघल जायेंगे, समुद्र तल के बढ़ने से कई नगर तथा द्वीप समुद्र के गर्भ में समा जायेंगे। ध्वनि प्रदूषण इतना बढ़ रहा है कि वह पागलपन के निकट ले जायेगा। उद्योगों का वेस्टेज, पानी को प्रदूषित कर रहा है। अर्थात् आज सारी वृक्ष, पशु, जैव सृष्टि खतरे में हैं। इसलिए यंत्ररूपी इस राक्षस द्वारा उत्पन्न संकटों का समाधान खोजना होगा।

  1. यंत्र जड़ है, वह चेतन मनुष्य की भाँति सब कुछ नहीं कर सकता। यंत्र का उपयोग लेने वाली बुद्धि है, और बुद्धि का स्वामी मनुष्य है। मनुष्य को ही अपनी बुद्धि व्यक्ति, समाज व सृष्टि का कल्याण चाहने वाली बनानी होगी। इसीलिए हमारा यह कहना है कि तंत्र ज्ञान भौतिक विज्ञान का विषय नहीं है, यह सामाजिक विषय है।

मनुष्य की बुद्धि ठीक हो जाने से एक कल्याणकारी तकनीक का विकास होगा। उस तकनीक के लिए भारत को कुछ भी नया करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। क्योंकि इस दिशा में भारत का इतिहास समृद्ध है।

(लेखक शिक्षाविद् है, भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला के सह संपादक है और विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के सचिव है।)

और पढ़ेंभारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात 61 (विज्ञान का सांस्कृतिक स्वरूप)

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