पाती बिटिया के नाम-43 (पुरुषार्थ और प्रतिभा)

 – डॉ विकास दवे

प्रिय बिटिया!

हम यदि एक बार दृढ़ निश्चय कर लें और श्रमनिष्ठा हृदय में हो तो सफलताएँ स्वयं चलकर चरण चूमती हैं। कई बार हम परिस्थितियों को दोष देने लगते हैं और अपनी असफलताओं के लिए कई बहाने खोज लेते हैं किन्तु ऐसे कई व्यक्तित्व भारत में हुए हैं जिन्होंने विपरित परिस्थितियों में भी सफलताएँ अर्जित की।

तमिनाडु के तिरूवलूर क्षेत्र के उयुबड़ी ग्राम में जन्मे भुत्तु स्वामी अय्यर एक ऐसे ही व्यक्ति थे। पिता नेत्रहीन थे इसलिए माताजी मेहनत मजदूरी कर जैसे-तैसे बालक का पालन पोषण कर रही थीं। बालक सदैव चाहता था कि कोई छोटा-मोटा काम करके माताजी का सहयोग करें। माँ ने न चाहते हुए ही अनुमति दे दी। भुत्तु स्वामी ने पास के गाँव में मुनीम की नौकरी प्रारंभ की। बालपन से ही उनकी लगनशीलता से मालिक प्रभावित हुए। जब वहीं के तहसील कार्यालय में एक क्लर्क की आवश्यकता हुई तो स्वयं मालिक ने जाकर तहसीलदार से चर्चा कर उनकी नौकरी पक्की करवा दी।

उस कार्यालय के कार्य को भी धीरे-धीरे उन्होंने व्यवस्थित कर दिया। यहीं रहकर उन्होंने अपना शिक्षा प्राप्ति का क्रम भी पुन: प्रारम्भ कर लिया। जानती हो वे साधारण से साधारण निबंध प्रतियोगिता की तैयारी हेतु एक ही पुस्तक को नब्बे बार तक पढ़ डालते थे। इसी लगन, श्रम और लक्ष्य निष्ठा के कारण क्लर्क से अध्यापक, अध्यापक से प्रधानाध्यापक, विद्यालय निरीक्षक और फिर कौंसिल ऑफ एजुकेशन के मुंसिफ का दायित्व उन्होंने निर्वाह किया। पदोन्नति का यह क्रम रूका नहीं इसके बाद वे कलेक्टर बने कलेक्टर से न्यायाधीश और अन्त में मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पद तक जा पहुँचे। आप ही बताइए ऐसी विपरीत परिस्थिति में इतना ऊपर पहुँचने के लिए क्या उन्हें कोई जादुई मंत्र मिल गया था? तुम कहोगी नहीं किन्तु बेटे सचमुच उन्हें एक मंत्र मिला था वह मंत्र था परिश्रम और पुरुषार्थ का।

तुम्हारे पापा

(लेखक इंदौर से प्रकाशित देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)

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