पाती बिटिया के नाम-42 (समभाव ऐसा होता है)

 – डॉ विकास दवे

प्रिय बिटिया!

हम सबके जीवन में ऐसे अनेक प्रसंग आते हैं जब अनायास हमारी भेंट किसी ऐसे व्यक्तित्व से हो जाती है जिनके बारे में हमने पहले खूब सुना हो, पढ़ा हो। कई बार तो ये व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिनके प्रति हम अगाध श्रद्धा भी रखते हैं और उन्हें जीवन में अपना आदर्श भी मानते हैं। और ऐसी मुलाकात के समय सहज ही चलते-फिरते हमें कोई न कोई शिक्षा प्राप्त हो जाती है। तुम ही बताओ भला इस प्रकार की मुलाकात क्या हमारे लिए जीवनभर की पूँजी नहीं बन जाती है? अपनी चिट्ठी में कई प्रकार के विषयों पर बातचीत हो जाने के बाद इस बार विचार किया कि मेरे लिए स्मरणीय बन गई ऐसी मुलाकातों और उनसे प्राप्त हुई शिक्षा को तुम्हारे साथ बांटा जाय।

यह प्रसंग संभवतया 1985 या 86 का है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रथम वर्ष के शिक्षण हेतु संघ शिक्षा वर्ग में मैं उज्जैन में था। उस दिन सुना कि मा. श्री राजेन्द्र सिंह जी अर्थात् पूज्य रज्जू भैया आज मार्गदर्शन हेतु आ रहे हैं। बौद्धिक तो बहुत बढिय़ा हुआ ही। उसके बाद भोजन के समय दोपहर में बैठे तो मैं जानबूझकर उस स्थान पर बैठा जिसके ठीक सामने अतिथि बैठने वाले थे। श्रद्धेय रज्जू भैया पधारे। उनकी दृष्टि स्वयं की थाली पर गई। उसमें दही रखा हुआ था। उनकी दृष्टि आस-पास दौड़ी। जब उन्हें लगा कि दही सभी शिक्षार्थियों हेतु नहीं रखा गया है तो उन्होंने तत्काल व्यवस्था वाले एक बंधु को बुलाकर धीरे से कहा – “जब सबके लिए नहीं है तो मैं कैसे ले सकता हूँ? यह कटोरी वापस ले जाइए।”

बाद में पता चला कि स्वास्थ्यगत कारणों से उनकी थाली में दही रखा गया था किन्तु उस छोटी सी घटना ने मुझे सामाजिकता, सहयोग और संगठन की भावना का एक ऐसा पाठ पढ़ा दिया कि मेरे लिए वह शिक्षा और वह छोटी सी मुलाकात जीवनभर के लिए स्मरणीय बन गई। सचमुच ऐसे ही व्यक्तित्व समाज का संगठन कर सकते हैं।

  • तुम्हारे पापा

(लेखक इंदौर से प्रकाशित देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।

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