1857 प्रथम स्वातंत्र्य समर में हरियाणा का योगदान

 – रवि कुमार

कहते हैं कि 1857 मात्र एक सैनिक विद्रोह था। अर्थात इसमें केवल सैनिकों ने ही भाग लिया था। वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है। इस स्वातंत्र्य समर में सैनिकों के अलावा सामान्य नागरिकों ने भी भाग लिया था। वे नागरिक केवल नगरीय आँचल के ही थे, ऐसा भी नहीं है। ग्रामीण अंचलों के लोगों ने भी देश की स्वतंत्रता में अपनी भूमिका निभाई थी। हरियाणा, यह ग्रामीण बहुल प्रान्त है। 1857 के समय यह पंजाब का भाग होता था। 10 मई को प्रारम्भ हुए इस युद्ध को हरियाणावासी दिसम्बर 1857 तक खींच कर ले गए। 1857 के समर में हरियाणा के 3467 लोग बलिदान हुए थे। हरियाणा के 115 ग्रामों को अंग्रेजों द्वारा पूर्ण रूप से जला दिया था।

देश की स्वतंत्रता के लिए 1857 से पूर्व भी हरियाणा के विभिन्न स्थानों पर प्रयास हुआ था। 1814 में प्रताप सिंह के नेतृत्व में जींद में, 1818 में जोधा सिंह के नेतृत्व में छछरौली व जाबीत खाँ के नेतृत्व में रानियां में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह हुआ था। 1835 में बनावली (नेतृत्व – गुलाब सिंह), 1847 में कैथल (नेतृत्व – गुलाब सिंह व साहिब कौर), 1845 में लाडवा (नेतृत्व – अजित सिंह) में प्रयास हुआ था। 1824 में सूरजमल के नेतृत्व में रोहतक, हिसार व गुरुग्राम जिले में किसानों का विद्रोह हुआ था। स्वतंत्रता के लिए किए गए इन प्रयासों में सामान्य नागरिकों की भी भूमिका रही। 1854 में ‘लजवाना की लड़ाई’ नाम की गाथा लोकगीतों में प्रचलित है। जींद रियासत की सेना के विरुद्ध इस युद्ध में एक युवा लड़की ‘भोली’ ने अद्भुत वीरता दिखाई थी। एक ही दिन में 16 रियासती सैनिकों को मारकर भोली ने कीर्तिमान स्थापित कर दिया था। लोकगीतों में आज भी प्रचलित है- “सेर बाजरा झोली में, सोलह काटये भोली नै”।

10 मई 1857 को स्वातंत्र्य समर का ज्वालामुखी मेरठ में फूटा। उससे पूर्व बैरकपुर (बंगाल), अम्बाला (हरियाणा) एवं लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में युद्ध की चिंगारियां जलती रही। बैरकपुर छावनी में हुए घटनाक्रम के कारण मंगल पांडेय शहीद होता है। लखनऊ में नाना साहब पेशवा के प्रवास के बाद क्रांतिकारी टोली के नोजवान सदस्य कुछ हलचल करते हैं। और अम्बाला की क्रांतिकारी टोली एक-एक करके ब्रिटिश अधिकारियों और उनके सहयोगी भारतीयों के घरों, कार्यालयों व उनकी संपत्तियों को आग लगाने का कार्य करते हैं। 26 मार्च से लेकर 1 मई 1857 तक ऐसी तेरह घटनाओं का वर्णन है जिसमें आग लगाई गई। क्रांतिकारी कुछ प्रयासों में पूर्णतः सफल हुए और कुछ में आधे सफल हुए। अम्बाला छावनी में 60वीं व 5वीं स्वदेशी पैदल सेना थी। अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की चर्चा 10 मई से पूर्व ही दोनों बटालियन में हो रही थी। 60वीं बटालियन के सैनिकों ने 10 मई 1857 को प्रातः 9 बजे खुला विद्रोह कर दिया था।

13 मई को गोपाल देव ने, जो मेरठ के युद्ध में भी शामिल था, दिल्ली होते हुए गुडगाँव (गुरुग्राम) में 500 सैनिकों के साथ प्रवेश किया और गुरुग्राम में भी समर प्रारम्भ हो गया। विलियम फोर्ड कलैक्टर-मजिस्ट्रेट ने बिजवासन नामक गाँव में क्रांतिकारियों को रोकने का प्रयास किया, इसमें उसे असफलता हाथ लगी। फोर्ड गुड़गांव छोड़कर भाग गया। क्रांतिकरियों को इस अभियान में वहां के खजाने से 780000 रुपये हाथ लगे। यह सूचना पूरे जिले में फैल गयी और पिनगवा, फिरोजपुर झिरका, सोहना आदि सभी स्थानों के लोग इस समर में जुड़ गए। फरुखनगर रियासत के अहमद अली, बल्लभगढ़ के नाहर सिंह, पटौदी के अकबर अली ने इस युद्ध में शामिल होने का फैसला किया।

रोहतक जिले में मई के तीसरे सप्ताह में क्रांति की ज्वाला भड़कने लगी और संघर्ष जारी रहा। 24 मई को अम्बाला की 60वीं स्वदेशी थल सेना को वहां की स्थिति पर काबू पाने के लिए रोहतक भेजा गया। लेकिन विद्रोह को दबाने की बजाय 10 जून को इस सेना ने स्वयं खुला विद्रोह कर दिया। जुलाई और अगस्त में स्थिति और गंभीर हो गई। इस स्थिति पर काबू पाने के लिए अगस्त के दूसरे सप्ताह में लेफ्टिनेंट हडसन के नेतृत्व में एक बड़ा सैनिक दस्ता रोहतक भेजा गया। सर्वप्रथम खरखोदा में सूबेदार विरासत अली के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सेना का प्रबल विरोध किया। हडसन ने स्वयं स्वीकार किया – “रोहतक के ग्रामीण दानवों के सदृश्य लड़े”। अलीपुर और सोनीपत में मध्य लिबासपुर, कुंडली, मुरथल, बहालगढ़, खानपुर और हमीदपुर के वीरों द्वारा बार-बार अंग्रेजी सेना पर हमले किया। लिबासपुर के उदमीराम की युवकों की टोली के किस्से आज भी लोक-गीतों में याद किए जाते हैं।

हिसार जिले में इस युद्ध का आरंभ मई के तीसरे सप्ताह में हिसार, हांसी व सिरसा में स्थित हरियाणा-लाइट-इन्फेंट्री के सैनिक दस्तों ने किया और जल्दी ही सारा जिला इस युद्ध में सम्मिलित हो गया। जून के अंत में फिरोजपुर के डिप्टी कमिश्नर जनरल वान कोर्टलैंड के नेतृत्व में एक बड़ी सेना हिसार जिले में भेजी गई। 17 जून को ऊधा नामक गाँव में रानियां के नवाब के नेतृत्व में उनकी सेना ने युद्ध किया। 18 जून को अंग्रेजी सेना ने चतरावन गांव पर आक्रमण किया। अगले दिन ख़िरका गांव पर अंग्रेजी सेना का आक्रमण हुआ। ग्रामीणों ने डटकर मुकाबला किया परंतु युद्ध में असफल हुए। 19 अगस्त को हिसार को स्वतंत्र करवाने के लिए हिसार के किले के नागौरी गेट पर भयंकर युद्ध हुआ।

अंग्रेजों की विशेष सावधानी के बावजूद स्वातन्त्र्य समर की ज्वाला पानीपत व थानेसर में प्रज्ज्वलित हुए बिना न रह सकी। कैथल, असंध, जलमाना, पीपली, अमीन, कुरुक्षेत्र और लाडवा के क्रांतिकारियों ने अपने क्षेत्र से अंग्रेजों का समूल नष्ट कर दिया। इस क्षेत्र से गुजरने वाले शेरशाह सूरी मार्ग पर क्रांतिकारियों ने अधिकार जमा लिया। पानीपत के समीप इस मार्ग को मुक्त करवाने के लिए अंग्रेजी सेना ने आक्रमण किया परन्तु वे असफल रहे। कर्नल ह्यूज के नेतृत्व में भेजी गई सेना के साथ हुए युद्ध में बला नामक गाँव ने शत्रु को बुरी तरह हरा दिया।

कर्नल जेरार्ड के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने नारनौल पर आक्रमण किया। 16 नवम्बर 1857 को नारनौल के पास नसीबपुर नामक स्थान पर भयंकर युद्ध हुआ। राव तुलाराम के नेतृत्व में लड़े गए इस युद्ध में राव किशन सिंह वीर गति को प्राप्त हुआ। कर्नल जेरार्ड भी इस युद्ध में मारा गया।

1857 के संग्राम में गुरुग्राम जिले के 479 देशभक्तों का बलिदान हुआ। मेवात में 1019 लोग शहीद हुए। रेवाड़ी में 128, फरीदाबाद में 180, महेंद्रगढ़ में 485, झज्जर में 88, रोहतक में 100, सोनीपत में 87, भिवानी में 30, हिसार में 232, सिरसा में 203, पानीपत में 179, करनाल में 231, कुरुक्षेत्र में 42 और अम्बाला में 200 देशभक्त स्वतंत्रता की बलिवेदी पर इस प्रथम स्वातंत्र्य समर में चढ़ गए।

हरियाणा के जिन स्थानों के लोग शहीद हुए – जिला रोहतक – पिनाना, मौजा शामड़ी, खिड़वाली, रोहतक, महम, भालोट, बिंधवान, खाण्डा, कलानौर, काहनौर, किलोई, बैंसी, कांटी, झज्जर, बहादुरगढ़, कानौद, शामड़ी, पटौदी, सोनीपत, खेड़ा; जिला गुड़गांव – बादशाहपुर, पट्टी, खैराती, गुड़गांव, सोहना, तुर्कियावास, शेरशाह, पातली, पलवल, बहरोड़, फरुखनगर, हसनपुर, बुलवारी, सुलतानपुर, गड़राना, रसूलपुर, दिघोट, खुजुरका, जैसैनी, नुगली, बल्लभगढ़, रेवाड़ी, पहलादपुर, बागकली, फरीदाबाद, गुजरजाटान, झाड़सा, खेड़ा, रिठौज, कादरपुर, एयरवान, बोहड़ा, बड़का, दीघोट, छज्जू नगर, कासम, बुरका, आकेहड़ा, होडल, गढ़ी बड़ी, शाहजान पुर, सुसैनी, नागी। उस समय के रोहतक और गुड़गांव जिले के उपरोक्त स्थानों के 357 सूचीबद्ध नाम हैं, जिन्हें या तो फांसी दे दी गई या गोली मार दी गई। गुड़गांव जिले के 18 स्थानों से 39 क्रांतिकारियों के ऐसे सूचीबद्ध नाम हैं जिन्होंने इस स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और बाद में भूमिगत हुए तथा अंग्रेजों द्वारा पकड़े नहीं गए। इन क्रांतिकारियों में राव तुलाराम, गोपाल देव प्रमुख नाम हैं।

1857 की स्वातंत्र्य समर में जींद, नाभा और पटियाला रियासत ने क्रांतिकारियों का साथ न देकर अंग्रेजों का साथ दिया। इस महान ऐतिहासिक अवसर पर इन स्थानों के शासक अंग्रेजों का साथ न देते तो अंग्रेजों के लिए दिल्ली पर पुनः अधिकार करना असंभव था। 1918 में लिखे गए करनाल गजेटियर में वर्णित है- “करनाल के विद्रोह की सुचना ज्यों ही जींद के राजा को मिली, उसने अपने सैनिक दस्तों को कुछ करने का आदेश दिया। वह 18 मई को करनाल पहुंचा और शहर व आसपास शांति स्थापित कर ब्रिटिश सेना के आगे-आगे पानीपत की ओर बढ़ा”।

हांसी के लाला हुक्म चंद जैन एवं मिर्जा मुनीर बेग ने 1857 के स्वातंत्र्य समर में अपने स्थान पर नेतृत्व किया। अंग्रेजों का दिल्ली पर पुनः कब्जा होने के बाद एक पत्र सम्राट बहादुरशाह जफर की व्यक्तिगत फाइलों में मिला जो लाला हुक्म चंद जैन द्वारा बादशाह को लिखा गया था। दिल्ली के कमिश्नर सांडर्स ने यह पत्र हिसार के उपायुक्त को भेज दिया। लाला हुक्म चंद जैन, उनके भतीजे फकीर चंद और मिर्जा मुनीर बेग के विरुद्ध हिसार के उपयुक्त की कोर्ट में मुकदमा चला और फकीर चंद को रिहा कर, 14 जनवरी 1858 को शेष दोनों को फांसी की सजा सुना दी गई। 19 जनवरी को लाला हुक्म चंद जैन एवं मिर्जा मुनीर बेग को उनके घरों के सामने फांसी पर लटका दिया गया और उनकी लाखों की चल-अचल संपत्ति अंग्रेजी सरकार द्वारा जब्त कर ली गई। हांसी की लाल सड़क आज भी उन बलिदानियों की गाथा कहती है जिन्हें अंग्रेजों द्वारा रोड़ रोलर से कुचल कर मार दिया गया।

उपरोक्त वर्णित घटनाओं, स्थानों, बलिदानियों, रियासतों से स्पष्ट हो जाता है कि एक प्रकार से पूरा हरियाणा सामान्य नागरिकों सहित 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर में अपनी पूरी शक्ति के साथ जुटा रहा। उपर्युक्त ग्रामों व बलिदानियों की संख्या के आंकड़े रिकार्ड के अनुसार जो मिल पाएं, उन्हीं का वर्णन यहाँ हुआ हैं। ऐसे अनेक नाम व बलिदानियों की संख्या अभी तक अज्ञात हैं जिन्होंने अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। देश की स्वतंत्रता के लिए हरियाणा वासियों द्वारा किए गए शौर्य से भरपूर इस गौरवपूर्ण कर्तृत्व के लिए शत शत नमन!

(लेखक विद्या भारती हरियाणा प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)

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