– रवि कुमार
एक पौधे को प्रकाश न मिले तो उसकी क्या स्थिति होती है? एक विद्यालय में कार्यक्रम के दौरान भेंट स्वरुप सुंदर गमले में लगा हुआ एक तुलसी का पौधा मिला। उसे कक्ष में खिड़की के पास रख दिया गया। आधा-अधूरा प्रकाश उसको प्राप्त हो रहा था। दो दिन बाद उस पौधे के पत्ते मुरझा रहे थे, कुछ पत्ते काले पड़ रहे थे। पौधे को पानी तो दिया गया था परंतु फिर भी ऐसा क्यों हुआ? आजकल रक्त परीक्षण सामान्य हो गया। रक्त परीक्षण की रिपोर्ट का सर्वे करेंगे तो एक बात सर्वदूर मिलेगी, वह है- विटामिन डी और विटामिन बी-12 का कम होना। यह सर्वदूर है, ऐसा क्यों? ऐसी और भी अनेक बातें है, आइए इनके बारे में जानने का प्रयास करते हैं…।
पौधों में भी जीवन होता है, यह सर्व विदित है।
चेष्टा वायुः खमाकाशमूष्माग्निः सलिलं द्रवः।
पृथिवी चात्र सङ्कातः शरीरं पाञ्चभौतिकम्।।
अर्थात महर्षि भृगु कहते हैं कि इन वृक्षों के शरीर में गति वायु का रूप है, खोखलापन आकाश का रूप है, ताप अग्नि का रूप है, तरल सलिल का रूप है, ठोसता पृथ्वी का रूप है। इस प्रकार इन वृक्षों का यह शरीर पांच तत्वों- वायु, आकाश, अग्नि, जल और पृथ्वी से बना है।
प्रारंभिक विज्ञान में बताते हैं कि पौधे अपना भोजन सूर्य के प्रकाश में बनाते हैं। इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया कहा जाता है। पौधों को जो तत्त्व चाहिए वह 90% प्रकाश व 10% भूमि से प्राप्त करते हैं। अब विचार करने का विषय यह है कि पौधों को प्रकाश चाहिए और मनुष्य में भी जीवन है, उसको प्रकाश की आवश्यकता है या नहीं? अथवा कृत्रिम प्रकाश से उसका कार्य चल जाता है।
मानव शरीर पंच महाभूतों भूमि, जल, वायु, अग्नि व आकाश से मिलकर बना है।
आपोऽनिर्मारुतश्चैव नित्यं जाग्रा मूलमेते शरीरस्य व्यान प्राणानिह स्थिताः।।
महाभारत के शांतिपर्व में भी वर्णन है कि, प्राणियों के शरीर इन पाँच महाभूतों के मिलने से बनते हैं। गति वायु के कारण है। खोखलेपन आकाश का अंश, शरीर की गर्मी अग्नि का भाग और रक्त आदि तरल पदार्थ जल के अंश हैं। हड्डी, मांस आदि कड़े पदार्थ पृथ्वी के अंश हैं।
यजुर्वेद(7.42) में एक श्लोक है- “सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च”। इसके अनुसार सूर्य को ऊर्जा का स्रोत माना गया है।
अग्नि का संबंध सूर्य से है। सूर्य जितना अधिक प्रदीप्त होगा, उस समय अग्नि विशेषकर ‘जठराग्नि’ उतनी अधिक प्रज्ज्वलित होगी। आकाश तत्त्व की पूर्ति मानव शरीर में प्रकाश से ही पूर्ण होती है। यह पूर्ति कृत्रिम प्रकाश नहीं सूर्य के प्रकाश से होती है। हम अपने बारे में और अपने आसपास के बारे में दृष्टि डालें कि हम सूर्य के प्रकाश में कितना रह पाते हैं।
हमारे शरीर की विभिन्न जैविक क्रियाओं के संचालन के लिए प्रायः 290 नैनोमीटर से 770 नैनोमीटर तरंगदैर्घ्य वाला प्रकाश उपयोगी होता है। प्रकाश के संपर्क में आने से कभी-कभी कुछ लोगों की त्वचा लाल हो जाती है। ऐसा 290 से 315 नैनोमीटर तरंगदैर्घ्य वाली पराबैंगनी प्रकाश किरणों के संपर्क में आने से होता है। इसी प्रकार शरीर 280 से 400 नैनोमीटर तरंगदैर्घ्य वाले पराबैंगनी प्रकाश से प्रभावित होता है तो त्वचा काली हो सकती है और दाँतों में विकृति आ जाती है। हम अपनी आँखों से प्रकाश के कारण ही इस सुंदर दुनिया को देख पाते हैं। दृश्य प्रकाश की तरंगदैर्घ्य 400 से 780 नैनोमीटर की रेंज में आती है।
शरीर में रोगों की उत्पत्ति वात-पित-कफ में संतुलन बिगड़ने से होती है। ये तीन तभी असंतुलित होते हैं जब शरीर में पंच महाभूतों में से कोई न कोई कम या अधिक हो रहा होता हैं। विटामिन डी व विटामिन बी-12 की कमी का सबसे बड़ा कारण शरीर में आकाश तत्त्व की कमी के कारण होता है। समझने के लिए कहा जाए कि सूर्य का प्रकाश शरीर को जितना कम मिलेगा, उतना विटामिन डी व बी-12 शरीर में कम होगा। सूर्य के प्रत्यक्ष प्रकाश (धूप) में जितना अधिक रहेंगे, उतना विटामिन डी व बी-12 शरीर में प्रचुर मात्रा में रहेगा। विटामिन डी व बी-12 सूर्य के प्रत्यक्ष प्रकाश से अधिकांश और बहुत कम मात्रा में खाद्य पदार्थों से प्राप्त होता है।
शरीर में विटामिन डी की कमी से जल्दी थकान होना, हड्डियों, पीठ व मांसपेशियों में दर्द, घाव जल्दी ठीक न होना, बालों का झड़ना, रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना आदि होता हैं। विटामिन बी-12 की कमी की कमी से एनीमिया, हड्डियों से संबंधित रोग, विक्षिप्त होना, भूलने की बीमारी, तन्त्रिका तंत्र को क्षति, त्वचा से संबंधित रोग आदि होते हैं। आजकल यह रोग अधिक दिखने लगे हैं, जो आधुनिकता के नाम पर बदली जीवन शैली का परिणाम है।
हमें सूर्य का प्रत्यक्ष प्रकाश प्राप्त होता रहे तो क्या करना? कृत्रिम प्रकाश का उपयोग आवश्यकता होने पर अथवा विकल्प न होने पर करना। इसके लिए अपने घर, संस्थान आदि के बारे में विचार करने की आवश्यकता रहेगी। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात है- अपने मन की तैयारी करना। दिन में प्रकाश के लिए विद्युत उपकरण का प्रयोग नहीं करना। गर्मी हो या सर्दी, प्रतिदिन एक न्यूनतम समय के लिए धूप में रहने की आदत डालना। घर या संस्थान बना रहे हैं तो उसमें सूर्य के प्रकाश की उचित व्यवस्था रहे, ऐसा ध्यान रखेंगे। जो निर्माण हो चुका, उसमें इस दृष्टि से कुछ बदल कर सकते हैं। धूप सहन करने का अभ्यास कैसे बन सकता है और नवीन पीढ़ी को धूप से न बचाते हुए प्रत्यक्ष प्रकाश की आदत कैसे लगा सकते है, इस पर विचार व कार्य करने की आवश्यकता है।
(लेखक विद्या भारती दिल्ली प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)
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