डॉ० केशव बलिराम हेडगेवार एक प्रेरणादायी व्यक्तित्व

 – रवि कुमार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज पूरे विश्व में चर्चा का विषय बना हुआ है। संघ शक्ति का प्रभाव निरंतर बढ़ रहा है। संघ के स्वयंसेवकों द्वारा समाज जागरण व परिवर्तन के लिए किए गए कार्यों का परिणाम समाज, देश व विश्व के सामने एक प्रतिमान के रूप में खड़ा हो रहा है। इसी कारण यह विश्व में सर्वत्र व सर्वाधिक चर्चित है। संघ स्वयंसेवकों के प्रेरणा स्रोत एवं संघ मंत्र के उद्गाता डॉ० केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म दिवस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है। और इस अवसर पर उनको स्मरण करना सभी के लिए प्रेरणादायक हैं।

जिस प्रकार मां गंगा के विशाल आकार व समृद्धि को देखकर गंगोत्री के दर्शन करने की इच्छा मन  में बलवती होती है। उसी प्रकार संघ को देखकर, संघ के बारे के सुनकर, पढ़कर व जानकर संघ प्रणेता के बारे में जानने की इच्छा भी प्रकट होती है। कैसा रहा होगा डॉ० हेडगेवार का व्यक्तित्व!

डॉ० हेडगेवार का जन्म 1889 में नागपुर के एक सामान्य परिवार में वर्षप्रतिपदा के दिन हुआ। उनके पिता बलिराम पुरोहित का कार्य करते थे। कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढाई करने के बाद घर की आवश्यकता होने के बावजूद व्यवसाय न करके देश समाज के लिए जन्मजात देशभक्त डॉ० हेडगेवार ने अपना सर्वस्व अर्पण किया। उन्होंने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। 21 जून 1940 को डॉ० हेडगेवार का शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया। उनका जीवन व्यक्तित्व व विचार आज भी सभी के लिए प्रेरणादायक है।

डॉ० हेडगेवार कहा करते थे – ‘याची देहि याची डोला’। अर्थात इसी शरीर से इन्हीं आंखों से। लोग जीवन में बहुत से कार्य प्रारंभ करते है। परंतु उन्हें पूर्ण नहीं कर पाते। जीवन में एक लक्ष्य रखते है, परंतु उसे प्राप्त नहीं कर पाते। भारतीय इतिहास में बहुत से महापुरुषों ने समाज व राष्ट्र कार्य में एक लक्ष्य निर्धारण कर कार्य आरंभ किया लेकिन सभी के जीवन में उस कार्य की पूर्णता हुई, ऐसा नहीं है।

डॉ० हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की और उनके अंतिम समय तक इस कार्य को राष्ट्र व्यापी बनाया। उनका अंतिम भाषण नागपुर में संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष में हुआ। अपने अंतिम भाषण में उन्होंने कहा कि “मैं अपने सामने भारत का लघु रूप देख रहा हूँ।” उस वर्ग में भारत के प्रत्येक प्रान्त से स्वयंसेवक उपस्थित था अर्थात देश के प्रत्येक प्रान्त में संघ का कार्य पहुंच चुका था।

डॉ० हेडगेवार एक कुशल योजनाकार थे। जीवन में समाज व राष्ट्र कार्य के लिए उन्होंने जो भी योजना बनाई वह अपने आप में परिपूर्ण थी। योजना में कोई भी न्यूनता नहीं होती थी। बाल्यकाल में नागपुर के नील सिटी हाई स्कूल में वे पढ़ा करते थे। ‘वंदे मातरम’ कहने पर अंग्रेजों ने बैन लगा रखा था। एक अंग्रेज अधिकारी के विद्यालय निरीक्षण आने पर प्रत्येक कक्षा में ‘वंदेमातरम’ उद्घोष की योजना उन्होंने बनाई। कार्य सफल हुआ। सभी कक्षाओं में अंग्रेज अधिकारी के आने पर वन्देमातरम उद्घोष हुआ। बाद में विद्यालय बंद कर दिया गया। जांच कमेटी बिठाई गई, अनेक प्रकार से खोजबीन की गई। परंतु अंग्रेज महीनों मेहनत करने के पश्चात भी यह नहीं पता लगा पाए कि इस योजना का सूत्रधार कौन था।

डॉ० हेडगेवार की मित्रता व परिचय का दायरा काफी बड़ा था। नागपुर व कलकत्ता में शिक्षा के साथ साथ अनेक सामाजिक व क्रांतिकारी गतिविधियों में उनकी सक्रियता रहती थी। जंगल सत्याग्रह के बाद उन्हें एक वर्ष सश्रम कारावास भी हुआ था। वे तत्कालीन विदर्भ कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। इस कारण से स्वाधीनता के आंदोलन में सक्रिय क्रांतिकारियों, राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं स्थान स्थान पर प्रबुद्ध व्यक्तियों से उनका घनिष्ठतम परिचय हुआ और अनेक लोगों से मित्रता हुई। संघ स्थापना के पश्चात जब नागपुर से बाहर देशभर में संघ कार्य का विस्तार हुआ तो इस परिचय व मित्रता का काफी लाभ हुआ। ये सभी मित्र व परिचित लोग संघ कार्य के विस्तार में सहायक बने।

डॉ हेडगेवार ने कहा है, “संघ का कार्य व्यक्तियों को जोड़ने का है, तोड़ने का नहीं। अतः इसमें द्वेष की भावना, स्वार्थ, लोकेष्णा आदि का कोई स्थान नहीं है।”

डॉ० हेडगेवार का जीवन ही सभी के लिए प्रेरणा दायक था। संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधव सदाशिव गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरुजी कहा करते थे – “मैने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पुस्तकालय की सभी पुस्तकें पढ़ी है। परंतु उन पुस्तकों में निहित ज्ञान के आधार पर जीने वाला व्यक्तित्व डॉ० हेडगेवार है।” एक बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस डॉ० हेडगेवार से मिलने आए। डॉ० हेडगेवार अस्वस्थ थे और विश्राम कर रहे थे। श्रीगुरुजी उनकी व्यवस्था देख रहे थे। नेताजी ने श्रीगुरुजी से डॉ० हेडगेवार से मिलने का आग्रह किया। उन्होंने विश्रामावस्था के कारण कहा कि उन्हें जो कहना है मुझे कह सकते है। राष्ट्र जीवन के अनेक विषयों पर सुभाष चंद्र बोस जी व श्रीगुरुजी की चर्चा हुई। उनके सभी प्रश्नों का श्रीगुरुजी ने तर्कसंगत उत्तर दिया। परंतु फिर भी डॉ० हेडगेवार से मिलना है, ऐसा नेताजी ने आग्रह किया। जब वे डॉ० हेडगेवार जी से मिले, तब वही सब जिज्ञासाएं उन्होंने डॉ० हेडगेवार के सम्मुख रही। डॉ० हेडगेवार जी ने बड़े सरल शब्दों में उनकी जिज्ञासा शांत की और नेताजी को भी संतुष्टि हुई। श्रीगुरुजी का कहना था कि मेरे उत्तर व डॉ० हेडगेवार जी के उत्तर अलग नहीं थे। परंतु डॉ० हेडगेवार के शब्दों के पीछे उनका जीवन बोल रहा था।

डॉ० हेडगेवार अपने जीवन आचरण से सभी को सिखाते थे। पहले वे स्वयं करते थे, फिर करने के लिए कहते थे। अपने जीवन आचरण को छोटी छोटी बातों से उस समय के संघ स्वयंसेवकों को उन्होंने बहुत कुछ सिखाया और राष्ट्र जीवन के लिए सर्वस्व अर्पण करने के लिए प्रेरित किया। उनका जीवन आज भी सभी स्वयंसेवकों का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।

डॉ० हेडगेवार युगपुरुष थे। उन्होंने अपने जीवन में तीन महत्वपूर्ण कार्य किए। एक, भारत एक हिन्दू राष्ट्र है, यह विषय देश में पुनर्स्थापित किया। दूसरा, देश का समाज स्वयं को हिंदू कहने में हीनता अनुभव करता था। भारतीय समाज को हीनता के भाव से निकालकर स्वयं को हिन्दू कहने में गौरवान्वित अनुभव करवाया। आज देशभर में बना हिंदुत्व का वातावरण इसका परिचायक है। और तीसरा, ‘संघ शाखा’ नाम की अभिनव पद्धति का अविष्कार किया जिसमें नित्य-नियमित शारीरिक व बौद्धिक कार्यक्रमों से संस्कार ग्रहण कर राष्ट्रभक्ति व देशभक्ति से परिपूर्ण व्यक्ति निर्मित होता है।

ऐसे प्रेरणादायी व्यक्तित्व, युगपुरुष डॉ० केशव बलिराम हेडगेवार को उनके जन्म दिवस पर नमन!

(लेखक विद्या भारती हरियाणा प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)

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