– गोपाल महेश्वरी
आया है नूतन संवत्सर लेकर नया विहान।
लिख दे नीलगगन पर भारतजननी का जयगान।।
फूंक रहा है चैत्र चेतना के नवशंख सजीले,
प्रतिपद शुक्ल पथों पर बढ़ते चरण चपल गर्वीले
पहने हैं प्रकृति ने नव-नव पल्लव के परिधान।
लिख दे नीलगगन पर भारतजननी का जयगान।।
हम जगती के प्रथम राष्ट्र की गौरव परम्परा हैं,
स्वयं शक्ति ने पिला हमें पय अक्षय शोर्य भरा है,
हमसे ही संसार ने सीखे सिरजन के उद्गान।
लिख दे नीलगगन पर भारतजननी का जयगान।।
मानवता के उच्च शिखर पर हमने ध्वजा चढ़ाई,
मनु-नौका ने महाप्रलय से जीती सदा लड़ाई,
शांतियज्ञ की रक्षा हित हम करते शर संधान।
लिख दे नीलगगन पर भारतजननी का जयगान।।
साहस शील शांति सिरजन के हम उपमान रहे है,
ऋषियों से है रति ऋचाएं शुचि संस्कार गहे हैं,
नव गति नव कृति नवोन्मेष की हम साधक संतान।
लिख दे नीलगगन पर भारतजननी का जयगान।।
आज नया सूर्योदय सम्मुख शीत निशा है बीती,
जगे नए विक्रम मुहूर्त में विजिगीषा चिर चिती,
बने विश्व का मानदण्ड फिर भारत का हिमवान।
लिख दे नीलगगन पर भारतजननी का जयगान।।
लगती इस नववर्ष पर, यही कामना योग्य।
सकल विश्व को प्राप्त हो, पुनः पूर्ण आरोग्य।।
पुनः पूर्ण आरोग्य, भयंकर है कोरोना।
महाविपति से काँप रहा जग का हर कोना।।
कहे सुकवि गोपाल, निरोगी हो यह जगती।
सर्वोपरि कामना शुभा अब यह ही लगती।।
मंगल हैं इस वर्ष के, राजा मंत्री दोय।
करें कृपा इस जगत में, सबका मंगल होय।।
सबका मंगल होय, अमंगल सारे नासे।
रोग, शोक, भय मिटे सभी सारी वसुधा से।।
कहे सुकवि गोपाल, जीत लें जीवन दंगल।
नव संवत्सर पर हो, भगवन्! सबदिशि मंगल।।
चिंता, भय, फैला हुआ, हुआ संकुचित हर्ष।।
विकट परिस्थिति ले सखे! आया यह नववर्ष।
आया यह नववर्ष, किंतु विश्वास न खोएँ।
शुभ सोचें, शुभ करें, हृदय में शुभता बोएँ।।
विकल विश्व ‘गोपाल’, भयानक गिनती गिनता।
सोच सकारात्मक हो तो हल होती चिंता।।
मुँह पर पट्टी बाँध कर, करिये मंगल घोष।
और वाट्सएप से करें, संभाषण संतोष।।
संभाषण संतोष मिलन की चाह प्रबल हो।
करें वीडियोकॉल, न आएँ घर चंचल हो।।
कोरोना अति कुटिल, दृष्टि इसकी समूह पर।
विनय करे गोपाल, बँधी पट्टी हो मुँह पर।।
मिलने से तो दुःख बढ़े, दूर रहे सुख होय।
कैसा उलटा समय है, देख रहा जग रोय।।
देख रहा जग रोय, उपाय न कोई सूझे।
जटिल चुनौती कोरोना वैज्ञानिक बूझे।।
लक्ष्य मिले ‘गोपाल’, धैर्य रखकर चलने से।
प्रेम नहीं कम होता कुछ दिन ना मिलने से।।
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