– रवि कुमार
‘जल ही जीवन है’, ‘बिन पानी सब सून’, ‘कोस कोस पर बदले पानी’, ‘जल है तो कल है’ आदि अनेक कहावतें हमने सुनी होंगी। ये कहावतें दैनिक व्यवहार में जल का क्या उपयोग है, उसे अभिव्यक्त करती हैं। आहार के साथ पानी का उपयोग होता है। आहार बनाने में भी और आहार के साथ भी। जल को उत्तम आहार के रूप में ग्रहण करना यह अलग प्रकार की बात है। आहार के साथ ठीक है, परंतु आहार के रूप में जल और उत्तम आहार के रूप में जल? स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न तो मन में उठता ही है। आइए, इस प्रश्न का उत्तर खोजते हैं।
जिस प्रकार पृथ्वी में जल का प्रतिशत अधिक मात्रा में है, उसी प्रकार मानव शरीर में 2/3 भाग जल है। शरीर के रक्त, मांसपेशियां एवं मस्तिष्क के स्नायु तंत्र में लगभग 80% जल होता है। मानव शरीर पांच महाभूतों से बना है – भूमि, जल, वायु, अग्नि व आकाश। शरीर को चलायमान रखने के लिए इन पांच महाभूतों की आवश्यकता रहती है। इनमें से किसी के भी असंतुलित होने से हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है और धीरे-धीरे हम रोगग्रस्त होते हैं। रोगग्रस्त होने पर चिकित्सक हमें बताता है कि शरीर में जल तत्व की कमी हो गई है अथवा वायु विकार हो गया है या शरीर में विटामिन/प्रोटीन/खनिज/पोषक तत्वों (भूमि तत्व) की कमी हो गई है। जल तत्व की उत्तम स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका है। अतः कहा गया कि उत्तम आहार के रूप में जल का सेवन करे।
प्रश्न उठता है कि दिन में कितना जल ग्रहण करना, किस-किस रूप में ग्रहण करना, किस समय और किस प्रकार का जल सेवन स्वास्थ्य के लिए हितकर है।
हमारे लिए उपयोगी जल कई प्रकार से हमें प्राप्त होता है। यथा – आकाशीय जल वर्षा के रूप में, नदी का जल, झरने का जल, कुएं का जल, भूमिगत जल। जल जिस रूप में हमें प्राप्त होता है उसमें उसी प्रकार के गुण रहते हैं। प्राप्ति स्थान पर व उससे पूर्व जिन-जिन तत्वों के संपर्क में जल आता है, उसमें उन तत्वों के गुण आते रहते हैं। ये सभी तत्व प्राकृतिक हैं, अतः स्वास्थ्य के हानिकारक नहीं बल्कि हितकर रहते हैं।
उषापान के रूप में जल सेवन
उषापान अर्थात प्रातःकाल उठते ही जल का सेवन करना। इसे अमृतपान भी कहा जाता है। प्रातःकाल बासी मुख से जल का सेवन करने से मुख में जो रातभर जमा रहता है, उसकी ऊपरी त्वचा जीवाणुओं सहित पेट में जाती है और यह एक प्रकार की वेक्सिनेशन का कार्य करती है। इससे हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। ऐसा करने से पेट की शुद्धि भी निवृति के समय सरलता से होती है। जिन्हें प्राय: कब्ज रहती है, उन्हें उषापान करने से धीरे धीरे निदान मिलेगा। उषापान में जल कितना पीना, इस संबंध में आधे गिलास से प्रारम्भ करके 1-1.25 लीटर जल तक पहुंचा जा सकता है। उषापान करने से प्रारंभ के 10-15 दिनों तक लघुशंका (पेशाब) बहुत जोर से और ज्यादा लगेगी, बाद में सामान्य हो जाएगी। उषापान वाले जल को तांबे के बर्तन में डालकर लकड़ी के आधार पर रखने से यह जल अधिक गुणकारी हो जाता है। शीतकाल में उष्ण जल लेना अच्छा रहता है। आजकल बेड-टी की परंपरा बन गई है जो कि स्वास्थ्य के लिए घातक है।
दिनभर में 4 से 5 लीटर पानी पी लेना चाहिए। इसमें जो भी पदार्थ यथा- मट्ठा, जूस, दूध आदि तरल मात्रा में ग्रहण करते हैं वह भी सम्मिलित है। कैसा जल ग्रहण करना? आजकल आर ओ (RO) जल अधिक मात्रा में पिया जाता है। इस जल के बारे में प्रचारित किया गया है कि यह शुद्ध जल है। हो सकता है कि यह शुद्ध जल हो लेकिन इस जल में पोषक तत्व नहीं होते। टीडीएस (TDS) कम करने के लिए मशीन की प्रक्रिया में पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते है। जहाँ तक हो सके, मिट्टी के पात्र (घड़ा/सुराही/मटका/ढोल) में रखे जल का उपयोग करना चाहिए। मिट्टी के संपर्क में आने से जल में उसके गुण बने रहते हैं और अधिक समृद्ध होते हैं। मिट्टी के पात्र का जल शीतल रहता है और हमें शीतलता व तृप्ति प्रदान करता है। मिट्टी के पात्र में रखा जल 6 से 8 घंटे में शीतल हो जाता है।
फ्रिज में ठंडे किए जल का बिल्कुल प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। शीतकाल में धातु (लोहा, तांबा- अधिक हितकर, पीतल आदि) के बर्तन में रखे जल का उपयोग कर सकते हैं। एल्युमिनियम व प्लास्टिक के पात्र का उपयोग एकदम वर्जित है।
यदि हमें लगता है कि जो जल हम उपयोग कर रहे हैं उसमें बैक्टीरिया अधिक मात्रा में हो सकते हैं तो उसे उबालकर व ठंडा कर उपयोग करे। वर्षा ऋतु में तो यह अवश्य करना चाहिए। इस समय में वातावरण में बैक्टीरिया की मात्रा स्वाभाविक रूप से अधिक होती है। यात्रा में जाते समय घर से अपनी बोतल में पानी भरकर ले जाए। मिनरल वाटर पर निर्भरता अच्छी नहीं है।
भोजन के मध्य में कुछ घूंट जल लेना ठीक रहता है। भोजन के एकदम पूर्व व तुरंत बाद जल का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से भोजन को पचाने के लिए प्रज्जवलित जठराग्नि प्रभावित होती है। भोजन से आधा घंटा पूर्व व बाद में जल सेवन कर सकते हैं।
मनुष्य कई दिन तक भोजन न करे तो भी जीवित रह सकता है। परन्तु जल के बिना एक-दो दिन से अधिक जीवित रहना असंभव है। स्वास्थ्य के लिए अन्न के साथ-साथ जल का अधिक महत्व है। जल के विषय में उपरोक्त छोटी-छोटी बातों को जीवन व्यवहार में लाने से हम अपने स्वास्थ्य को अधिक सुदृढ़ बना सकते हैं। साथ ही ‘उत्तम आहार के रूप में जल का सेवन’ नवीन पीढ़ी को सिखाना भी आवश्यक है ताकि उनका भावी जीवन भी स्वस्थ बन सके।
(लेखक विद्या भारती हरियाणा प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)