– अरविन्द कुमार
किसी भी कार्य का एक उचित समय होता है । बिना समय का कर्म सही फल नहीं देता, बल्कि ऊर्जा की हानि भी कर डालता है । बीज बोने का समय होता है, फसल में पानी देने का समय होता है, फसल काटने का भी एक समय होता है । प्रकृति भी समय पालन में कभी ढील नहीं करती, सर्दी, गर्मी, वर्षा सब समय व ऋतु के अनुसार आते और जाते हैं । हमारे दैनिक जीवन में भी सोने, उठने, खाने, पीने, स्नान आदि में उचित समय का स्वास्थ्य को बनाए रखने में विशेष महत्व है ।
विद्यार्थी के जीवन में अध्ययन सबसे महत्वपूर्ण है, तो अवश्य ही अध्ययन का भी एक समय होना चाहिए । अध्ययन निश्चित रूप से होता है, लेकिन बिना उचित समय के किया हुआ अध्ययन सही फलित ही नहीं होता ।
भोजन : भोजन हमें ऊर्जा देता है, शरीर व मस्तिष्क को पोषण देता है, किन्तु भोजन के विषय में एक बात और भी जान लेना आवश्यक है । भोजन जब पचाया जा रहा होता है, तो आलस्य देता है, क्योंकि शरीर की ऊर्जा उसे पचाने में लगी होती है, आंतों में रक्त की विशेष मात्रा पहुँचती है, तो इससे दिमाग की एकाग्रता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । हम इस समय एकाग्र नहीं हो सकते ।
तो भोजन करने के कम से कम आधे घंटे के बाद ही पढ़ना, लिखना चाहिए । अब आप कहेंगे कि हर बार कुछ खा लेने के बाद आधा घंटा यदि रुका जाए तो इससे तो पढ़ने का समय कम पड़ जाएगा । इसीलिए हमारे शास्त्रों ने विद्यार्थी के लिए दो ही बार भोजन का निर्देश दिया है । दिन भर कुछ न कुछ खाते रहना ठीक नहीं । भोजन के बाद कुछ देर टहल कर फिर थोड़ा आराम कर लें ।
शयन : सोने से थकान दूर होकर एक नई ताजगी व ऊर्जा अनुभव होती है । यदि थके हुए और नींद में ऊंघ रहे हों तो ऐसे समय पढ़ाई बिल्कुल भी ठीक नहीं । हमें अपने सोने के समय और खाने के समय को नियंत्रित और नियमित कर लेना चाहिए, इससे अध्ययन के समय को नियमित करने में बहुत सहायता मिलेगी । दिन में सोना विद्यार्थी के लिए ठीक नहीं माना जाता, दिन में जो लोग सो जाते हैं, रात्रि के समय उन्हें नींद सही नहीं आती, थकान-सी बनी रहती है, सपने आते रहते हैं, और उठने के बाद भी आलस्य बना ही रहता है । दिन में न सोएँ, रात्रि में देर तक न जागें । आपको यह बात आज के जमाने के हिसाब से थोड़ी अजीब लग सकती है कि जिस प्रकार सभी पशु-पक्षी सूर्य डूबने के साथ ही सो जाते हैं और ब्रह्ममुहूर्त यानि सुबह चार बजे उठ जाते हैं, उसी प्रकार यदि हम भी सोना व उठना शुरू कर दें, तो दिन में हमें बहुत ऊर्जा मिलेगी, एकाग्रता उच्च कोटि की होगी, अध्ययन प्रभावी व स्थायी हो सकेगा ।
एकांत : एकांत का एकाग्रता के साथ सीधा संबंध है, आपके पढ़ने का समय ऐसा हो जब आप एकांत में रह सकें । आजकल मोबाइल फोन यदि आपके पास है, तो आप कहीं भी एकांत में नहीं हैं । विद्यार्थी के लिए विद्यार्जन से बढ़कर और कुछ भी नहीं, तो यदि आप अपने मित्रों को अपने पढ़ने के समय से अवगत करा दें, और उनसे प्रार्थना करें कि इस समय आप बात नहीं कर सकेंगे, तो उत्तम होगा । फिर आप फोन को साइलेंट भी रख सकेंगे । एकांत केवल बाह्य नहीं होता, आपका मन भी शांत होना चाहिए, तभी एकांत अध्ययन फलित होगा ।
नियमितता : मनोविज्ञान का मानना है कि जैसे प्रकृति एक घड़ी की तरह काम करती है, ठीक वैसे ही हमारे भीतर भी एक घड़ी है । यदि हम नियमित समय पर कोई कार्य नित्य करना शुरू कर दें, तो प्राकृतिक रूप से हमारी शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक शक्तियाँ उसी समय पर कार्य करने के लिए एकाग्र व तैयार हो जाती हैं । यानि जैसे आप खाने, सोने, जागने की एक आदत बना सकते हैं, ठीक वैसे ही मन को एक विशेष समय एकाग्र करने की भी आदत बनाई जा सकती है । अध्ययन के लिए ऐसी आदत का विकसित हो जाना किसी वरदान से कम नहीं ।
परीक्षा के समय अध्ययन : परीक्षा के समय बहुत से विद्यार्थी पढ़ाई को एक हव्वा बना लेते हैं । दिन, रात बस पढ़ना, … केवल पढ़ना । खाने, पीने और सोने में वे लोग इस समय लापरवाह हो जाते हैं । यह घातक है । निरंतर केवल रटने से कोई पढ़ाई नहीं हो सकती । बल्कि याद न रख पाने से वे तनाव ग्रस्त हो उठते हैं । बहुत से विद्यार्थी तो इस समय बीमार तक हो जाते हैं । और ऐसा ज़्यादातर उन्हीं लोगों के साथ होता है जो पूरा साल अपना काम ठीक से नहीं करते, फिर परीक्षा का समय सिर पर आने पर उनका सिर चकरा जाता है ।
एकाग्रता : हम लिख चुके हैं कि एकाग्रता का नियमितता से सीधा संबंध है । इसलिए आप पढ़ने का समय चुनते हुए यह भी ध्यान दें कि क्या आप इस समय एकाग्र हो पाते हैं । एकाग्रता इतना महत्वपूर्ण बिन्दु है कि बाकि सब चीजें इस पर न्योछावर की जा सकती हैं ।
संगीत : संगीत हमें तारो-ताजा कर देता है, पढ़ने से पहले थोड़ा समय संगीत को दिया जा सकता है । इससे हम ऊर्जा से भर जाते हैं । इससे मूड भी सही हो जाता है । लेकिन बहुत से विद्यार्थियों में एक आदत विकसित हो गई है, कानों में मोबाईल की लीड लगाकर पढ़ना । ये आदत स्वास्थ्य के लिए इतनी हानिकारक है कि इसे तो इसी क्षण से त्याग देवें ।
रात्रि-अध्ययन : अष्टावक्र अपनी माँ के पेट में थे, रात्रि का समय था, पिताजी वेद मंत्रों का पाठ कर रहे थे । कथा कहती है कि अष्टावक्र माँ के पेट में से ही बोल पड़े कि पिताजी आपका वेदपाठ शुद्ध नहीं है । ऋषि जब बहुत विचार के बाद भी कोई अशुद्धि न देख पाए तो उन्होने गर्भस्थ शीशु से ही प्रश्न किया । अष्टावक्र बोले कि आप जो रात्रि के समय पढ़ रहे हैं, वहीं सारी गलती है ।
भारतीय शास्त्र रात में अध्ययन को निषिद्ध मानते हैं । रात्रि का समय दिन में पढ़े हुए पर विचार करने के लिए है । यानि दुहराई के लिए है । खाए हुए की जुगाली के लिए है, इसी को शास्त्र में निदीध्यासन कहा है । फिर भी हमें आज के अनुसार ही चलना पड़ता है । तो रात को पढ़ लें, लेकिन बहुत देर तक न पढें । याद रखें कि जैसे ज्यादा भोजन खाने से ही कोई बलवान नहीं हो सकता वैसे ही ज्यादा समय पढ़ने से ही कोई विद्वान नहीं हो सकता । आवश्यकता है अध्ययन की गुणवत्ता बढ़ाने की, उसकी गहनता बढ़ाने की ।
विद्यार्थी पूरा साल नियमित रूप से पढ़े । परीक्षा के समय भयभीत न हो । फुर्सत में अध्ययन को सर्वोत्तम समय मानते हैं । फुर्सत में पढ़ा गया स्थायी होता है क्योंकि मन पर कोई बोझ नहीं होता, उसी से रचनात्मकता का भी जन्म होता है ।
तो सार रूप से हम कह सकते हैं :
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रात्रि को जल्दी सोकर सुबह जल्दी उठें, अध्ययन के लिए वह सर्वोत्तम समय है ।
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भोजन के तुरंत बाद न पढ़ें ।
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एकांत में ही पढ़ें ।
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पढ़ने के समय नियमित व निर्धारित होने चाहिए ।
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तन या मन से थके होने पर न पढ़ें ।
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जब एकाग्र हो सकें, तभी पढ़ें । कुछ समय बाद तो अध्ययन स्वयं आपको एकाग्र कर देगा ।
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लगातार बहुत समय न पढ़ें, इससे दिमाग थक जाता है ।
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जो दिन में पढ़ा है, रात्रि में उस पर चिंतन करें ।
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फुर्सत का समय अध्ययन के लिए निकालें और अध्ययन के लिए फुर्सत निकालें ।
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जब भी पढ़ें, निश्चिन्त होकर पढ़ें, यह चिंता कि क्या याद हुआ, क्या नहीं, छोड़ दें, यह केवल एकाग्रता भंग करती है ।
(लेखक विभिन्न भाषाओं के तज्ञ एवं सामाजिक कार्यकर्ता है ।)