– रवि कुमार
विद्यालयीन शिक्षा में बालक को दो प्रकार के कार्य करने होते है, एक कक्षा कार्य, दूसरा गृहकार्य। कक्षा कार्य में आचार्य द्वारा पढ़ाया गया पाठ समझना, कक्षा के दौरान गतिविधियों में भाग लेना, यूनिट टेस्ट आदि। गृहकार्य में जो पाठ विद्यालय में पढ़ाया गया उस पर आधारित कार्य जैसे प्रश्नोत्तर लिखना, याद करना, प्रश्न हल करना आदि। गृहकार्य के विषय में आचार्य व अभिभावक विशेष आग्रही रहते है। आचार्य समझता है कि गृहकार्य देना आवश्यक है और अभिभावक समझता है कि यह अति आवश्यक है। इस ‘आवश्यक’ व ‘अति आवश्यक’ के चक्कर में बेचारा बालक! उसकी स्थिति अजीब-सी होती है।
एक स्थान पर गृहकार्य के विषय में आचार्यों से चर्चा हुई तो अजीब बात ध्यान में आई। एक आचार्य द्वारा एक कक्षा में कम गृह कार्य दिया गया। बाद में दो-तीन अभिभावकों द्वारा इस विषय में शिकायत की गई कि गृहकार्य कम क्यों दिया गया। अभिभावकों को पुनः शिकायत का अवसर न मिले इसलिए तब के बाद उस आचार्य द्वारा अधिक गृहकार्य दिया जाने लगा। यह केवल उस कक्षा की बात नहीं होगी, अनेकानेक कक्षाओं में ऐसा ही होता होगा।
परिवार में छोटी बहन से फोन पर चर्चा हुई। कुशलक्षेम पूछने के पश्चात् बेटी (भांजी) से बात करवाने को कहा। बेटी बात नहीं करना चाहती थी। पूछने पर बहन ने बताया कि आज गृहकार्य पूर्व दिनों की अपेक्षा अधिक मिला है। वह काफी देर से गृहकार्य कर रही है, परन्तु पूर्ण ही नहीं हो रहा। उसका मन चिड़चिड़ा-सा हो गया है। छोटी कक्षाओं में अधिक गृहकार्य मिलने पर बालक का मन ऐसे ही चिड़चिड़ा होता होगा।
क्या करें : गृहकार्य देते समय ये विचार करे कि कक्षा स्तर अनुसार कितना देना है। गृहकार्य पूर्ण करने में बालक को औसतम कितना समय लगेगा। तीन प्रकार का गृहकार्य – लिखित, याद करना और यूनिट टेस्ट की तैयारी। छह मुख्य विषय है – एक दिन में सभी विषयों का लिखित गृहकार्य न दिया जाएँ। इसी प्रकार एक दिन में सभी विषयों का याद करने का गृहकार्य और न ही एक दिन सभी विषयों का यूनिट टेस्ट हो। तीनों प्रकार के गृहकार्य में संतुलन बनाना आवश्यक है। तीनों प्रकार के गृहकार्य को छह विषयों में सप्ताह के छह दिनों में बाँट कर संतुलन बन सकता है। सोम-मंगल को दो विषयों का लिखित कार्य, बुध-वीर को दूसरे दो विषयों का व शुक्र-शनि को तीसरे दो विषयों का लिखित कार्य दिया जाएँ। इसी प्रकार शेष दोनों प्रकार के गृहकार्यों के सम्बन्ध में भी ऐसा हो सकता है।
कला, संगीत व कम्यूटर विषय गतिविधि के रूप में पढ़ाया जाए। उसमें जो भी कार्य है वह कक्षाकक्ष में ही करवाया जाएँ। इन विषयों का गृहकार्य न दिया जाएँ। ऐसा करने से इन विषयों के बारे में रूचि और आनंद बढ़ेगा।
गृहकार्य में रचनात्मकता एवं नवीनता : बालक ने जो पाठ पढ़ा, उसी के प्रश्नोत्तर लिखे, उन्हीं प्रश्नोत्तर को याद किया और उन्हीं की परीक्षा दी गयी। आजकल प्रायः यही चलता है! कोई पूछेगा कि और क्या चलना चाहिए? क्या यही शिक्षा हैं?
स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा है, “शिक्षा केवल सूचनाओं का एकत्रीकरण मात्र नहीं है, यह तो जीवन का गहन प्रशिक्षण है।”
“जीवन में रचनात्मकता व नवीनता आवश्यक है। गृहकार्य में रचनात्मकता एवं नवीनता आएं इसके लिए भी गहन चिंतन करने की एवं उस चिंतन को क्रियान्वयन में लाने की आवश्यकता है। एक ही प्रकार का गृहकार्य देते रहने से बोरियत आती है। घर में क्रिया आधारित, कौशल विकास आधारित एवं अनुभव आधरित सीखा जा सके ऐसा गृहकार्य देने की योजना हो।
जो पाठ कक्षाकार्य में सीखा है, उसे विस्तार दिया जा सके – ऐसा गृहकार्य दिया जाए। उदहारण स्वरुप – यदि गिनती सिखाई गई तो घर में कौन-सी वस्तु कितनी संख्या में है, गृहकार्य दिया जाए। भाषा में संज्ञा सिखाई गई तो घर में संज्ञा – नाम, वस्तु आदि प्रकार सहित क्या-क्या है, ऐसी सूची बनाएं करने को कहा जाए। गाँव पढ़ाया गया तो गृहकार्य में अपने गाँव का वर्णन लिखे, कहा जाए। ऐसे अनेक आयाम हो सकते है जो गृहकार्य के विषय में नई दिशा प्रदान कर सकते है।
गृह कार्य ऐसा भी : बिना पुस्तक के व गत पाठ्यक्रम के आधार पर गृहकार्य सोचेंगे तो ध्यान में आएगा कि घर एक विद्यालय कैसे बनेगा। जैसे –
चाय बनाना – बालक द्वारा घर में 4 कप चाय बनाई गई। चार कप चाय में कितना मि०ली० पानी, दूध, कितने ग्राम चीनी, चायपत्ती डली, कितना समय लगा? इससे गणित की गणना, मापन, जोड़, समय गणना व चाय बनाने का कौशल सीख सकते है।
रसोई में कितने प्रकार के बर्तन, कितनी प्रकार की धातु के बर्तन, उनके हिंदी, अंग्रेजी व संस्कृत नाम, कौन सा बर्तन (गिलास, थाली, चम्मच आदि) कितनी संख्या में है? धातु के रासायनिक नाम कौन से है? अनाज व दालों की सूची बनाएं, इन पदार्थों के रासायनिक नाम, निहित पौष्टिक तत्व एवं इनके उत्पन्न होने की प्रक्रिया लिखे आदि।
बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट क्या-क्या बना सकते है? घर में सफाई करते है, प्रति वर्ग फुट या प्रति वर्ग मीटर कितना समय लगता है?
कहानी पढ़कर घर में सुनाओ व अपनी आवाज में रिकॉर्ड कर आचार्य को व्हाट्सएप्प पर भेजों। घर में बड़ों से कहानी सुनो फिर उसे अपनी आवाज में रिकॉर्ड कर भेजों। अपने रिश्तेदारों से बात कर हालचाल पूछों, उस बातचीत व अनुभव पर प्रस्ताव लिखो। इससे बालक तकनीक, कथा कथन व संस्कार सीखेंगे। भाषा विकास की दृष्टि से लेख लिखना, समाचार पत्र पढ़ना, कंठस्थ करने के लिए श्लोक, गीत, दोहे आदि देना।
बड़ी कक्षाओं के लिए घर का बजट बनाओ, घर के बैंक अकाउंट की स्टेटमेंट अध्ययन करो, रसोई के मसालों में क्या-क्या मेडिसिन है, घर में भौतिक, रसायन एवं जीव विज्ञान कहाँ-कहाँ है, अपने परिवार की टाइमलाइन बनाओ, घर प्रयोग होने वाले कपड़ों के ब्रांड व कंपनी डिटेल्स बनाओ, एक सप्ताह का भौगोलिक वातावरण, तापमान आदि का चार्ट एक्सेल में बनाओं व अध्ययन करो।
उपरोक्त सब पाठ्यक्रम का भाग है।
गृहकार्य के सम्बन्ध में कुछ बातें और ध्यान देने की आवश्यकता है। गृहकार्य से बालक की स्वछंदता तो समाप्त नहीं हो रही। गृहकार्य बालक के लिए है या अभिभावक के लिए है? गृहकार्य कर्मकांड तो नहीं हो गया है। गृहकार्य से सीखना-सिखाना वाला विषय गौण तो नहीं हो गया है।
घर में बालक नियमित खेले – यह स्वस्थ एवं सामाजिक जीवन की अनिवार्यता है। बालक घर में उद्योग करे अर्थात् घर के विभिन्न प्रकार के कार्य करे, उससे बालक का कौशल विकसित होगा। बालक घर में स्वाध्याय कर ज्ञानवर्धन करे। घर में बालक अपने बड़ों का स्नेह व मार्गदर्शन सहज संवाद से प्राप्त करे। वह बड़ों से कथा सुनकर संस्कार ग्रहण करे। बालक आयु अनुसार विश्राम एवं नींद ले। यह सब बालक के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है। कहीं गृहकार्य का बोझ इन सब में बाधक तो नहीं बन रहा?
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