✍ विजय नड्डा
इस क्षण भंगुर अस्तित्व में यदि कोई तत्व स्थायी हैं तो वे हैं आत्मसम्मान तथा स्वतंत्रता। ये तत्व बहुत मूल्य चुका कर प्राप्त होते हैं। हमारे महान क्रांतिकारियों ने अपने स्वप्न, सुख, संपत्ति व जीवन तक का मूल्य चुका कर अपने प्रिय भारत को अंग्रेजों की दासता की जंजीरों से मुक्त कराया है। हमारे क्रांतिकारियों ने ऋषि दधीचि की तरह अपनी हड्डियों से निर्मित व अपने रक्त से सिंचित स्वतंत्रता का दीप स्तंभ हमें संभालने हेतु दिया है। इन नर रत्नों में शहीद भगत सिंह का जीवन अत्यंत प्रेरक है। शहीद भगत सिंह अपनी शहीदी के नौ दशक गुजर जाने के बाद भी युवाओं को देशभक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ने की ओर प्रेरित करते हैं। वे हमारे युवाओं के हृदय की धड़कन में बसे हैं। भगत सिंह न केवल बम पिस्तौल को भाषा जानते थे बल्कि उनकी कलम की ताकत भी अद्भुत थी। उनकी विचार शक्ति का ब्रिटिश सत्ता भी लोहा मानती थी। उनके विचार दर्शन पर संक्षेप में चर्चा करने का प्रयास करते हैं। विचार दर्शन को समझने के लिए उनका जीवन वृत सबसे प्रभावी माध्यम है क्योंकि वे अपने विचारों के अनुरूप ही जीवन जिए हैं।
भगत सिंह वंश परिचय
भगत सिंह का जन्म लायलपुर जिले के एक सुप्रसिद्ध सिख वंश में हुआ। इनके पूर्वज महाराजा रणजीत सिंह के समय में खालसा सरदार के नाम से प्रसिद्ध थे। इन्होंने पश्चिम में खूंखार पठानों और पूर्व में शक्तिशाली अंग्रेजों के विरुद्ध सिख साम्राज्य फैलाने में सिख शासकों को यथेष्ठ सहायता पहुंचाई। उनके लिए अपना खून बहा कर इस परिवार ने पुरस्कार स्वरूप काफी जायदाद भी प्राप्त की। दादा अर्जुन सिंह 80 वर्ष की आयु के बाबजूद स्वस्थ थे। लाहौर षड्यंत्र केस में आप बड़े मनोयोग से भाग लिया करते थे। दादी श्रीमती जयकौर हिंदू परिवार की आदर्श महिला थी। सूफी अंबा प्रसाद अर्जुन सिंह के घर आए थे। पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए आ धमकी। इस वीर महिला ने बुद्धिमानी से उन्हें बचा लिया।
कहा जाता है शहीद भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह ने लाला लाजपत राय को राजनैतिक क्षेत्र की ओर आकर्षित किया था। 11 वर्ष की आयु में ही बड़े भाई जगत सिंह की मृत्यु हो गई जिससे भगत सिंह के कोमल हृदय को झटका लगा।
देशभक्ति विरासत में मिली
शहीद भगत सिंह का परिवार मूलत: आर्यसमाजी था। उन दिनों सिखों का खालसा हाई स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का नियम सा हो गया था किंतु उस स्कूल के अधिकारियों का झुकाव राजभक्ति की ओर अधिक होने के कारण सरदार किशन सिंह को पसंद नहीं था। इसीलिए सरदार भगत सिंह डीएवी स्कूल में भर्ती किए गए। धर्म निष्ठ सिख होते हुए भी देशभक्ति के भाव से ओतप्रोत होने के कारण खालसा स्कूल को छोड़ कर आर्यसमाजी स्कूल में भगत सिंह को दाखिल कराया। भगत सिंह इसके बाद नेशनल कॉलेज में पढ़ने लगे। शहीद भगत सिंह के पिता ने क्रांतिकारियों को हजारों रुपए की सहायता पहुंचाई थी।
भगतसिंह भी देश की स्वतंत्रता के इन कार्यों में पिता जी का सहयोग करते थे। पुलिस को जानकारी मिल जाने के कारण अनेक क्रांतिकारी सदस्य गिरफ्तार कर लिए। लाहौर में देश की स्वतंत्रता के लिए प्रयास करने के लिए अनुकूल वातावरण न देख कर भगत सिंह पंजाब से बाहर निकल कर कानपुर चले गए। यहां गणेश शंकर विद्यार्थी से जान पहचान हो गई। दोनों की मित्रता अजीवन बनी रही।
भगत सिंह का विचार दर्शन
कोमल हृदय – सामान्यतया क्रांतिकारियों को कठोर दिल का माना जाता है। लेकिन सत्य इसके ठीक विपरित है। लगभग सभी क्रांतिकारी अत्यंत कोमल हृदय के थे। भगत सिंह के जीवन की अनेक घटनाएं उनके कोमल हृदय को सामने लाती हैं। श्री जितेंद्र नाथ सान्याल द्वारा लिखित भगत सिंह की जीवनी के प्रकाशक श्री आर सहगल ने रोचक लेकिन हृदय स्पर्शी घटना का उल्लेख किया है। प्रकाशक व भगत सिंह बाग में टहल रहे थे। देश व क्रांतिकारी संगठन की गंभीर बातों में मग्न थे। इतने में स्नेह (बच्ची) पेड़ पर लटके पतंग को निकालने की जिद करने लगी। अभी श्री आर. सहगल उसे डांटने ही वाले थे कि भगत सिंह ने बंदर की तरह पेड़ पर चढ़ कर पतंग को पेड़ से निकाल कर बच्ची को दे दिया। ऐसे ही क्रांतिकारियों को बैठक में गंभीर चर्चा के बीच दुर्गा भाभी के बेटे का रोना सबको परेशान कर रहा था। इससे पहले कि दुर्गा भाभी उसे डांटती, भगत सिंह उसे गोदी में उठा कर बाजार ले जा कर मिठाई आदि देकर ले आए। वापसी पर दोनों खिलखिला कर हंस रहे थे। भगत सिंह इतने कोमल हृदय के मालिक थे कि किसी का दु:ख सहन कर ही नहीं पाते थे। बचपन में अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद वहां की मिट्टी घर ले जा कर रात्रि भोजन नहीं करना उनके कोमल व भावुक हृदय का प्रतीक है।
साथी क्रांतिकारी का जीवन महत्वपूर्ण – जेल में क्रांतिकारियों पर होने वाले अत्याचारों के विरोध में रखी भूख हड़ताल के लंबा खिंच जाने के कारण क्रांतिकारी यतींद्र दास की तबियत बहुत खराब हो गई। डाक्टर लोगों ने उनका जीवन बचाने के लिए एनिमा ही एकमात्र मार्ग बताया। यतिंद्र दास एनिमा लेने के लिए कत्तई तैयार नहीं थे। जेल अधिकारियों ने जेल प्रशासन को कहा कि अगर भगत सिंह कहें तो यतिंद्र दास जी एनिमा लेने को मान सकते हैं। भगत सिंह को यतिंद्र दास के पास लाया गया। भगत सिंह अपने लिए कठोर थे लेकिन अपने साथी क्रांतिकारी के जीवन की रक्षा के लिए यतिंद्र दास को जिद छोड़ने के लिए मनाने आ गए। भगत सिंह के आग्रह पर वे राजी हो भी गए। भगत सिंह का विचार था कि अत्याचारों का मुकाबला करने के लिए जीवित रहना आवश्यक था।
दल का अनुशासन सर्वोपरि – भगत सिंह अपने दल के अनुशासन को सर्वोपरि मानते थे। बहुत लोग जानते हैं कि एसेंबली में बम फेंकने के लिए क्रांतिकारियों की बैठक में भगत सिंह का चयन नहीं हुआ था। सुखदेव इस निर्णय से सहमत नहीं थे। वे अंग्रेजी पर पकड़ आदि के कारण असेंबली में क्रांतिकारियों के विचार रखने के लिए सबसे उपयुक्त भगत सिंह को मानते थे। उन्हें लगा कि कहीं भगत सिंह मौत के डर के कारण पीछे तो नहीं हट रहे हैं? उन्होंने अपने प्रिय मित्र भगत सिंह को बम फेंकने की टीम में जाने का आग्रह किया। भगत सिंह अनुशासन की बात कर सुखदेव को समझाने का प्रयास कर रहे थे। सुखदेव ने क्रोध में भगत सिंह को कायर आदि भी कह दिया। अंत में भगत सिंह ने बम वाली टोली में शामिल होने का आश्वासन दे दिया। इतना सब होने पर भी सुखदेव के प्रति उनके मन में स्नेह कम नहीं हुआ।
सरकार के कानूनों को मार सह कर भी वापिस कराया – भगत सिंह मानते थे कि बड़े लक्ष्य को प्राप्त के लिए त्याग तपस्या व बलिदान ही एक मात्र मार्ग है। भगत सिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों के कड़े संघर्ष के परिणामस्वरूप जेल के नियमों में कुछ सुधार हो पाया। इसके लिए उन्हें बहुत मार सहन करनी पड़ी। उन्होंने हथकड़ी के साथ न्यायालय में जाने से मना कर दिया। आखिर में सरकार को झुकना पड़ा।
ब्रिटिश न्याय के पाखंड को उजागर करना – सब लोग जानते थे कि ब्रिटिश सरकार न्याय का ढोंग कर रही थी। निर्णय तो वे कर ही चुके थे। भगत सिंह अंग्रेजी न्यायालय की कार्यवाही के पाखंड को सबके सामने लाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने कार्यवाही में भाग न लेकर विश्व के सामने ब्रिटिश सरकार के पाखंड को सामने लाने के लिए अपने दल को तैयार किया। उनके इस निर्णय ने अंग्रेजी न्याय व्यवस्था की पोल विश्व के सामने खोल कर रख दी।
शहीदी अगर समाज में जागृति निर्माण कर दे तो उद्देश्य पूरा – भगत सिंह का विचार था कि समाज जागरण व संगठन ही अंग्रेज सरकार के अत्याचारों से बाहर निकलने का एकमात्र मार्ग था। उन्होंने अपना बलिदान भी इसी लक्ष्य को साधने के लिए दिया था। छोटे भाई कुलतार सिंह को लिखते हैं – “भोर के समुज्जवल प्रकाश के सामने भाग्य के लिखे को कौन टाल सकता है? यदि सारा संसार भी हमारे विरुद्ध खड़ा हो जाए तो हमें उसकी क्या परवाह? प्रिय बंधुओ! मेरे जीवन का अवसान समीप है। प्रात:कालीन दीप के समान टिमटिमाता हुआ मेरा जीवन प्रदीप भोर के प्रकाश में विलीन हो जाएगा। हमारा आदर्श, हमारे विचार बिजली की कौंध के समान सारे संसार में जागृति पैदा कर देंगे फिर यदि यह मुट्ठी भर राख विनिष्ट भी हो जाए तो संसार का इससे क्या बनता बिगड़ता है?”
बम का दर्शन – भगत सिंह का विचार दर्शन बम का दर्शन (Philosophy of Bomb) में उभर कर सामने आता है। इसने पूरे विश्व में सनसनी फैला दी थी। गांधी जी ने क्रांतिकारियों के हिंसक मार्ग के विरोध में बम की पूजा लेख लिखा था। उसमें उन्होंने क्रांतिकारियों के ऊपर आरोप व व्यंग्य किया था। शहीद भगत सिंह ने बम की पूजा लेख में उठाए सभी प्रश्नों का न केवल सटीक उत्तर दिया बल्कि क्रांतिकारियों के मार्ग को भी तार्किक ढंग से उचित ठहराया। इस लेख में हिंसा-अहिंसा के विषय को भी स्पष्ट किया।
भगत सिंह नास्तिक से ज्यादा अपने ईश्वर से नाराज भगत की तरह थे। गुरु नानक की तर्ज पर “तैं कि दर्द न आया” उनका मानना था की ईश्वर अगर है तो इस संसार में व्याप्त अन्याय को दूर क्यों नहीं करता? भारत मां की आजादी के लिए भगत सिंह जैसे हजारों नौजवानों के जीवन का दर्शन उनके ही शब्दों में इस प्रकार समेटा जा सकता है –
इन्हीं बिगड़े दिमागों में घनी खुशियों के लच्छे हैं।
हमें पागल ही रहने दो हम पागल ही अच्छे हैं।।
(लेखक विद्या भारती उत्तर क्षेत्र के संगठन मंत्री है।)
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