आहार-विहार और योग

✍ रवि कुमार

आज योग की चर्चा सर्वत्र है। अपने आसपास पार्क में, घर की बालकॉनी में योग करते अनेक व्यक्ति मिल जाएंगे। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून के प्रचलन से भी इस विषय को काफी बढ़ावा मिला है। परंतु विचार का विषय यह है कि योग मात्र व्यायाम करना, योगासन, प्राणायाम व ध्यान करना ही है? प्रातः अच्छे से योग करो और दिनभर में जो इच्छा हो उसे खा लो तो स्वास्थ्य अच्छा रहेगा? भाग-दौड़ के जीवन में जैसी गिरती-पड़ती-भागती दिनचर्या हो, उसमें रहो और प्रातः कुछ समय योग कर लो तो सब ठीक रहेगा? आइए, इस विषय पर और विचार करते हैं।

प्रचलित धारणा

योग के विषय में प्रचलित धारणा व्यायाम, आसन, प्राणायाम व ध्यान करना ही है। इन चार बातों में योग सीमित हो गया है। क्या वास्तव में यह योग है? यह विचारणीय प्रश्न है। महर्षि पतंजलि ने योग को अष्टांग रूप में वर्णन किया है।

यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोsष्टावङ्गानि॥ (पतंजलि योग सूत्र २.२९)

ये आठ अंग है – १) यम, २) नियम, ३) आसन, ४) प्राणायाम, ५) प्रत्याहार, ६) धारणा, ७) ध्यान व ८) समाधि। ये आठ अंग जीवनचर्या का भाग बनने चाहिए तभी योग जीवन का भाग बनेगा। अथवा ये कहे कि भारतीय जीवन शैली के अनुसार जीना है तो योग आधारित जीवन शैली को अपनाना होगा।

जीवन शैली में योग

पतंजलि अष्टांग योग में पहला है यम। इसके अंतर्गत पांच बातें आती हैं – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह। सबको स्वयं के जैसा समझना और मन-कर्म-वचन से हिंसा न करना। मन, कर्म व वचन से एक समान रहते हुए सत्य का साथ देना। चोरी की भावना नहीं रखना, पुरुषार्थ से जो अर्जित नहीं किया या भेंट व पुरस्कार नहीं मिला उसे लेने का विचार न करना अस्तेय है। समस्त इन्द्रिय संयम ब्रह्मचर्य है। आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह न करना और संग्रह करने की प्रवृत्ति को मन-कर्म-वचन से त्यागना ही अपरिग्रह है।

इसी प्रकार नियम के अंतर्गत भी पांच बातें है – शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय व ईश्वर-प्राणिधान। शौच अर्थात मन व शरीर की पवित्रता है। कर्तव्य का पालन करते हुए जो प्राप्त हो, उसमें संतुष्ट रहना संतोष है। हर परिस्थिति में मन व शरीर को अनुशासित रखना तप है। स्वयं का अध्ययन करते हुए विचार शुद्धि करना, ज्ञान प्राप्ति के लिए विद्याभ्यास, अच्छे साहित्य का अध्ययन, सत्संग का आदान-प्रदान आदि स्वाध्याय है। ईश्वर के प्रति श्रद्धा व आस्था रखना ईश्वर-प्राणिधान है।

यम-नियम की 10 बातें जीवन का भाग बने, यह योग आधारित जीवन शैली का प्रथम चरण है। योग सर्वप्रथम यम व नियम के द्वारा व्यक्ति के मन और मस्तिष्क को ठीक करने का सुझाव देता है। आसन व प्राणायाम करने से पूर्व यदि व्यक्ति यम-नियम का पालन नहीं करता तो उसे योग से पूर्ण स्वास्थ्य लाभ नहीं मिल सकता।

संतुलित आहार और योग

योगासन-प्राणायाम प्रतिदिन करते हैं और संतुलित आहार नहीं लेते तो योगासन-प्राणायाम का स्वास्थ्य पर प्रभाव बहुत कम होगा। संतुलित आहार का मन-मस्तिष्क पर भी प्रभाव पड़ता है। “जैसा खाए अन्न, वैसा बने मन” – ये कहावत सभी ने सुनी है। आजकल तामसिक भोजन यथा जंकफूड, अधपका हुआ, बासी व भोजन निर्माण की मूल प्रक्रिया को बदल कर बनाए गए व्यंजनों का प्रचलन अधिक हो गया है। साथ ही असमय खाना भी प्रचलन में है। तामसिक भोजन ग्रहण करेंगे, असमय करेंगे और योग करेंगे तो ये समन्वय कैसे संभव है? ऐसे में स्वास्थ्य लाभ की अपेक्षा करना ही व्यर्थ है।

विहार और योग

जिस प्रकार मानव स्वास्थ्य के लिए संतुलित आहार आवश्यक है उसी प्रकार सम्यक विहार भी जरूरी है। विहार में दिनचर्या के सभी भाग आते हैं। यथा- कार्य की प्रकृति, अधिक समय बैठने या खड़े रहने की स्थिति, खेल, व्यायाम, नींद, परस्पर संवाद आदि। योग प्रतिदिन करते है और सम्यक विहार नहीं है तो स्वास्थ्य लाभ हो ही नहीं सकता। व्यवस्थित दिनचर्या व उपरोक्त बातों को दिनचर्या में यथास्थान देना ही सम्यक विहार कहा जाएगा।

योगासन, प्राणायाम व ध्यान

योग के इन तीनों अंगों को नियमित अभ्यास में लाने से स्वास्थ्य को उचित लाभ मिलता है। कभी-कभी करने से स्वास्थ्य लाभ नहीं मिलता। सामान्यतः लोग प्रारम्भ करते हैं और कुछ दिन करके छोड़ देते हैं। दृढ़तापूर्वक नियमित योग अभ्यास करने की आदत लगनी चाहिए। योगासन करते समय श्वास क्रिया महत्वपूर्ण है। सामान्य नियम है – शरीर का विस्तार करते समय श्वास भरना और संकुचन करते समय श्वास छोड़ना। बिना श्वास क्रिया के योगासन करना मात्र व्यायाम ही होता है।

हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है –

चले वाते चलं चित्तं निश्चले निश्चलं भवेत्योगी स्थाणुत्वमाप्नोति ततो वायुं निरोधयेत्॥२.२॥

अर्थात प्राणों के चलायमान होने पर चित्त भी चलायमान हो जाता है और प्राणों के निश्चल होने पर मन भी स्वत: निश्चल हो जाता है और योगी स्थाणु हो जाता है। अतः योगी को श्वांसों का नियंत्रण करना चाहिए।

श्वास नियमन व नियंत्रण के लिए प्राणायाम का अभ्यास अच्छा रहता है। कपालभाति के बाद इन तीन भस्त्रिका, अनुलोम-विलोम व भ्रामरी प्राणायाम को नियमित अभ्यास में जोड़ सकते हैं। न्यूनतम 15 मिनट प्राणायाम नियमित करना चाहिए। धीरे-धीरे समय बढ़ा सकते हैं।

ध्यान किसी योग्य व्यक्ति के मार्गदर्शन में प्रारम्भ करना चाहिए और धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिए। अन्यथा लाभ की बजाय हानि भी हो सकती है। प्रारंभ में आँख बंद कर शांत होकर बैठना कठिन लगेगा। एकाग्रता नहीं बनेगी। प्रतिदिन 5 मिनट बैठने से अभ्यास प्रारंभ कर सकते हैं।

योग की प्रचलित धारणा से निकल कर योग आधारित जीवन शैली को जीवनचर्या का भाग बनाना आवश्यक है। इस भाग-दौड़ के जीवन में आहार-विहार के सामान्य नियमों को दिनचर्या में सम्मिलित करने से स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। ‘संतुलित आहार, सम्यक विहार और योग को जीवन का भाग’ ये तीनों बातें नवीन पीढ़ी को सिखाने से ‘भविष्य का भारत – स्वस्थ भारत’ की कल्पना की जा सकती है।

(लेखक विद्या भारती दिल्ली प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)

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