‘एक पिता एकम के हम बारिक’ की शिक्षा देता श्री गुरुग्रंथ साहिब

 – हरमिंदर सिंह मलिक

श्री गुरुग्रन्थ साहिब परमात्मा का शाब्दिक स्वरूप है। मानवीय आदर्श मूल्यों का अथाह कोष है। गुरु ग्रन्थ साहिब प्रत्येक शब्द मनुष्यों को इस संसार का सफल पथिक बनाता है। देखा जाए तो गुरु ग्रन्थ साहिब मानव समाज के सर्वपक्षीय कल्याण के लिए एक अलौकिक उपहार है।

गुरु ग्रन्थ साहिब की प्रमुख भाषा यद्यपि पंजाबी है। किंतु अलग-अलग क्षेत्रों से सम्बन्धित होने के कारण कई भक्तों की वाणी में मराठी, बंगला, संस्कृत, ब्रज, फारसी आदि भाषाओं का प्रयोग भी दिखाई देता है। इसमें दर्ज समस्त वाणी मानवीय ह्रदय की प्रत्येक भावना को अत्यंत सुचारु रूप से शब्दबद्ध करने और उसे सहजता की ओर परिवर्तित करने में सक्षम है। गुरु ग्रन्थ साहिब की वाणी की एक विशेषता यह भी है कि वह उन महान आत्माओं द्वारा इस संसार में अवतरित हुई है, जिन्होंने अपने जीवन को प्रत्येक परिस्थिति में श्रेष्ठ एवं उच्च बनाये रखा। वे मानवीयता, अधिकार एवं न्याय की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार के अत्याचार के सामने कभी विचलित नहीं हुए तथा आवश्यकता पड़ने पर अपना व अपने परिवार जनों का बलिदान देने में संकोच नहीं किया। वह सम्पूर्ण मनुष्य जाति को एक समझते थे “एक पिता एकम के हम बारिक”।

प्रत्येक धर्म में परमात्मा को सर्वशक्तिमान समझा गया है। कोई उसे प्रकृति में देखता है और कोई उसे धरती से दूर तो कही आसन लगाये बैठा सृष्टि को संचालन करने वाला मानता है। गुरुवाणी के अनुसार वह प्रकृति में विद्यमान है, प्रकृति का रचियता है और उसे समेटने वाला भी। वह प्रकृति में रचा-बसा होकर भी उससे भिन्न है। उससे कहीं अधिक विशाल एंव शक्तिशाली है। गुरु ग्रन्थ साहिब में परमात्मा को जिस स्वरूप में अंकित किया गया है, वह इस प्रकार है।

एक ओंकार सतनाम, करता पुरख, निरभउ, निरवैरू, अकालमुरति अजूनी, सैभं, गुरु प्रसादि।

अर्थात अकालपुरख एक है। उसकी तुलना में कोई अन्य नहीं। उसका नाम सच्चा है। वह चिरंतन है। वह समस्त सृष्टि एवं उसकी प्रत्येक वस्तु का सृजनकर्ता है। वह इतना विशाल एवं शक्तिशाली है कि वह किसी से भयभीत नहीं होता। वह किसी से बैर विरोध नहीं करता। वह सब का पालनकर्ता है। सखा मित्र एंव परवरदिगार है। यह परमात्मा मृत्यु के चक्र से भी मुक्त है। अर्थात वह जन्म मरण के बंधन में नहीं बंधता, अत: भिन्न-भिन्न योनियों में भी नहीं पड़ता। परमात्मा स्वयं ही अस्तित्व में आया है, इसके लिए उसे किसी पर आश्रित नहीं होना पड़ा। प्रभु तक मनुष्य की पहुंच गुरु की कृपा से ही सम्भव है। गुरु ग्रन्थ साहिब की समस्त वाणी अकालपुरख के असंख्य गुणों का अलग-अलग ढंगों से व्याख्यान है। इसके द्वारा जिज्ञासु को यह भी समझाया गया है कि सर्वकला सम्पूर्ण, सर्वशक्तिमान परमात्मा को प्रत्येक युग में सत्य है एवं व्यापक है। उसकी शरण में शारीरिक सुख, आत्मिक आनंद एंव सर्वसंतोषी जीवन प्राप्त होता है।  गुरु ग्रन्थ साहिब में जिस ‘वाहेगुरु’ का उल्लेख किया गया है, वह प्यार वाला है, सखा है, बंधू है। माता-पिता है, प्रीतपालक है, रहमदिल, रक्षक और मेहरबान है।

तूं मेरा पिता तूं है मेरी माता । तूं मेरा बंधू तूं मेरा भ्राता। तू मेरा राखा सभनी थाई ता भउ कोहा काडा (चिंता) जीउ ।।।।

तुमरी किरपा ते तुधु पछाणा।। तूं मेरी ओट तूं है मेरा माणा। तुझ बिनु दूजा अवरू न कोई सभु किछु तेरा खेलु अखाड़ा जीउ।।।।

जीअ जंत सभि तुधु उपाय जितु जितु भाणा तितु तितु लाय।। सभ किछु कीता तेरा होवै।। नाही किछु असाडा (हमारा) जीउ ।।३।।

आज विश्व में गुट बदियों का बोलबाला है। समूचा मानव समाज कई सिद्धांतो, धारणाओं, धर्मो एंव मान्यताओं को सम्मुख रखते हुए परस्पर टुटा हुआ है। यही पर बस नहीं है। निजी अहंकार, अहम और अपनी हित पूर्ति की लालसा में परस्पर नफरत की दीवारें दिन प्रतिदिन ऊँची एंव मजबूत होती जा रही है। दुसरों का नामोनिशान मिटाने के लिए अति घातक हथियारों के अंबार लगाय जा रहे हैं।  ऐसे वातावरण में मानवीय एकता की बात अर्थहीन और अनावश्यक प्रतीत होती है। इस घातक स्थिति पर अंकुश लगाने के लिए गुरुवाणी हमें कदम-कदम पर परस्पर समानता, प्रेम व एक दुसरे की सहायता और सेवा की प्रेरणा देती है।

“एक नूर ते सभ जग उपजिया कउन भले कउ मंदे” ।।

की भावना हमें एकता रखने, सहयोग देने, प्यार करने और परोपकारी बनने की ताकीद करती है।

“सभु को मीत हम आपन कीना हम सभना के साजन” का पवित्र उपदेश हमें सब का संगी-साथी बनाते हुए ईर्षा, शत्रुता एवं विभाजन से दूर रखने की योग्य भूमिका निभाता है। ‘एक पिता एकस के हम बारिक’ का संदेश किसी के प्रति दुर्भावना रखने की गुंजाईश ही नहीं रहने देता।

‘सभे सांझीवाल सदाइन तू किसै नदिसै बाहरा जीउ’ मानवीय एकता को एक स्त्रोत से जोड़ने का अनुपम आदेश है, जिसे गुरुवाणी ने हमारी मानवता को कृपापूर्वक प्रदान किया है। गुरुवाणी के इस शब्द में “जे तउ पीरीआ दी सिक हिआउ न ठाहे कहीदा” को सच्चे मन से स्वीकार कर लिया जाये तो सारे विवाद एवं आपसी गिले शिकवे समाप्त हो सकते है, क्योंकि समस्त ह्रदय माणिक मोती हैं।

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