– डॉ विकास दवे
प्रिय बिटिया!
हम सबके सुपरिचित ‘पै चाचा’ यानी श्री अनंत पै का नाम हममें से अधिकांश लोग जानते हैं। यदि मैं यह कहूँ कि वे एक व्यक्ति नहीं संस्था हैं, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आजकल बालवर्ग कॉमिक्स के विदेशों से आयातित जिन पात्रों के कारण हिंसा, अंधविश्वास, भय के मकडज़ाल में उलझा हुआ है उसकी शुरूआत तीन-चार दशक पूर्व हो गई थी।
चाचा पै ने राष्ट्र की नई पीढ़ी को अपनी ही संस्कृति और अपने ही राष्ट्र से अनभिज्ञ और दूर होते देखा तो एक संकल्प धारण किया, नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति के निकट लाने का। और इस कार्य हेतु माध्यम बनाया आप सबको सर्वाधिक रुचिकर लगने वाली चित्रकथाओं को। यही यज्ञ ‘अमर चित्रकथा’ के रूप में हम सबके सामने आया एक लम्बा संघर्षपूर्ण इतिहास है इस उपलब्धि के पीछे। यह बात अलग है कि शासन-प्रशासन ने आज तक उनके इस संस्कार यज्ञ में धेले भर का भी सहयोग नहीं दिया। किन्तु अच्छा कार्य किसी सहयोग का मोहताज नहीं होता। आज तो उन्होंने इलेक्ट्रानिक्स क्रान्ति का लाभ उठाते हुए एक ओर जहाँ दूरदर्शन पर सीरियलों के प्रदर्शन का कार्य प्रारंभ किया है वहीं कम्प्यूटर पर और इंटरनेट पर भी अमर चित्रकथाएं सहज ही विश्व सुलभ कराई हैं। ‘देवपुत्र’ भी उसी पथ का पथिक है। हमारी लम्बे समय से इच्छा थी कि कुछ रोचक चित्रकथाओं का प्रकाशन धारावाहिक रूप से देवपुत्र में भी हो यह आनंद की बात है कि उन्होंने इसके लिए हमें अनुमति दी है। अब नव वर्ष (वर्ष प्रतिपदा) से प्रारंभ हो रही है संस्कार, संस्कृति और राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत ये चित्रकथाएं।
और तुम्हारी ओर से चाचा पै को बधाई एवं अपने संकल्प की पूर्ति में वे सफल हों इस हेतु शुभकामनाएँ।
- तुम्हारे पापा
(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)
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