✍ राजेन्द्र सिंह बघेल
एक मासिक पत्रिका में छपे लेख में यह पढ़कर मन को प्रसन्नता हुई कि देश में विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी हेतु नवयुवकों के लिए अवसर आने वाले हैं। प्रसन्नता इसलिए हुई कि हमारे देश के युवाओं का सेवा के विभिन्न क्षेत्रों में सृजन होगा लेकिन यह प्रसन्नता ज़्यादा देर इसलिए नहीं टिक पायी क्योंकि उसी पत्रिका के संपादकीय लेख में एक शोध के अंश का वर्णन भी छपा था कि हमारे देश के नवयुवकों का चयन इन प्रस्तावित सेवाओं में होते-होते क्यों नहीं हो पाता? कारण सहित विवरण इस प्रकार था….
यद्यपि हमारे देश में विभिन्न क्षेत्रों में लगाने हेतु देशी विदेशी पूंजी की कमी नहीं है। औद्योगिक क्षेत्र के प्रबंधन में लगे हुए लोगों की कार्यक्षमता पर भी कोई प्रश्नचिह्न नहीं है। उन्हें तकनीकी जानकारी का भी अभाव नहीं है। संसाधनों का भी अभाव नहीं है, फिर कमी किस बात की है? क्यों हम पिछड़ जाते हैं? इसी संपादकीय लेख में यह भी लिखा था कि विभिन्न क्षेत्रों में सेवा नियोजन हेतु प्रयत्नशील बहुतायत नवयुवक लिखित परीक्षाएं तो उत्तीर्ण कर लेते हैं लेकिन हर साक्षात्कार के अवसर पर वे प्रश्नों का सटीक उत्तर नहीं दे पाते। अपने आप को ठीक से प्रस्तुत नहीं कर पाते और उनमें आत्मविश्वास का अभाव रहता है। लेख में वर्णित दूसरी एक और बात को पढ़कर मुझे बहुत ख़ुशी नहीं हुई। लेखक का कथन था कि सेवा योजन हेतु आए हुए नवयुवकों से जब उनकी ज्ञानात्मक जानकारी के आधार पर व्यावहारिक पक्ष को लेकर वार्ता की गई या उस ज्ञान पर आधारित प्रत्यक्ष एक प्रोजेक्ट तैयार करके दिखाने को कहा गया तो उसमें से अनेक बगलें झांकते हुए दिखे।
सोचिए यह स्थिति क्यों बनती है?
इसके लिए आज शिक्षा के क्षेत्र में लगे कार्यकर्ताओं, प्रबधंकों और अध्यापकों की ज़िम्मेदारी कितनी है? देश के शिक्षा संस्थानों के संचालकों से क्या उपर्युक्त प्रश्नों का उत्तर मिलेगा? प्रस्तुत लेख लिखने के पीछे हमारा यही मंतव्य है कि आज शिक्षा आरंभ की अवधि से ही विषय वस्तु की ज्ञानात्मक जानकारी के साथ-साथ छात्रों को उसके व्यावहारिक एवं प्रायोगिक ज्ञान कराए बिना बात नहीं बनेगी।
ज़रा सोचिए आख़िर हम भाषा, गणित, विज्ञान, हस्त कौशल, सामाजिक अध्ययन तथा कंप्यूटर व शारीरिक शिक्षा आदि विषयों का अध्यापन करते ही हैं। फिर इस अवधि में इन विषयों के व्यावहारिक एवं जीवन को पुष्ट और समृद्ध बनाने वाले विषय को क्यों ना आरंभ से ही संवारते चलें?
वर्णित कुछ ये पंक्तियां शायद इस भावना को और भी पुष्ट करती दिख रही हैं। इससे छात्रों में आरंभ से ही ज्ञान के साथ-साथ कुशलताओं का भी विकास होगा और वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफल भी होंगें।
Learning to learn is the ability to persue and persist in learning, to organise one’s own learning, including through effective management of time and information, both individually and in groups.
ऐसा न हो पाने का परिणाम क्या हो सकता है, आइए यह भी जानें….
कक्षा आठ में पढ़ने वाला सौरभ भूगोल में जलडमरू मध्य एवं प्रायद्वीप की परिभाषा तो जानता है और मानचित्र में यह स्थल कहाँ है पहचान कर नहीं बता पाता। ऐसे ही राज्यों के नाम तथा उनकी राजधानी तो उसे रटी हुई है पर भारत के मानचित्र में राज्यों की स्थिति कहाँ है तथा राजधानी का केंद्र दिखा पाने में असमर्थ रहता है।
मेरे पड़ोसी शर्मा जी इस बात से परेशान रहते हैं कि उनकी बेटी रीडिंग करते समय न तो ठीक उच्चारण कर पाती है और ना ही उपयुक्त एवं अर्थपूर्ण वाक्यांश बना पाती है।
कक्षा सात में पढ़ने वाला रमेश, मुंशी प्रेमचंद की कहानी ईदगाह के उन प्रश्नों का उत्तर तो तपाक से दे देता है जो उसके अध्यापक ने लिखा दिया था। पर जब मैंने यह जानना चाहा कि हामिद ने ईदगाह के मेले में मिठाई खाने के लिए दादी से प्राप्त पैसे का उपयोग चिमटा ख़रीदने में क्यों किया? यह परिस्थिति अगर तुम्हारे सामने होती तो तुम क्या करते? इस पर रमेश ने चुप्पी नहीं तोड़ी।
ऐसे ही महादेवी वर्मा द्वारा लिखित पाठ- गिल्लू से जीवन के प्रति दया या संवेदना का भाव कितने विद्यार्थियों में जगा, यह पूछने पर अनेक विद्यार्थी बहुत कुछ सार्थक जवाब देने में सक्षम नहीं थे।
बाज़ार से लौट रही चुनमुन से जब उसकी माँ ने सब्ज़ी ख़रीदने के लिए दिए गए पैसे का हिसाब माँगा तो पूरा हिसाब इसलिए नहीं दे पाई क्योंकि वस्तु का भाव, ख़र्च किए गए पैसे तथा शेष राशि का जोड़ करने पर भी हिसाब ठीक नहीं बैठ रहा था। कारण चुनमुन को ऐसे काम करने का व्यावहारिक ज्ञान नहीं था, यद्यपि वह कक्षा 8 की छात्रा है।
कक्षा नौ में पढ़ने वाले सोहन को उसके पिता ने एक पत्र रजिस्ट्री कराने डाकघर भेजा। सोहन ने रजिस्ट्री में लगने वाले डाक टिकट को ख़रीद कर लिफ़ाफ़े पर चिपकाया और उसे डाकघर के पोस्टबैग में डाल दिया। पिताजी ने जब रजिस्ट्री की रसीद माँगी तो सोहन का उत्तर सुनकर वो दंग रह गए। कारण रजिस्टर्ड पत्र कैसे भेजा जाता है, इसका व्यावहारिक ज्ञान उसे नहीं था।
हद तो तब हो गई जब मैंने अपने परिचित बीटेक कर चुके दो छात्रों से उनके मेट्रो रेल की सेवा में चयन होने के बारे में पूछा तो उनका जवाब था- चुनाव इसलिए नहीं हो सका क्योंकि स्वाइल टेस्टिंग के बारे में डिस्कशन के समय वह बहुत कुछ डिटेल में नहीं बता सके। बीटेक करते समय स्वाइल टेस्टिंग की प्रैक्टिकल जानकारी उन्हें करायी ही नहीं गई।
आइए हम संकल्प लेकर इसका हल करें
पाठ के सहगामी क्रियाकलाप यथा इतिहास, भूगोल, गणित, विज्ञान में करणीय प्रयोग को शिक्षण के साथ-साथ पूर्ण करेंगे। विज्ञान के पाठों से संबंधित उन तमाम प्रयोग एवं प्रोजेक्ट से संबंधित कार्य छात्र छात्राओं से पूर्ण कराएंगे। यह कार्य विद्यार्थी में वैज्ञानिक अभिरुचि पैदा कर सकेगी।
भाषा में अच्छे वाचन एवं अभिव्यक्ति की क्षमता बढ़ाने हेतु सभी आयामों पर ध्यान देंगे। भाषण, वाद-विवाद, कविता पाठ एवं अन्त्याक्षरी प्रतियोगिता में प्रतिभाग करने हेतु प्रेरित करेंगे। यह क्रियाकलाप भाषा कौशल विकसित करने, गीत गायन, संवाद स्थापित करने, वक्तृत्व कला में प्रवीण बनाने और अपनी बात को/अपने पक्ष को ठीक से रखने के लिए प्रवीणता लाएंगे।
गणित में व्यावहारिक ज्ञान के साथ-साथ क्षेत्रफल की प्रत्यक्ष जानकारी कक्षा/ मैदान या घर के आंगन की लंबाई चौड़ाई ज्ञात करके सूत्र अपनाकर क्षेत्रफल निकालने को कहेंगे। गणितीय ज्ञान का व्यावहारिक उपयोग करके उसे प्रौद्योगिकी की दिशा में आगे बढ़ाने की नींव मज़बूत करेंगे।
बालक को व्यक्तिगत एवं सामूहिक स्वच्छता के लिए ज़िम्मेदार एवं पर्यावरण के प्रति जवाबदेह बनाएंगे। खेलों के प्रति केवल जानकारी ही नहीं देंगे, उसे अच्छा खिलाड़ी भी बनाएंगे। वह श्रम के प्रति निष्ठावान बने, इसलिए विद्यालय समय में ही ऐसे अनेक कार्य प्रत्यक्ष करने (क्यारी में पानी देना/ वंदना स्थल की व्यवस्था/बाल मेला,प्रदर्शनी व वार्षिकोत्सव की व्यवस्था में प्रत्यक्ष योगदान) के लिए प्रेरित करेंगे।
जल प्रबंधन, स्वास्थ्य परीक्षण, भोजन बेला एवं वाहन स्थल की व्यवस्था जैसे कार्यों में उसकी रुचि के अनुसार दायित्व देकर कार्य का निर्वहन कराएँगे। ईश्वर, पूर्वजों एवं अपनों से बड़ों के प्रति सम्मान व्यक्त करने व उनमें आस्था रखने की की आदत बने, इसे हेतु संदेश देंगे। हम विद्यार्थी को स्वयं निर्णय लेने के लिए क्षमतावान बनाएंगे। शिशु/ बाल/किशोर और तरुण सभी आयु वर्ग के विद्यार्थियों से वह सभी व्यावहारिक कार्य पूर्ण कराएंगे जिससे हमारा विद्यार्थी जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल होगा।
निश्चितमेव कक्षा में हमारे द्वारा संपादित यह कार्य उन सब प्रश्नों का समुचित उत्तर होगा जो लेख के आरंभ में सेवा में चयन हेतु अभ्यर्थियों द्वारा अनुत्तरित थे।
(लेखक शिक्षाविद है और विद्या भारती के अखिल भारतीय प्रशिक्षण संयोजक रहे हैं।)
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कक्षा 6,7,8 में कृषि नाम का विषय था। उसनें क्यारी बनाना। पानी देना। सब्ज़ी उगाना जैसी समझदारी तो होती थी लेकिन मक़सद विषय में पास होना ही रहता था। लेख पढ़ के अचानक महसूस हुआ कि वो तो श्रम के महत्व का अभ्यास भी है। इससे हमे दूसरों की मेहनत का महत्व समझना चाहिए था लेकिन हम तो पास फेल में फँसे रहे। उद्देश्य पूरा नहीं हो पाया।
सकारात्मक सोच की ओर ले जाने के लिए आपके लेखन का शुक्रिया।