कक्षा में शैक्षिक परिणाम – एक प्रयोग

     राजेन्द्र सिंह बघेल

प्रत्येक मनुष्य अपने द्वारा किए गए कार्य का अच्छा परिणाम चाहता है। इसके लिए वह विभिन्न प्रकार के प्रयत्न भी करता है। कार्य का नियोजन, उसे पूरा करने की प्रक्रिया, संसाधनों का समुचित प्रयोग तथा समय-समय पर किए गए कार्य का मूल्यांकन ये सभी उस कार्य को पूरा करने के उपक्रम हैं।

  • कार्य का परिणाम कैसा मिला?

  • क्या वो अपेक्षित परिणाम था?

  • यदि अपेक्षानुकूल परिणाम नहीं मिला तो कारण क्या थे?

  • अपेक्षित परिणाम ना मिलने पर कारणों का पता कर उनका निवारण किया गया क्या?

  • निवारण पश्चात फिर आकलन किया गया क्या?

  • अंत में परिणाम कैसा रहा?

एक अच्छा कार्य करने वाले व्यक्ति के सम्मुख ये प्रश्न आते ही हैं। आइए उपर्युक्त कथन को एक आचार्य होने के नाते अपनी कक्षा में प्रयोग करें। वास्तव में ये लेख एक अनुभव से जुड़ा है। विद्याभारती झारखंड राज्य के जिला केंद्रों पर प्रवास के समय अनेक स्थानों पर ये तथ्य मेरे सामने आए। प्रवास के क्रम में एक दिन मैं बोकारो स्टील सिटी के अपने एक विद्यालय में था। विद्यालय में शैक्षणिक प्रगति के लिए प्रयत्नों की जानकारी करते समय विभिन्न कक्षाओं से जुड़े अनुभव पाठकों के समक्ष रख रहा हूँ।

पहला प्रसंग – कक्षा छह के हिंदी विषय में विशेषण पाठ के शिक्षण से जुड़ा

  • पाठ के शिक्षण के पश्चात आचार्य ने ये जानने का प्रयत्न किया कि विद्यार्थियों को विशेषण की जानकारी कितनी व कैसी हो पाई? इस अवसर पर जो परिणाम प्राप्त हुआ, मैं उसका प्रत्यक्षदर्शी था।

  • कक्षा के 42 विद्यार्थियों में से आठ ने बताई गई परिभाषा और शिक्षण के समय दिए गए उदाहरणों को बताया।

  • पांच विद्यार्थी ऐसे थे जो दिए गए उदाहरणों के अतिरिक्त भी कुछ अन्य उदाहरण जोड़ते हुए अच्छा उत्तर दे रहे थे।

  • शेष विद्यार्थी या तो चुप थे या एक दूसरे को देखते हुए अनुत्तरित थे।

इस परिस्थिति में स्वाभाविक है कि आचार्य बहुत उत्साहित नहीं हुए। मेरे पास आकर ये कहने लगे कि मैंने प्रयास तो पूरा किया लेकिन लगता है कि बच्चे उसे समझ नहीं पाए। ऐसे में मैंने प्रोत्साहन देते हुए कहा कि कक्षा के पांच बच्चे तो अच्छा उत्तर दे रहे थे। देखिए फिर से एक प्रयत्न और कीजिए तथा सोचिए कि अच्छा परिणाम कैसे मिल सकता है? इसी क्रम में आचार्य जी ने फिर से विशेषण पाठ की जानकारी विद्यार्थियों के सम्मुख प्रस्तुत की। हाँ, इस बार उनके प्रयत्न में कुछ अधिक नवीनता थी और कक्षा के परिवेश से जुड़े हुए ही अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए। उनके प्रयत्न इस प्रकार थे…

  • कक्षा के बच्चों का नाम लेकर उनकी विशेषता बता रहे थे।

  • कक्षा में उपलब्ध सामग्रियों की क्या विशेषता है (उनका आकार, रंग, संख्या आदि) उनसे जुड़े उदाहरण दे रहे थे।

  • विद्यालय परिसर में स्थित स्थानों की विशेषता भी बताई।

  • कक्षा के छात्रों को एक दूसरे के सम्मुख खड़े होकर सामने वाले छात्र की क्या विशेषता है, ये बताने को कह रहे थे।

  • कक्षा में तीन समूह बनाकर एक को बाहर प्रांगण में, दूसरे समूह को बरामदे में तथा तीसरे समूह को कक्षा में ही रहने दिया। उनसे कहा कि जो भी वस्तु देखें उसकी विशेषता क्या है, ऐसी जानकारी करके आने का निर्देश दिया।

  • ऐसी जानकारी करके आने पर विशेषण के साथ छात्र ये भी बता रहे थे कि वस्तु का रंग, उनकी संख्या और आकार कैसा है? यद्यपि उन्हें अभी विशेषण के प्रकार नहीं बताए गए थे।

  • स्वाभाविक है कि ऐसा करने से बच्चों की अधिक संख्या में भागीदारी रही और वे नए प्रकार के कार्य से उत्साहित थे।

  • अनेक उदाहरण विद्यालय परिसर और कक्षा-कक्ष से जुड़े होने के कारण सुलभ और सरल थे।

इससे अनेक बिंदु उभरकर आए – 

  • कक्षा के वे बच्चे जो अक्सर उत्तर देने में संकोच करते या चुप ही रहते हैं, वे भी उत्तर देने का प्रयत्न कर रहे थे।

  • परिणामस्वरूप शिक्षण के पश्चात आचार्य का उत्साह दोगुना ही नहीं बल्कि उससे भी अधिक था।

  • उन्होंने ये भी बताया कि आज की कक्षा के सभी स्तर के बच्चों ने उत्तर दिया और जो स्वयं अनुभव करके देखा या समझा था वैसा ही परिणाम आया।

  • आज विशेषण पाठ का प्रभाव एवं उसकी अनुभवजन्य जानकारी छात्रों को कैसे प्राप्त हुई, इसका हम सब आकलन कर सकते हैं।

दूसरा प्रयोग गणित विषय से संबंधित है

कक्षा नौ में सांख्यिकी का पाठ पढ़ाने का आज तीसरा दिन था। विषय से संबंधित शिक्षण के क्रम में आज आचार्य जी ने तीन प्रश्न अभ्याय के लिए दिए। मैंने उनसे जानना चाहा कि ये तीन प्रश्न हल करने में बच्चों को कितना समय लगेगा। उनका कहना था कि आठ से दस मिनट में छात्र सभी प्रश्न हल कर लेंगे। प्रश्न हल करने के क्रम में जो दृश्य मेरे सामने उपस्थित हुआ, उसका विवरण इस प्रकार है।

  • उस कक्षा में चालीस विद्यार्थी थे। नौ छात्रों ने सबसे पहले सभी प्रश्नों का हल कर लिया था। आचार्य जी ने इनमें से तीन के उत्तर की जांच की तथा शेष छह में से दो-दो के उत्तर जांचने की जिम्मेदारी उन्हीं तीन बच्चों को दी। जानकारी मिली कि शेष सभी छह के उत्तर भी सही थे। इन सभी नौ बच्चों ने मात्र आठ मिनट में तीनों प्रश्न हल कर दिए थे।

  • ये भी जानकारी मिली कि अगले 18 छात्रों में से दस छात्रों के उत्तर एवं विधि बिल्कुल ठीक थी लेकिन आठ के उत्तर अधूरे थे। इन आठ छात्रों ने उत्तर अधूरे क्यों दिए ऐसा पूछने पर पांच का कहना था कि मैंने ये गलती अतिविश्वास के कारण जल्दी में किया। शेष तीन ने बताया कि इन प्रश्नों के बारे में उनका कॉसेप्ट स्पष्ट नहीं था, इसलिए प्रश्न का आधा उत्तर भी ठीक से नहीं दे पाए।

  • इन 18 छात्रों को ये तीन प्रश्न हल करने में बारह मिनट लगे।

  • शेष बचे 13 छात्रों ने तीन प्रश्नों को हल करने में 18 मिनट लगाए। तेरह में से नौ के उत्तर ठीक थे।

  • अगले क्रम में तेरह बच्चों ने बताया कि वे प्रश्न हल कर चुके हैं, इन छात्रों के उत्तर पहली बार में जिन नौ छात्रों ने कम समय में प्रश्न हल किया था, उन्हें जांचने का अवसर दिया गया। तेरह में से नौ के उत्तर सही थे यद्यपि उन्होंने अधिक समय लिया। शेष चार के उत्तर और विधि दोनों गलत थी। पूछने पर कारण बताया कि उन्हें इन प्रश्नों को हल करने की जानकारी स्पष्ट नहीं थी।

  • चालीस में से शेष चार बच्चे अब तक 25 मिनट में भी उत्तर नहीं दे सके थे। पता चला कि उनके उत्तर अधूरे थे या उत्तर ही नहीं दिया। बात करने पर उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्हें गणित विषय में रुचि नहीं है, इसलिए प्रश्न समझ ही नहीं पाए।

संपूर्ण परिणाम आचार्य जी के सामने था। यद्यपि उनके कथन के अनुसार आठ से दस मिनट में सब बच्चे तीनों प्रश्न हल तो नहीं कर पाए लेकिन ये संपूर्ण विवरण जानकर वे आनंदित थे क्योंकि उन्होंने अनुभव किया कि……..

  • कक्षा के चालीस में से नौ विद्यार्थियों को विषय की अवधारणा स्पष्ट है इसीलिए शीघ्रता से सही उत्तर दे सकते हैं। ये नौ छात्र दूसरे छात्रों के उत्तर भी जांच सकते हैं, अर्थात इनमें नेतृत्व की भी क्षमता है।

  • ये नौ छात्र प्रश्नों को शीघ्र व पूर्ण शुद्धता के साथ कर सके।

  • शेष 19 विद्यार्थी तो उत्तर सही देते हैं, उन्हें अवधारणा और समझ भी है लेकिन अभ्यास कम होने से कारण समय अधिक लेते हैं। इसीलिए उन्हें शीघ्रता से शुद्ध उत्तर देने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।

  • इन चालीस में से पांच के उत्तर अशुद्ध हुए क्योंकि वे अति विश्वास में गलती कर गए। उन्हें इस दृष्टि से सावधान करना होगा।

  • तीन छात्रों के उत्तर इसलिए अशुद्ध हुए कि उन्हें विषय की समझ स्पष्ट नहीं थी। उनकी समझ विकसित करने के लिए गणित के बौद्धिक स्तर की जानकारी करके तद्नुसार प्रयत्न करने होंगे।

  • कक्षा के जिन चार छात्रों ने अंत तक आधे अधूरे उत्तर दिए या कुछ कर भी नहीं पाए उनकी समझ को बढ़ाने के अनुरूप प्रयत्न करने होंगे।

  • इसमें समय लगेगा और धैर्य के साथ इसे करना होगा।

गणित की इस कक्षा के छात्रों की समझ, न्यूनतओं और उसके निरकरण का विवरण इस सारणी में है- कुल छात्र संख्या-40

छात्र संख्या शुद्ध उत्तर समय लगा समझ की स्थिति
09 सभी का 8 मिनट सबकी अवधारणा स्पष्ट, पूरी समझ, समय कम लगा। उन सभी के नेतृत्व की क्षमता भी है।
18 10  के सही 12 मिनट समझ तो है पर समय अधिक लगाया। शुद्धता के साथ शीघ्रता भी आदत में लानी होगी।
05 के उत्तर अधूरे 15 मिनट समझ तो थी पर अति विश्वास में त्रुटी कर गए; इससे सावधानी रखने का सन्देश देना होगा।
03 के उत्तर अशुद्ध 18 मिनट कांसेप्ट नहीं; इसे विकसित करना होगा।
13 9 के शुद्ध 18 मिनट समझ तो है पर अधिक अभ्यास के द्वारा शीघ्र व शुद्ध हल की आदत विकसित करनी होगी।
04 के अशुद्ध या आधे/अधूरे 25 मिनट से भी अधिक लगे विषय का कांसेप्ट नहीं/रुचि भी नहीं। विभिन्न प्रकार सकारात्मक प्रयत्न इनके लिए करने होंगे।

प्रस्तुत लेख में किए गए प्रयोग व उनसे प्राप्त अनुभवों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि…

  • छात्रों के समग्र विकास के लिए उनके स्तर की जानकारी करके तद्नुरूप हमें प्रयत्न करने होंगे।
  • किसकी कठिनाई क्या, कैसी व क्यों है, ये भी समझना होगा।
  • कक्षा के छात्रों के मध्य उनकी सबलताएं एवं दुर्बलताएं समझकर तद्नुरूप प्रयास करना होगा।
  • सबलताओं का सदुपयोग कर छात्रों को राष्ट्रनिर्माण की दिशा में आगे बढ़ाने में यहां हम अपना कर्तव्य पूरा करेंगे, वहीं इन छोटी-छोटी समस्याओं को हल कर देश की बड़ी कठिनाइयों को सुगम करने का एक सुखद संदेश दे सकेंगे।

(लेखक शिक्षाविद है और विद्या भारती के अखिल भारतीय प्रशिक्षण संयोजक रहे हैं।)

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