भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक कर्तव्य – भाग दो

✍ डॉ. कुलदीप मेहंदीरत्ता

भारतीय संविधान में प्रदत्त मौलिक कर्तव्यों को हम चार वर्गों में विभाजित कर सकते हैं। प्रथम वर्ग है ‘नागरिक उत्तरदायित्व’ इसके अंतर्गत हम ‘संविधान का पालन करना और इसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज, और राष्ट्रगान का आदर करना’ कर्तव्य सम्मिलित करते हैं। दूसरा वर्ग है  ‘राष्ट्रीय एकता’ सम्बन्धी कर्तव्य जिनमें ‘हमारे राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलनों को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखना’, ‘देश की प्रभुता, एकता, और अखंडता की रक्षा’, ‘देश की रक्षा करें और आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रीय सेवा’ तथा ‘सभी नागरिकों के बीच एकता, समरसता, और बंधुत्व की भावना को बढ़ावा देना’ शामिल है। तीसरा वर्ग है ‘सांस्कृतिक और पर्यावरण उत्तरदायित्व’, जिसमें ‘भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर को समझना और संरक्षित करना’ तथा ‘प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना और इसका संरक्षण करना’ है। और अंतिम वर्ग चौथा वर्ग है ‘शैक्षिक और सामाजिक कर्तव्य’ जिसके अंतर्गत ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करना, ‘सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करना’, ‘व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयासों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करना’ तथा  6 से 14 वर्ष के बच्चों को माता-पिता या संरक्षक द्वारा प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित करना है।

क्या हैं मौलिक कर्तव्य

मौलिक कर्तव्य नागरिकों के लिए नैतिक दायित्व हैं जो उन्हें देशभक्ति, राष्ट्र की एकता और अखंडता की भावना को बढ़ावा देने में सहायता करते हैं। ये कर्तव्य नागरिकों को उनके दायित्वों का बोध कराते हैं ताकि वे एक उत्तरदायी नागरिक बन सकें और राष्ट्र के विकास में योगदान दे सकें। मौलिक कर्तव्य नागरिकों को उनके अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों के प्रति भी सचेत करते हैं ताकि वे समाज और राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर सकें। ये कर्तव्य संविधान के मूल्यों और आदर्शों को साकार करने में मदद करते हैं। मौलिक कर्तव्य नागरिकों को उनके व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन में नैतिक मूल्यों और आदर्शों को अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। ये कर्तव्य व्यक्ति के चरित्र निर्माण में सहायक होते हैं।

मौलिक कर्तव्य नागरिकों को जीवन के व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करने के लिए प्रेरित करते हैं। मौलिक कर्तव्य नागरिकों के बीच सकारात्मक नागरिक सम्बन्धों और पारस्परिकता को बढ़ावा देते हैं। वे नागरिकों को उन कृत्यों से बचने के लिए सावधान करते हैं जो समाज के हितों के लिए हानिकारक हैं। मौलिक कर्तव्यों को देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देने और भारत की एकता को बनाए रखने में सहायता करने के लिए सभी नागरिकों के नैतिक दायित्वों के रूप में परिभाषित किया गया है। वे आधारभूत कर्तव्यों के रूप में कार्य करते हैं जिनका सभी नागरिकों से पालन करने की अपेक्षा की जाती है।

मौलिक कर्तव्यों की प्रकृति

मौलिक कर्तव्यों की प्रकृति नैतिक और शैक्षणिक है, न कि न्यायिक। इन कर्तव्यों का उल्लंघन कोई अपराध नहीं माना जाता है और इन्हें कोई अदालत लागू नहीं कर सकती। लेकिन, ये कर्तव्य नागरिकों के लिए नैतिक रूप से बाध्यकारी हैं। यद्यपि न्यायपालिका एक अस्पष्ट क़ानून या प्रावधान की व्याख्या करने के लिए मौलिक कर्तव्यों का संज्ञान ले सकती है। वे हमारे संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित निर्धारित लक्ष्यों को साकार करने के लिए नैतिक आधार के रूप में कार्य करते हैं। मौलिक कर्तव्य राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से अपना महत्व प्राप्त करते हैं। मौलिक कर्तव्य प्रकृति में गैर-न्यायसंगत हैं, जिसका अर्थ है कि वे किसी भी अदालत द्वारा लागू करने योग्य नहीं हैं। हालांकि, यह अपेक्षा की जाती है कि संसद और राज्य कानून बनाते समय इन मौलिक कर्तव्यों का ध्यान रखेंगे और इनके आधार पर कानून बनाएंगे। मौलिक कर्तव्य संविधान के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों के पूरक हैं। वे नागरिकों को आत्म-अनुशासन और नागरिक जिम्मेदारियों की याद दिलाते हैं। इस प्रकार, मौलिक कर्तव्य नागरिकों को उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूक करते हैं और उनका पालन करने के लिए प्रेरित करते हैं, भले ही वे कानूनी रूप से लागू न हों।

क्या है मौलिक कर्तव्यों का विषय-क्षेत्र

संविधान के अनुच्छेद 51ए के अंतर्गत 11 मौलिक कर्तव्य सूचीबद्ध हैं। ये भारतीय संविधान को बनाए रखना, देशभक्ति को बढ़ावा देना, पर्यावरण की रक्षा, सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा जैसे पहलुओं को अपने विषय-क्षेत्र में समेटे हुए हैं। नागरिकों से इन कर्तव्यों का पालन करने की अपेक्षा की जाती है, परन्तु ये कानूनी रूप से लागू किये जाने योग्य नहीं हैं। हमारे मौलिक कर्तव्य, क़ानून निर्माण के लिए आवश्यक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर संविधान के अस्पष्ट प्रावधानों की व्याख्या में सहायक होते हैं। मौलिक कर्तव्यों में सद्भाव को बढ़ावा देना, स्मारकों की रक्षा, भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा भी शामिल हैं। ये नागरिकों को देश की रक्षा करने और आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रीय सेवा प्रदान करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके अतिरिक्त मौलिक कर्तव्य, नागरिकों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद और जिज्ञासा की भावना को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहित करते हैं।

भारत में मौलिक कर्तव्यों का महत्व

मौलिक कर्तव्य भारतीय नागरिकों को एक उत्तरदायी नागरिक बनने के लिए प्रेरित करते हैं जो देश के विकास में योगदान कर सकता है। ये हमारे राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण में सहायक होते हैं। मौलिक कर्तव्य नागरिकों को उनके कर्तव्यों के प्रति सचेत करते हैं जो उन्हें एक सभ्य, सुसंस्कृत और प्रगतिशील समाज बनाने में सहायता करते हैं। मौलिक कर्तव्य देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये सामाजिक सद्भाव, सहिष्णुता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देकर देश में शांति और सौहार्द को स्थापित करने में सहायक होते हैं। मौलिक कर्तव्य नागरिकों में राष्ट्र के प्रति निष्ठा और बलिदान की भावना का संचार करते हैं। इस प्रकार, मौलिक कर्तव्य भारत को एक समृद्ध, समावेशी और न्यायसंगत समाज बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये हमारे संविधान के मूल आदर्शों को साकार करने में सहायता करते हैं। इसलिए, नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्यों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है।

(लेखक विद्या भारती विद्वत परिषद के अखिल भारतीय संयोजक है एवं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र-हरियाणा में राजनीति शास्त्र के सहायक प्रोफेसर है।)

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