मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व

✍ विनोद जोहरी

संक्रान्ति का अर्थ है, ‘सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण (जाना)’। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास है। पूरे वर्ष में कुल 12 संक्रान्तियां होती हैं। लेकिन इनमें से चार संक्रांति मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति महत्वपूर्ण हैं। पौष मास में सूर्य का धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रान्ति रूप में जाना जाता है।

सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियां चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है, मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है और इसे सम्पूर्ण भारत और नेपाल के सभी प्रान्तों में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है।

उत्तर भारत में इस पर्व को ‘मकर सक्रान्ति, पंजाब में लोहडी, गढ़वाल में खिचडी संक्रान्ति, गुजरात में उत्तरायण, तमिलनाडु में पोंगल, जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति’ कहते हैं।

शास्त्रों के अनुसार, देवताओं के दिन की गणना इस दिन से ही प्रारम्भ होती है। सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्रि व उत्तरायण के छ: माह को दिन कहा जाता है। सामान्यतः सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। सर्वविदित है कि पृथ्वी की धुरी 23.5 अंश झुकी होने के कारण सूर्य छः माह पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध के निकट होता है और शेष छः माह दक्षिणी गोलार्द्ध के निकट होता है।

मकर संक्रांति का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस दिन से सूर्य के उत्तरायण हो जाने से प्रकृति में बदलाव शुरू हो जाता है। शीत के कारण से ठिठुरते लोगों को सूर्य के उत्तरायण होने से शीत ऋतु से राहत मिलना आरंभ होता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां के पर्व त्योहार का संबंध काफी कुछ कृषि पर निर्भर करता है। मकर संक्रांति ऐसे समय में आता है जब किसान रबी की फसल लगाकर खरीफ की फसल, मक्का, गन्ना, मूंगफली, उड़द घर ले आते हैं। किसानों का घर अन्न से भर जाता है। इसलिए मकर संक्रांति पर खरीफ की फसलों से पर्व का आनंद मनाया जाता है।

मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध के निकट होता है अर्थात् उत्तरी गोलार्ध से अपेक्षाकृत दूर होता है जिससे उत्तरी गोलार्ध में रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा शीत की  ऋतु होती है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर आना प्रारम्भ हो जाता है। अतएव इस दिन से उत्तरी गोलार्ध में रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा सर्दी की ठिठुरन कम होने लगती है। अतः मकर संक्रान्ति अंधकार की कमी और प्रकाश की वृद्धि का आरंभ है।

समस्त जीवधारी (पशु, पक्षी व पेड़ पौधे भी) प्रकाश चाहते हैं। संसार सुषुप्ति से जाग्रति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होती है। प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है और अन्धकार अज्ञान का।

भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है, इसलिए ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का उद्घोष करने वाली भारतीय संस्कृति में मकर संक्रांति अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतवर्ष के लोग इस दिन सूर्यदेव की आराधना एवं पूजन कर, उसके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

विश्व की 90% आबादी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में ही निवास करती है अतः मकर संक्रांति पर्व न केवल भारत के लिए बल्कि लगभग पूरी मानव जाति के लिए उल्लास का दिन है। सम्पूर्ण विश्व के सभी उत्सवों में संभवतः मकर संक्रांति ही एकमात्र उत्सव है जो किसी स्थानीय परम्परा, मान्यता, विश्वास या किसी विशेष स्थानीय घटना से सम्बंधित नहीं है, बल्कि मकर संक्रांति एक ऐसी खगोलीय घटना है जो सम्पूर्ण भूलोक में नव स्फूर्ति और आनंद का संचार करती है। यद्यपि मकर संक्रांति सम्पूर्ण मानवता के उल्लास का पर्व है परंतु इसका उत्सव केवल हिन्दु समाज मनाता है क्योंकि विश्व बंधुत्व, विश्व कल्याण और सर्वे भवन्तु सुखिनः की उदात्त भावना केवल भारतीय संस्कृति की विशेषता है।

भगवद् गीता के अध्याय ८ में भगवान कृष्ण कहते हैं कि उत्तरायण के छह माह में देह त्याग करने वाले ब्रह्म गति को प्राप्त होते हैं जबकि दक्षिणायन के छह माह में देह त्याग करने वाले संसार में वापिस आकर जन्म मृत्यु को प्राप्त होते हैं।

अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्।

तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः।।

धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण षण्मासा दक्षिणायनम्।

तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी  प्राप्य निवर्तते।।

शुक्ल कृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते।

एकया  यात्यनावृत्ति  मन्ययावर्तते  पुनः।।

यही कारण था कि भीष्म पितामह महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद मकर संक्रान्ति की प्रतीक्षा में अपने प्राणों को रोके अपार वेदना सह कर शर-शैया पर पड़े रहे थे। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी और भगीरथ के पूर्वज महाराज सगर के पुत्रों को मुक्ति प्रदान की थी, इसीलिए आज के दिन बंगाल में गंगासागर तीर्थ में कपिल मुनि के आश्रम पर एक विशाल मेला लगता है जिसके बारे में मान्यता है कि –

“सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार”।

तीर्थराज प्रयाग में लगने वाले कुम्भ और माघी मेले का पहला स्नान भी इसी दिन होता है। प्रयागराज में एक माह तक चलने वाले कुम्भ मेले में सारे भारत और विदेशों तक से करोड़ों  हिंदू पहुंचते हैं। तीर्थराज प्रयाग का कुम्भ विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है।

मकर संक्रान्ति के दिन गंगा स्नान, सूर्योपासना व तीर्थ स्थलों पर स्नान दान विशेष पुण्यकारी होता है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगा स्नान एवं गंगा तट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगा सागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई है।

मकर संक्रांति के दिन तिल का बहुत महत्व है। कहते हैं कि तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल के तेल द्वारा शरीर में मालिश, तिल से ही यज्ञ में आहुति, तिल मिश्रित जल का पान, तिल का भोजन इनके प्रयोग से मकर संक्रांति का पुण्य फल प्राप्त होता है और पाप नष्ट हो जाते हैं। आयुर्वेद में तिल को कफ नाशक, पुष्टिवर्धक और तीव्र असर कारक औषधि के रूप में जाना जाता है। यह स्वभाव से गर्म होता है इसलिए इसे सर्दियों में मिठाई के रूप में खाया जाता है। गजक, रेवड़ियां और लड्डू शीतऋतु में ऊष्मा प्रदान करते हैं।

मकर संक्रांति के समय नदियों में वाष्पन क्रिया होती है। इससे तमाम तरह के रोग दूर हो सकते हैं, इसलिए इस दिन नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है। इस दिन खिचड़ी का सेवन करने का भी वैज्ञानिक कारण है। खिचड़ी पाचन को दुरुस्त रखती है। अदरक और मटर मिलाकर खिचड़ी बनाने पर यह शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है और बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करती है।

पुराण और विज्ञान दोनों में सूर्य की उत्तरायन स्थिति का अधिक महत्व है। सूर्य के उत्तरायन होने पर दिन बड़ा होता है इससे मनुष्य की कार्य क्षमता में वृद्धि होती है। मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में वृद्धि होती है। इससे चेतना और ब्रह्मांडीय बुद्धि कई स्तरों तक बढ़ जाती है, इसलिए यह पूजा करते हुए  हम उच्च चेतना के लाभ प्राप्त कर सकते हैं। अध्यात्मिक भावना शरीर को बढ़ाती है और उसे शुद्ध करती है। इस अवधि के दौरान किये गए कामों में सफल परिणाम प्राप्त होते है। समाज में धर्म और आध्यात्मिकता को फ़ैलाने का यह धार्मिक समय होता है।

मकर संक्रांति को अनेक स्थानों पर पतंग महोत्सव मनाए जाते हैं। प्राचीन भारतीय साहित्य में भी पतंग उड़ाने का उल्लेख मिलता है। रामचरित्मानस के बालकाण्ड में श्रीराम के पतंग उड़ाने का वर्णन है- ‘राम इक दिन चंग उड़ाई, इन्द्र लोक में पहुंची जाई’। बड़ा ही रोचक प्रसंग है। पंपापुर से हनुमान जी को बुलवाया गया था, तब हनुमान जी बाल रूप में थे। जब वे आए, तब ‘मकर संक्रांति’ का पर्व था, संभवतः इसीलिए भारत के अनेक नगरों में मकर संक्रांति को पतंग उड़ाने की परम्परा है। यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में प्रातः का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थ्य वर्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। अतः पतंग उड़ाने का एक उद्देश्य कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना भी है।

इस प्रकार मकर संक्रांति का धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व होने के कारण हम सब को इस पर्व को विशेष रूप से मनाना चाहिए और अपने धर्म व समाज की प्रगति के लिए तत्पर रहना चाहिए।

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