रामायण सत कोटि अपारा-3 (साहित्य जगत में राम का नाम)

✍ रवि कुमार

बाईस जनवरी को अयोध्या जी में रामलला की मूर्ति स्थापना व प्राण प्रतिष्ठा से सम्पूर्ण देश का जो वातावरण राममय हुआ, उसके बाद वहां दर्शनार्थ रामभक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है। रामभक्तों की श्रृंखला राममय वातावरण को और भव्य बनाती जा रही है। इस पर कबीर दास जी के भजन की एक पंक्ति स्मरण आती है – “राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट। पाछे फिर पछतावेगा, जब प्राण जाएंगे छूट।।” राम नाम को साहित्य जगत में पर्याप्त स्थान मिला है। जिस प्रकार बाल्मीकि रामायण, तुलसीकृत रामचरितमानस व रामलीला मंचन से रामकथा का प्रसार हुआ, उसी प्रकार साहित्यकारों ने अपनी लेखनी से कथा, काव्य, दोहावली, श्लोक, गीत आदि के माध्यम से रामनाम को जन-जन तक पहुंचाया और चैतन्य रूप में स्थापित किया।

राम काव्य धारा

साहित्य के काल को जब विभाजित करते है तो आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल व आधुनिक काल, उसमें भक्तिकाल (सन 1375 से 1700) का वर्णन आता है। इस भक्तिकाल में जिन भक्त कवियों ने विष्णु अवतार के रूप में श्रीराम की उपासना को अपना लक्ष्य बनाया उन्हें ‘राम काव्यधारा’ के कवि कहा जाता है। राम काव्यधारा के प्रमुख कवि है- रामानन्द, अग्रदास, ईश्वरदास, तुलसीदास, नाभादास, केशवदास व नरहरिदास।

रामभक्ति काव्यधारा का प्रारम्भ रामानंद से माना जाता है। ये रामानंदी (रामावत) व श्री सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे। इनकी प्रमुख रचनाएं रामार्चन पद्धति, वैष्णवमताब्ज, हनुमान जी की आरती (आरती कीजे हनुमान लला की), रामरक्षास्त्रोत है। अग्रदास  ने स्वयं को ‘अग्रकली’ (जानकी की सखी) मानकर काव्य रचना की। उनकी रचनाओं में प्रमुख है – ‘ध्यान मंजरी’, ‘अष्टयाम’, ‘रामभजन मंजरी’, ‘उपासना बावनी’, ‘हितोपदेशी भाषा’।

गोस्वामी तुलसीदास जी की ‘रामचरितमानस’ रचना अद्भुत व सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इसके अलावा उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं है – ‘बरवैरामायण’, ‘रामाज्ञा प्रश्नावली’, ‘कलिकाल’, ‘हनुमानबाहुक’, ‘कवित रामायण’, ‘रामलला नहछु’, ‘जानकी-मंगल’, ‘विनय-पत्रिका’, ‘गीतावली’। राम काव्य धारा के कवियों में सर्वाधिक रचनाएं तुलसीदास जी की हैं। नाभादास तुलसीदास जी के समकालीन थे। इनकी प्रमुख रचना ‘भक्तमाल’ है जिसमें २०० कवियों का वर्णन है। केशवदास की प्रमुख रचनाओं में ‘रामचंद्रिका’ है। नरहरिदास की ‘पौरुषेय रामायण’ रचना है।

प्राचीन ग्रंथों में राम

महाभारत में द्रोण पर्व, शांति पर्व और आरण्यक पर्व चार स्थलों पर रामकथा का वर्णन है। हरिवंश, वायु, विष्णु, भागवत, कूर्म, अग्नि, नारद, गरुड़, स्कंध, ब्रह्मवैवर्त, ब्रह्मांड आदि पुराणों में रामकथा का उल्लेख है। अगस्तय संहिता, कलि राघव और राघवीय संहिता में राम के प्रति दास्य भाव की भक्ति का वर्णन है। अनेक संहिता ग्रंथों में श्रीराम के मधुर रूप की उपासना का उल्लेख हुआ है।

संस्कृत नाटकों में रामकथा

रामकथा को आधार मानकर संस्कृत में अनेक नाटक लिखे गए हैं। भास द्वारा रचित ‘प्रतिमा’ और ‘अभिषेक’, भवभूति रचित ‘महावीर चरितम्’ और ‘उत्तर रामचरितम्’, मुरारी रचित ‘अनंगराघव’, रामेश्वर रचित ‘बालरामायण’ व ‘हनुमन्नाटक’, आश्चर्य चूड़ामणि कृत ‘प्रसन्नराघव’ आदि नाटकों में रामकथा को कथानक बनाया है। कालिदासकृत ‘रघुवंश’ महाकाव्य में नवम् से षोडश सर्ग तक रामकथा का वर्णन है। कुमारदास रचित ‘जानकीहरण’, क्षेमेन्द्र कृत ‘रामायण मंजरी’ व ‘दशावतार चरित’ महाकाव्यों में रामकथा का ही वर्णन है।

कालीदासकृत रघुवंश में श्रीराम के अयोध्या आगमन के विषय में वर्णन है –

स मौलरक्षोहरिमिश्रसैन्यस्तूर्यस्वनानन्दितपौरवर्गः।

विवेष सौधोद्गतलाजवर्षां उत्तोरणां अन्वयराजधानीं।। १४.१० ।।

अर्थात सेना सहित राम ने तुरही आदि बाजों से नागरिकों को आनन्द विभोर करते हुए पुराने मंत्रियों, राक्षसों और वानरों के साथ रघुवंश के राजाओं की उस राजधानी अयोध्या में प्रवेश किया, जो सब ओर बन्दनवारों से सजी थी, और जिसके चूने से पुते भवनों से धान का लावा बरस रहा था।

मेहो जी कृत ‘रामायण’ में वर्णन है-

‘अठसठ तीरथ जो पुन न्हाया, सुणौ रामायण काने,

पढियां नै मेहो समझावै, धायो धर्म धियाने।’

मेहो जी ने रामायण की रचना 1575 में कई थी। 258 छंदों में रचित यह रामायण राजस्थानी भाषा में है। प्राणचंद चौहान ने संवत १६६७ में ‘रामायण महानाटक’ लिखा। हृदयरमा ने ‘हनुमन्न’ नाटक की रचना की।

आधुनिक युग के रामकाव्यों में रामचरित उपाध्याय की ‘रामचरित चिंतामणि’, रामनाथ ज्योतिषी का ‘श्रीराम चंद्रोदय’, मैथिलीशरण गुप्त का ‘साकेत’, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध का ‘वैदेही वनवास’, बालकृष्ण शर्मा नवीन का ‘उर्मिला’ आदि महाकाव्य है जिनमें आधुनिक युग के अनुसार नवीन विचारों का समावेश किया गया है। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित ‘राम की शक्ति पूजा’, माया देवी द्वारा रचित ‘शबरी’, नरेश मेहता कृत ‘संशय की एक रात’ राम कथा पर आधारित काव्य रचनाएं हैं।

मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी रचना ‘साकेत’ में राम चरित की व्याख्या की है

राम, तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है।

कोई कवि बन जाय, सहज संभाव्य है।।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला अपनी रचना ‘राम की शक्ति पूजा’ में लिखते है –

आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर,

तुम वरो विजय संयत प्राणों से प्राणों पर;

रावण अशुद्ध होकर भी यदि कर सका त्रस्त

तो निश्चय तुम हो सिद्ध करोगे उसे ध्वस्त,

शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन,

छोड़ दो समर जब तक न सिद्धि हो, रघुनंदन!

‘रामायण’ : सार्वकालिक लोकप्रिय धारावाहिक

हिंदी सिनेमा में अब तक रामायण पर ५० से अधिक फिल्मांकन है। वहीं, २० से अधिक टीवी धारावाहिक का भी निर्माण किया गया, लेकिन वर्ष १९८७ में रामानंद सागर द्वारा निर्देशित टीवी धारावाहिक ‘रामायण’ अब तक का सबसे लोकप्रिय रामायण धारावाहिक है, जिसके भजन लोगों को आज भी मंत्रमुग्ध कर देते हैं। ७८ धारावाहिकों में निर्मित २५ जनवरी १९८७ से ३१ जुलाई १९८८ तक टीवी पर पहली बार प्रसारित हुआ। उस समय इसकी दर्शक संख्या लगभग दस करोड़ थी। टेलीविजन पर सर्वाधिक देखा जाने वाला धारावाहिक का रिकार्ड इसी के नाम है।

प्रसिद्ध राम भजन

वर्ष १९५२ में रिलीज हुई बैजू बावरा में मोहम्मद रफी ने ’ओ दुनिया के रखवाले’ राम भजन गाया था। वहीं, वर्ष १९६८ में आई फिल्म ‘नील कमल’ में आशा भोंसले ने ‘अरे रोम रोम में बसने वाले राम’ भजन गाया था। वर्ष १९७६ में लता मंगेशकर ने फिल्म ‘बजरंगबली’ में ‘हे राम तेरे राज में कैसे जियें सीताएं’ गाया था। किशोर कुमार ने भी वर्ष १९७७ में फिल्म ‘राम भरोसे’ में ‘राम से बड़ा राम का नाम, बनाये सबके बड़े काम’ गाया था। मोहम्मद रफी ने साल १९८१ में भी ‘महाबली हनुमान’ फिल्म में ‘मन की आंखों से मैं देखूं रूप सदा सियाराम का’ भजन गाया था।

‘मंगल भवन अमंगल हारी’, रवीन्द्र जैन द्वारा रिकॉर्डिड एल्बम जय जय श्री राम का एक क्लासिक भजन है जो गायक सतीश देहरा, दीप माला और रचना के साथ गया गया है। ‘हम कथा सुनाते हैं…’ टेलीविजन श्रृंखला रामायण में प्रदर्शित इस भजन में लव-कुश को भगवान श्रीराम की स्तुति गाते हुए दिखाया गया है।

‘हे राम हे राम’ सुदर्शन फ़ाकिर द्वारा रचित व जगजीत सिंह द्वारा भावपूर्ण प्रस्तुति की गई। ‘जय राम राम रामनाम शरणम’ – महान लता मंगेशकर द्वारा भक्ति के सार को दर्शाते हुए प्रस्तुत किया गया। कैलाश खेर द्वारा ‘राम का धाम’ गान – अनु मलिक द्वारा रचित अयोध्या धाम के राम मंदिर के लिए एक गीत प्रसिद्ध हुआ।

‘राम सिया राम’ – फिल्म आदिपुरुष का एक दिल छू लेने वाला भजन। ‘जय रघुनन्दन जय सियाराम’ – १९६१ की फ़िल्म घराना का एक क्लासिक, जिसे मोहम्मद रफ़ी और आशा भोसले ने गाया था। ‘श्री राम चन्द्र कृपालु भजमन’ – केदार पंडित द्वारा रचित, अनुराधा पौडवाल द्वारा गाया गया, भगवान श्री राम की महिमा। ‘पल पल है भारी’ – जावेद अख्तर द्वारा लिखित, एआर रहमान द्वारा संगीतबद्ध और मधुश्री, विजय प्रकाश द्वारा गाया गया। ‘राम आयेंगे’ – गीतकार मनोज मुंतशिर की मार्मिक कहानी, पायल देव द्वारा रचित और विशाल मिश्रा द्वारा गाया गया।

एक श्लोकी रामायण

आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्।

वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।।

बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्।

पश्चाद् रावण कुम्भकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम्।।

अर्थात श्रीराम वनवास गए, वहां उन्होने स्वर्ण मृग का वध किया। रावण ने सीताजी का हरण कर लिया, जटायु रावण के हाथों मारा गया। श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता हुई। श्रीराम ने बालि का वध किया। समुद्र पार किया। लंका का दहन किया। इसके बाद रावण और कुंभकर्ण का वध किया। ये है रामायण।

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।

सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥

– श्रीरामरक्षास्तोत्रम् (३८)

अर्थात जो कोई भी राम राम कहता है, राम की आत्मा में रमता है। हजारों नामों के बराबर है, राम का यह नाम।

(लेखक विद्या भारती जोधपुर (राजस्थान) प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)

और पढ़ें : लोकनायक श्रीराम – ३

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