✍ राजेन्द्र सिंह बघेल
वे महान वीर आत्माएँ जो देश विभाजन के समय भयानक एवं विषम परिस्थितियों में फंसे अगणित निर्दोष लोगों की रक्षा करते हुए अपने प्राण गवां बैठे उनको कौन भूल सकता है। इतिहास में ऐसे नरसंहार और विनाशकारी घटनाएँ न मिली है न मिलेंगी जिसमें अनगिनत लोग अपनी जन्मभूमि से विरत हुए और उनकर सब कुछ लुट पिट गया। हाँ यही थी विभाजन की यह विभीषिका जिसका दर्द वर्षों पहले उन तमाम पीड़ित लोगों की जुबानी हमने सुना था।
आखिर विभाजन हुआ क्यों?
क्यों हुआ था देश का बंटवारा? कौन सी परिस्थिथियों थी ? कौन थे वो जिम्मेदार लोग जो इस त्रासदी से देश को बचाने व असंख्य लोगों की जान माल की रक्षा कर सकते थे? क्या इंडियन नेशनल कांग्रेस ने भारतीय जनता का देशभक्तिपूर्ण आवाहन किया होता तो देश की अखंडता बनाए रखने हेतु सर्वोच्च त्याग करने लाखों की संख्या में लोग आगे न बढ़ते इसका उत्तर जानने का प्रयत्न किया तो श्रद्धेय एच० वी० शेषादी द्वारा लिखित हिन्दी रूपांतरित पुस्तक ‘और देश बंट गया’ पुस्तक के प्राक्कथन में श्री दत्तोपंत ठंगडी द्वारा प्रस्तुत प्रमाणित जानकारी इस तरह प्राप्त हुई।
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1960 में लियोनार्ड मोसले को यह बताया था, सच्चाई यह है कि हम थक चुके थे और आयु भी अधिक हो गई थी। हममें से कुछ ही लोग जेल जाने की बात कर सकते थे, और हम अखंड भारत पर डटे रहते, जैसा कि हम चाहते थे तो पक्का था कि हमें भी जेल जाना पड़ता। हमने देखा कि पंजाब में आग भड़क रही है और यह भी जाना कि प्रतिदिन मार काट हो रही है। बटवारे की योजना ने एक रास्ता निकाला और हमने उसे स्वीकार किया। भारत के एक राजनेता स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी और भारतीय संविधान सभा के सदस्य श्री एन. वी. गाइगिल (काका साहब गाडगिल) ने स्वीकार किया देश की मुख्य राजनीतिक शक्ति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस थी और उसके नेता बूढ़े हो चले थे, थक चुके थे। वे रस्सी को इतना अधिक नहीं खीचना चाहते थे कि वह टूट जाये और किए हुए पर पानी फिर जाये।
तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व ने देश को निराश किया। विभाजन के पूर्व हुई अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में पूज्य महात्मा जी ने कहा- मैं विभाजन का विरोधी हूँ किन्तु आपको परामर्श देता हूँ कि इसे स्वीकार कर ले क्योंकि आपके नेता इसे स्वीकार कर चुके हैं और हम इस परिस्थिति में नहीं है कि नेतृत्व को तुरंत बदल सके। यदि मेरे पास समय होता तो क्या मैं इसका विरोध ना करता? किन्तु मैं कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व को चुनौती नहीं दे सकता और उसके प्रति लोगों की आस्था नष्ट नहीं कर सकता। ऐसा मैं तभी करूंगा जब मैं उनसे यह कह सकूँ, लीजिये यह रहा वैकल्पिक नेतृत्व। ऐसे विकल्प के निर्माण का मेरे पास समय नहीं रह गया अतः इस कड़वी दवा को मुझे पीना ही पड़ेगा। आज मुझमें वैसी शक्ति होती तो मैं अकेला ही विद्रोह की घोषणा कर देता।
वह विनाश जो सब कुछ स्वाहा कर गया
परिणामस्वरुप विभाजन के निर्णय के बाद पंजाब और बंगाल में जो भयंकर घटनाएँ घटी उसका वर्णन करना बहुत कठिन है। यद्यपि लॉर्ड माउंटबैटन के निर्देशानुसार सीमा पर पचास हजार जवान नियुक्त किए गए थे जिससे बंटवारे के क्रम में रक्त की एक बूंद भी धरती पर न गिरने पाये। उन्होंने कहा की यदि तनिक सा भी कहीं कोई आंदोलन होगा तो मैं ऐसा कदम उठाऊंगा कि उसके जन्मते ही उसका गला घोट दूँ। किसी ने भी यदि दंगा करने का कोई प्रयास किया तो उसे दबाने के लिए टैंक और विमान का उपयोग करने से भी नहीं चूकूंगा पर वाइसरॉय की यह गर्वाक्ति निरा डोंग बनकर रह गई। पश्चिमी पंजाब में मुसलमानों ने हिन्दुओं का भयंकर नरसंहार किया और पूर्वी पंजाब में हिंदुओं ने उसका भारी प्रतिशोध लिया। मानवीय त्रासदी के इस इतिहास में कुछ इक्के-दुक्के उदाहरण भी कठिनाई से मिलेंगे।
इस वीभत्स कांड में ब्रिटिश सेनानायकों का खतरनाक रोल इस विनाशकारी घटना के प्रति हमारे नेता अत्यंत उदासीन थे। उन्हें तभी होश आया जब सब कुछ उनके नियंत्रण से बाहर हो चुका था। यह संकट भयानक व बहुत गंभीर था। नेहरू जी विमान द्वारा जब पंजाब पहुंचे और उपद्रवग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया तो सारा दृश्य देखकर वह अपने को किंकर्तव्यविमूढ सा महसूस कर रहे थे। क्रूरता क्या होती है अपनी आँखों से उन्होंने देखा। इस झूलती आग में जनता की अदला बदली के समय जिन्ना के प्रस्ताव को ठुकराकर हमारे नेता पाकिस्तान क्षेत्र के हिंदुओं को यह उपदेश दे रहे थे कि जहां है वहीं रहे। गांधीजी ने को सलाह दी की वे ध्येय व अहिंसा से स्थिति का मुकाबला करें यदि जरूरत समझे तो अपने प्राण देकर इन मूल्यों की रक्षा करें। पर होना क्या था सामान्य हिन्दू जनमानस इस हत्याकांड जिसमें वह बुरी तरह फंस चुके थे अपने नेताओं के उच्च आदर्शों का पालन नहीं कर सके। घर द्वार छोड़कर भागने लगे बचे-खुचे मानव कंकाली का समूह सुरक्षित स्थानों की ओर बढ़ने लगा। अपना सब कुछ गंवाकर अपने परिवारजनों को खो चुके थे। इन सारी घटनाओं के समय तत्कालीन भारतीय सेनापति क्लाउड अर्चनलेक की भूमिका तथा सीमा सुरक्षा दल की भी भूमिका संदिग्ध व आपत्तिजनक मानी गई।
समय बीत गया अब हम सचेत रहे
देश की बंटवारे की तह में हम जाएं तो स्पष्ट यह ध्यान आता है कि अंग्रेजों की फूट डालो व राज करो की नीति व उनकी जिन्ना को बढ़ावा देने तथा कांग्रेस की ढुलमुल नीति से इस बात को बल मिला। मुस्लिम लीग की तुष्टीकरण की नीति को ठुकराना एवं पाकिस्तान की मांग को आरंभ से ही एक सिरे से खारिज करके देश के विभाजन को रोकना कठिन तो था पर असंभव कतई ना था। हमें यह स्मरण रखना होगा की पूज्य महात्मा जी ने जिस विवशता का व असहाय होने का परिचय उस समय दिया था ऐसी विवशता का अनुभव करने की बात पुनः भारतवर्ष की जनशक्ति पर कभी न आए। इसे सतर्कता से देखना होगा, साथ ही नेतृत्व का चयन करते समय नीर-क्षीर का उपयुक्त विचार भी हमें करते रहना होगा।
(लेखक शिक्षाविद है और विद्या भारती के अखिल भारतीय प्रशिक्षण संयोजक रहे हैं।)
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