पाती बिटिया के नाम-30 (बाहुबली मस्तिष्क)

– डॉ विकास दवे

प्रिय बिटिया,

पढ़ाई के दौरान कई बार आप यह शिकायत करते पाए जाते हैं – “इतना सारा पाठ्यक्रम है हम क्या-क्या याद करें?” ऐसी सोच हर व्यक्ति की होती है। मैं भी जब आपकी आयु का था तो यही सब सोचा करता था कि एक व्यक्ति भला-कितना दिमाग लगाए? पाठ्यक्रम के अलावा भी तो आचार्य जी की और पिताजी, माताजी की अपेक्षा रहती है कि हम बहुत कुछ दूसरी बातों का ज्ञान रखें। ये बातें व्यावहारिक भी होती हैं तो आचरणगत भी, पाठ्यक्रम की भी होती है तो सामान्य ज्ञान की भी। इस विषय में जब थोड़ा गइराई से अध्ययन करने का मौका मिला तो कई बातें आश्चर्यजनक पता लगी।

सबसे अधिक आश्चर्यजनक तथ्य तो वैज्ञानिक परिक्षण से यही उभर कर आया है कि साधारण मनुष्य के मस्तिष्क में अपार क्षमताएँ होती हैं जिनका उपयोग व्यक्ति कर नहीं पाता वैज्ञानिकों ने विश्व के कई माने हुए वैज्ञानिकों, विचारकों, विद्वानों के मस्तिष्क पर शोध कर पाया कि अब तक विश्व में मस्तिष्क का सर्वाधिक उपयोग मात्र 7 प्रतिशत हुआ है। अर्थात् क्षमता थी 100 और उपयोग हुआ सात। अब जरा आप अंदाजा लगाइए बड़े-बड़े विद्वानों की यह स्थिति रही तो हम सामान्य लोग अपने मस्तिष्क का कितने प्रतिशत उयोग कर पाते होंगे। यह तो हिसाब आप लगाते रहिए। मस्तिष्क के बाद में आता हूँ शरीर की चर्चा पर। जरा एक निगाह इस जानकारी पर डालिए – वैज्ञानिक सर्वेंक्षणों के अनुसार शरीर में 64 प्रतिशत जल, 16 प्रतिशत प्रोटीन, 14 प्रतिशत चर्बी, 5 प्रतिशत लवण और 1 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट होते हैं। शरीर की जाँच का यह तो था चिकित्सा आधारित वर्गीकरण, अब जरा एक निगाह डालें रसायन शास्त्री इस शरीर का वर्गीकरण कैसे करते हैं –

मानव शरीर में 65 प्रतिशत ऑक्सीजन, 98 प्रतिशत कार्बन, 10 प्रतिशत हाइड्रोजन, 3 प्रतिशत केल्शियम, 1 प्रतिशत फास्फोरस, 0.35 प्रतिशत पोटेशियम, 0.25 प्रतिशत सल्फर, 0.15 प्रतिशत सोडियम, 0.15 प्रतिशत मैग्रिशियम, 0.04 प्रतिशत लोहा और शेष 0.46 प्रतिशत भाग में आयोडिन, फ्लोरीन तथा सिलिकन हैं।

आपको लग रहा होगा ये सब प्रतिशत तो दिमाग में समा नहीं पा रहे पापा जी भी पता नहीं कहाँ की जानकारी दे बैठे। आपकी रुचि के अनुसार एक विशेष जानकारी देता हूँ जो शायद आप आसानी से याद रख सकेंगे। यह जानकारी शरीर के तत्वों के अन्य सामान्य उपयोग की दृष्टि से किए गए परीक्षणों पर आधारित है। हमारे शरीर में जल की मात्रा इतनी है कि उससे एक दो माह के बच्चे को नहलाया जा सके, शक्कर इतनी है कि उससे सौ कप चाय मीठी हो सके, लोहे की मात्रा इतनी है कि एक इंच लम्बी एक कील बन सके, चूना इतना है कि कोई छोटा सा मुर्गी का दड़बा ही पोता जा सके। पोटेशियम की मात्रा इतनी है कि बच्चों की बन्दुक के लिए एक पटाखा बने, तांबा इतना कि केवल एक पैसा ढाला जा सके, चर्बी या वसा इतनी है कि एक दर्जन साबुन बनाए जा सकें, फास्फोरस से बीस माचिस बॉक्स बनें, गंधक जो कि एक प्रकार का विष है भी इतना होता है कि एक जूँ मारी जा सके। और मैग्रिशियम मात्र इतना होता है कि उससे छ: छोटी-छोटी तस्वीरों मे रंग भरा जा सके।

तो देखा ना आपने हमारे शरीर का यह वर्गीकरण। जानते हैं यह वर्गीकरण आज से कई वर्षों पूर्व करके जब वैज्ञानिकों ने एक अर्थशास्त्री से शरीर का मूल्यांकन करने को कहा तो उसने क्या कीमत लगाई? मात्र 7 रु. 35 पैसे। अब थोड़ी देर के लिए हम यह भी मान लें कि मँहगाई बहुत बढ़ गई है तो क्या इस शरीर की कीमत कुछ 200 या 400 रु. से ज्यादा है?

बेटे! शरीर की कीमत अर्थशास्त्री चाहे कुछ भी लगाएँ लेकिन यह तय मानो कि शरीर की कीमत उसके द्वारा किए गए कार्यों से तय होती है। हम अपने इस तुच्छ शरीर का उपयोग समाज सेवा और राष्ट्रीय कार्यों में कर सकें तो इस शरीर की कीमत को कोई नहीं आँक सकेगा। आओ हम सब भी अपने मस्तिष्क और शरीर का उपयोग राष्ट्रहित में करें। यहीं सार्थकता है मस्तिष्क की भी और शरीर की भी।

  • तुम्हारे पापा

(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)

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