– डॉ विकास दवे
प्रिय बिटिया,
‘भारत’ प्रारंभ से ही बड़ा शांतिप्रिय और गंभीर स्वभाव वाला बालक था। ‘ना काहु से दोस्ती, ना काहु से बैर’ को उसने सिद्धान्त रूप से अपना रखा था। लेकिन इस बार तो उसे भी क्रोध आए बिना नहीं रहा। मोहल्ले के अन्य बालक जो उसके साथी थे भिन्न-भिन्न स्वभाव वाले थे। ‘अमर’ अपनी शक्ति और आर्थिक वैभव में फूला-फूला घुमता था। इसी कारण उसकी दादागिरी पूरे मोहल्ले में एक तरफा चलती थी। केवल ‘चीनू’ उससे नहीं डरता था क्योंकि शक्ति में वह भी अमर से अपने आपको कुछ कम नहीं समझता था। ‘चीनू’ और ‘पंकज’ थे तो भारत के पड़ोसी किन्तु भारत को कभी उनसे मित्रवत व्यवहार नहीं मिला था, उलटे वे जब-तब भारत की छोटी सी बगिया को समय-समय पर नुकसान पहुँचाते रहते तो कभी बैठे-बिठाए छुप-छुपकर उसके आंगन में गंदगी फैंक दिया करते। यही कारण था कि मोहल्ले के सब बच्चों ने जब दल बनाया तो भारत को उस दल से कभी सद्भाव नहीं मिल पाया। सारे बच्चे यह भली प्रकार जानते थे कि ज्ञान और संस्कार के मामले में वे कोई भी भारत की बराबरी नहीं कर सकते इसी कारण सब लोग उसकी उपस्थिति दल में चाहते थे।
लेकिन इस बार तो गजब ही हो गया पूरे मोहल्ले के बच्चों में बिना बात का बावेला मच गया। हुआ यह कि भारत का पड़ौसी चीनू तो अपने पिताजी द्वारा दिए गए इलेक्ट्रानिक खिलौनों से खेलता रहता। एक-दो नहीं कई खिलौने थे उसके पास। लेकिन जब भारत के पिता ने उसे केवल तीन खिलौने दिए तो अमर, चीनू, और दो-चार अन्य बच्चों ने मोहल्ले में शोर मचा दिया। अमर जिसके पास सैकड़ों वैसे ही खिलौने थे भारत पर अपनी दादागिरी थोपने लगा कि – “यदि हम सबको एक दल में रहना हो तो भारत को इन खिलौनों को रखने का कोई अधिकार नहीं।”
भारत के पिता ने जब सुना तो उन्होंने भारत का स्वाभिमान जागृत करते हुए भारत को दो और खिलौनें लाकर दे दिए और स्पष्ट कर दिया – “तुम किसी के मोहताज नहीं हो। तुम्हारी अपनी योग्यता में इतनी शक्ति है कि आने वाला कल तुम्हारा होगा।” “तुम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति घर में रहकर ही करो। स्वावलंबी होना कोई बुरी बात नहीं है।” पिताजी ने समझाया। भारत ने अब अमर, चीनू और उसके पिछलँग्गुओं को स्पष्ट कर दिया कि वह अब उनसे दब कर नहीं रहेगा। अपना स्वाभिमान बेचकर वह किसी दल की सदस्यता और सहयोग की अपेक्षा नहीं रखता। सुना है भारत की देखा-देखी उसके पड़ौसी पंकज ने भी दो-तीन छोटे-छोटे खिलौंने प्राप्त कर लिए हैं लेकिन जलन के मारे मोहल्लेभर के बच्चों को वह बताता घूम रहा है कि उसके पास भी अब पाँच खिलौंने हैं। भारत के बराबर आने की चाह उससे यह सब करवा रही है। अमर ने तो भारत पर सामूहिक रूप से खेल में सम्मिलित होने पर ही प्रतिबंध लगा दिया है। लेकिन भारत अब खुश है। उसे इस बात का संतोष है कि वह अब किसी के दबाव में नहीं है। अपना स्वाभिमान गिरवी रखकर सहयोग प्राप्त करने की अपेक्षा से वह अब इन दादाओं की गुलामी नहीं करेगा। यही उसका दृढ़ निश्चय है।
प्रिय बेटे,
आपको लगा होगा कि पिताजी कभी काल्पनिक कहानियाँ तो सुनाते नहीं इस बार क्या हो गया? लेकिन बेटे यह कहानी आपके मनोरंजन के लिए नहीं है। इसे एक बार फिर पढऩा एक नई दृष्टि से। इस कथा का मुख्य पात्र भारत तो अपना राष्ट्र ही है, मोहल्ला है सम्पूर्ण विश्व, अमर हैं अमेरिका, चीनू महाशय चीन है तो पंकज है पाकिस्तान। भारत के पिता की भूमिका उसका प्रधानमंत्री निर्वाह कर रहे है। खिलौने परमाणु परीक्षण के रूप में थे। विषय अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का था। सरल रूप से इसे तुम तक पहुँचाने का यही एक तरीका ठीक लगा। बड़े समाचार और दूरदर्शन पर आ रही ढेर सारी चर्चाओं से शायद तुम ठीक प्रकार से अंदाजा न लगा पाई होंगी। यह भी लगा होगा आखिरकार बात क्या है? क्यों इतना शोर मचा हुआ है? ऐसे सभी प्रश्नों के उत्तर में यह कहानी (जिसका कोई अंत नहीं है) आपको बहुत कुछ कह जाएगी। समय है हमारे स्वावलम्बी और स्वदेशी अपनाने का। भारत किसी के दबाव में न आए इसके लिए हमें ‘स्वदेश’ और ‘स्वदेशी’ के प्रति समर्पित होना चाहिए। यही माँग है समय की।
-तुम्हारे पापा
(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)
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