– रवि कुमार
इस सदी में विद्यालयीन शिक्षा में कम्प्यूटर शिक्षा विषय अस्तित्व में आया। जब विज्ञान में डिजिटल तकनीक का उपयोग बढ़ा, तभी से सभी को महसूस हुआ कि ये डिजिटल तकनीक अर्थात् कम्प्यूटर सभी को सीखना चाहिए। आज सामान्य जनजीवन में डिजिटल तकनीक पर आश्रित व्यवस्थाएं अधिक नजर आती है जैसे इसके बिना जीवन अधूरा-सा पड़ जाएगा। जब से यह डिजिटल तकनीक कम्प्यूटर से चलकर मोबाइल में आई है और Smart Phone का उपयोग अधिक हुआ है तबसे आश्रित होना अधिक दिखता है। यह तकनीक है और नई पीढ़ी को सीखना-सिखाना आवश्यक है तो कैसे सिखाया जाए इसके बारे में चिन्तन आवश्यक हो जाता है।
विषय के रूप में नहीं तकनीक के रूप में सिखाएं : आज भारत की शिक्षा में आचार्य पुस्तक, पाठ्यक्रम, परीक्षा, अंक व कालांश, इन पांच बातों में फंसा है। इसलिए कम्प्यूटर शिक्षा को भी वह विषय समझता है। अब जब कम्प्यूटर शिक्षा को विषय समझेगा तो पुस्तक, पाठ्यक्रम, परीक्षा, अंक व कालांश भी चलेगा। कम्प्यूटर शिक्षा विषय यानि विद्यार्थी Desktop के सामने बैठकर कितना समय अभ्यास करे तथा अभ्यास पश्चात् और किस-किस प्रकार का कार्य विद्यार्थी कर सकता है यह महत्त्वपूर्ण है। जब आचार्य इसे विषय न समझ कर तकनीक के रूप में पढ़ायेगा तो वह इस बात पर केन्द्रित होगा कि मैनें कितना सिखाया और विद्यार्थी को कितना करना आ गया।
प्रायोगिक कार्य पर ध्यान हो : विद्यालय प्रवास करते समय कम्प्यूटर आचार्य से प्रयोगशाला में चर्चा हुई। एक कक्षा को सप्ताह में कितने कालांश उपलब्ध है, उसमें से थियोरी व प्रायोगिक में विभाजन क्या है? बालक व कम्प्यूटर संख्या का अनुपात क्या है? ये सब प्रश्न पूछते हुए अन्त में यही विश्लेषण निकालना था कि सप्ताह में कुल कितने मिनट Desktop के सामने बैठकर विद्यार्थी स्वयं कार्य करता है और मास व वर्ष में औसतन कितना? अधिकांश स्थानों पर अनुभव आया कि कम समय मिलता है। हम तकनीक सिखाने का प्रयास कर रहे है किन्तु सिखा नहीं पाते क्योंकि कुल मिलाकर कम समय मिलता है। विद्यार्थी प्रायोगिक कार्य अर्थात् Desktop के सामने बैठकर अधिक समय कार्य करें इस पर आचार्य का ध्यान हो।
कम्प्यूटर स्वयं सिखाता है : 2005 से भारत में जन सामान्य को कम्प्यूटर दिखने लगा। कम्प्यूटर सीखने के Coaching Centre सब स्थानों पर खुले। विद्यालयीन विद्यार्थियों में कम्प्यूटर सीखने का आकर्षण बढ़ा और ग्रीष्मावकाश अथवा सप्ताहांत के समय Coaching Centre जाना, कम्प्यूटर क्लास लेना भी बढ़ा। परन्तु ध्यान में आया कि Coaching Centre जाने वाले एवं कम्प्यूटर क्लास सीखने वाले विद्यार्थी को कम्प्यूटर चलाना ठीक से नहीं आता है। उसकी बजाय जिनके पास स्वयं का कम्प्यूटर है उन्हें जल्दी और अधिक आता है। स्वयं करते-करते तकनीक अपने आप आती रहती है। कम्पयूटर Window में सब सामने रहता है, Icon दिखते है, क्या दबाने से यानि कहां क्लिक करने से क्या होगा यह धीरे-धीरे स्वतः अवगत होता है। किसी एक स्थान पर दो तीन बार क्लिक करते-करते वह भूलता भी नहीं है। कोई भी सामान्य व्यक्ति जिसे कम्प्यूटर बिल्कुल नहीं आता, प्रतिदिन दस मिनट Desktop के सामने बैठकर Mouse व keyboard से कुछ करेगा तो दो-तीन महीनों में ही बिना किसी के सिखाएं काफी कुछ सीख जाएगा।
‘Hole in the wall’ Project : डॉ. सुगाता मिश्रा, वरिष्ठ वैज्ञानिक, NIIT ने दिल्ली में 1982 में यह Project प्रारम्भ किया। 1999 में NIIT Campus से बाहर यह प्रयोग करने का निश्चय किया। एक टीम बनाई और कालकाजी (दिल्ली) की एक सेवा बस्ती में एक दीवार में कम्प्यूटर Fix किया जो वहां सभी के लिए प्रयोगार्थ उपलब्ध हो। कुछ समय पश्चात् ध्यान में आया कि कालकाजी की सेवा बस्ती के बालकों को कम्प्यूटर सहजता से चलाना आ गया। विद्यालय न जाने वाले बालक भी आसानी से सीख गए। कालका जी को सफलता के पश्चात् Freely accessible Computer शिवपुरी कस्बा (मध्यप्रदेश) व मद्नतुसी ग्राम (उत्तरप्रदेश) में लगाया गया। शिवपुरी व मद्नतुसी इन दानों स्थानों पर भी वैसा ही अनुभव आया जैसा कालकाजी (दिल्ली) में आया था।
कम्प्यूटर में अन्य विषय पढाएं : कम्प्यूटर सिखाते हुए अन्य विषयों को सिखा सकते है। जैसे विद्यार्थियों को पीपीटी बनाने का अभ्यास करवाना है तो उन्हें विज्ञान के किसी पाठ या टॉपिक पर पीपीटी बनाने को कहा जाएं। पीपीटी का अभ्यास भी होगा और विज्ञान का अध्ययन भी। Excel का अभ्यास करवाना है तो गणित के किसी टॉपिक को उसके साथ जोड़ा जा सकता है। इसके लिए कम्प्यूटर व विषय आचार्य का तालमेल व विज़न हो।
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