✍ दिलीप बेतकेकर
देवाः दण्डमादाय रक्षन्ति पशुपालवत यन्तु रक्षित मिक्षन्ति, बुध्यासभिव जन्तिनाम।।
(ईश्वर किसी पशुपालक के समान हाथ में डंडा लेकर किसी की रक्षा नहीं करता अपितु वह जिसकी रक्षा करने को इच्छुक रहता है उसे उच्च कोटी की बुद्धि प्रदान करता है) इसीलिए ईश्वर ने मानव को एक अद्भुत, मूल्यवान उपहार दिया है- वह है दिमाग! दिमाग की अपार शक्ति, क्षमता, कार्यविधि देखकर अत्यंत आश्चर्य होता है। इसीलिए दिमाग को ‘कर्ता करविता’ ऐसा एक लेखक ने संबोधित किया है। परन्तु अल्प लोगों को ही अपने दिमाग की ताकत का अंदाजा रहता है। इतनी सम्पदा होते हुए भी हम स्वयं को दीन हीन समझते हैं। अपने पास की दैवीय शक्ति – ‘दिमाग’ की सही पहचान होने पर हम कभी स्वयं को हीन, दीन नहीं समझेंगे। बुद्धि हीन नहीं मानेंगे। अभ्यास को बहुत कठिन नहीं समझेंगे।
१. दुनिया के सबसे अधिक शक्तिशाली संगणक की अपेक्षा अपना ‘दिमाग’ अधिक सामर्थ्यवान है।
२. हमारे दिमाग में लगभग सौ अब्ज मज्जा पेशियां (Neurons) हैं। इनकी गणना करने के लिए ही कई वर्ष लग जाएंगे।
३. हम जब जागृत अवस्था में होते हैं तब दिमाग के विद्युत शक्ति के बल पर १० से २३ वाट के छोटे बल्ब की ऊर्जा उपलब्ध रहती है।
४. एक सेकंड में 100000 सिंग्नल्स भेजे जाते हैं।
५. प्रत्येक के उंगलियों के निशान भिन्न भिन्न होते हैं, इसी प्रकार प्रत्येक के दिमाग भी भिन्न भिन्न होते हैं। एक दूसरे के दिमाग समान नहीं होते।
६. शरीर के आकार की तुलना में दिमाग अत्यंत छोटा (2%) और हल्का है, परन्तु अत्यधिक प्राण वायु लेने वाला, और रक्त 20% लेने वाला है।
७. दिमाग की धारण क्षमता अत्यधिक है। हजारों पुस्तकों के लाखों पृष्ठ वह सहज ही भंडार कर रख सकता है। 10-100 टेराबाइट इतनी मेमोरी होती है।
८. प्राणवायु के बगैर अधिकतम पांच से सात मिनट तक ‘दिमाग’ कार्य कर सकता है।
९. आठ से दस सेकंड से अधिक समय तक दिमाग को रक्तप्रवाह न मिले तो मानव शरीर बेहोश हो सकता है।
१०. दिनभर में लगभग साठ से सत्तर हजार विचार दिमाग में आते हैं।
११. अल्फा, बीटा, थीटा, और डेल्टा ऐसी चार प्रकार की दिमाग की लहरें होती हैं।
१२. बायां दिमाग दायां अंग और दाया दिमाग बायां अंग (शरीर का) को नियंत्रित करता है।
१३. देखकर, सुनकर, शारीरिक हलचल से मानव सीखता रहता है, और यह सब संभव होता है दिमाग के नियंत्रण द्वारा।
१४. विख्यात मानस शास्त्रज्ञ प्रो. हावर्ड गार्डनर के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के पास आठ प्रकार की बुद्धिमत्ता होती है। भाषिक / वाचिक बुद्धिमत्ता, तार्किक/गणितीय बुद्धिमत्ता, सांगीतिक बुद्धिमत्ता, व्यक्ति अन्तर्गत बुद्धिमत्ता, आंतर व्यक्ति बुद्धिमत्ता और सृष्टि पदार्थ युक्त बुद्धिमत्ता, अवकाशीय दृष्टिगोचर बुद्धिमत्ता, शारीरिक/स्नायु विषयक बुद्धिमत्ता और विशेष यह कि प्रत्येक के पास ये सभी प्रकार की बुद्धिमत्ता, कम ज्यादा परिणाम में होती ही है। अब बुद्धि का कितना अपार धन हमारे पास है इसकी कल्पना हो गई होगी। ऐसा होते हुए हम स्वयं को दीन-दुर्बल क्यों समझें? कविवर निराला की पंक्तियां –
पास ही है हीरे की खदान, खोजना कहां और नादान…..
जिनके पास नहीं है उनकी बात तो समझ सकते हैं, परन्तु जिनके पास यह सब है, फिर भी उसका उपयोग न होना शर्म की बात है।
‘तुझे आहे तुजपाशी’ अर्थात तुम्हारा है तुम्हारे पास ही इसको भूलें नहीं।
‘हाथ न पसारे कभी’ कहते हुए ईश्वर द्वारा प्रदत्त तोहफों का उपयोग करें, और इसका अधिकतम सदुपयोग करने के लिए’ दिमाग’ की उचित देखभाल, सावधानी पूर्वक करना आवश्यक होगा।
दिमाग के लिए खुराक क्या हो?
१. प्राणवायु और रक्त – ये प्रमुख खुराक है। शरीर के कुल रक्त और प्राणवायु के २०% अकेले दिमाग के लिए आवश्यक है। मूलतः ही प्राणवायु और रक्त की कमी हो तो दिमाग को भी कम ही उपलब्ध होगा। इसलिए प्राणवायु और रक्त अधिक प्राप्त करने हेतु क्या करना पड़ेगा इसका विचार और तदनुसार कार्यान्वयन आवश्यक होगा।
२. व्यायाम – दिमाग तीक्ष्ण, तलख रखने हेतु नियमित कसरत / व्यायाम आवश्यक है। अपनी आयु, शारीरिक क्षमता के अनुसार व्यायाम निश्चित करें। प्रत्येक की आवश्यकता भिन्न भिन्न होती है।
३. ध्यान – ध्यान का प्रभाव दिमाग पर कितना और कैसा होता है इस पर अनेक शोधकार्य किए गए हैं। ध्यान करने से फ्रंटल लोब अधिक सक्रिय हो जाता है। यह परखने के लिए भी अनेक सेंसर होते हैं। अगला पायदान सेंसर ही है। दिनभर में से कुछ मिनट का समय निकालकर आसनों के लिए दें (पद्मासन, अर्द्ध पद्मासन आदि) आंखें बंदकर, श्वास पर नियंत्रण करके, शांति से बैठना भी लाभदायक है। ये आसान भी है।
४. संगीत – भिन्न भिन्न समस्याओं के अनुसार विभिन्न संगीतों का चयन किया जाता है। संगीत द्वारा मन को शांति, एकाग्रता प्राप्त होती है। दिमाग पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। संगीत दिमाग की आवश्यकता है।
५. पौष्टिक अन्न पदार्थ – ओमेगा ३ फैटी एसिड; विटामिन बी. सी. ई., आयोडीन, लौह, अमीनो एसिड, एंटीऑक्सिडेंट, पोषक घटक दिमाग के क्रियाशीलता हेतु पर्याप्त मात्रा में आवश्यक हैं। तदनुसार अन्न पदार्थों का चयन करें। जितना हम दिमाग का अधिक उपयोग करेंगे उतना अधिक तीक्ष्ण दिमाग बनेगा। स्नायु का यदि उपयोग नहीं करेंगे तो वे कमजोर होंगे, ढीले पड़ेंगे। यही बात दिमाग के लिए भी लागू होती है।
Use it or lose it क्या करना है यह तय करें।
(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)
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