✍ दिलीप बेतकेकर
अब मुझे और कुछ न कहो, थक गया हूँ मैं! दिनभर काम हो गया, अब थकान आ गई है।
ये और इस संदर्भ में अनेक वाक्य हम अपने घर में भी सुनते रहते हैं। हमारे मुंह से भी इस प्रकार के वाक्य निकलते हैं, अनेक बार! इसमें कोई आश्चर्य नहीं, कोई गलती नहीं, थकान का होना एक स्वाभाविक क्रिया है। खेतों में, कारखानों में, खदानों में, कार्यालयों में काम करते हुए थकान की अनुभूति होती है। इसी तरह अभ्यास करने पर भी थकान आती है। थकान केवल शारीरिक श्रम करने से आती है ऐसा नहीं है। बौद्धिक कार्य करते हुए भी दिमाग थकता है। यहां इस थकान को मिटाने हेतु कुछ उपाय भी उपलब्ध हैं। अभ्यास छोड़कर भाग जाना यह कोई उपाय नहीं!
काम और विश्राम इन दोनों का आपस में तालमेल होना चाहिए। अलन कोहन के अनुसार – There is virtue in work and there is virtue in rest. Use both and overlook neither.
अर्थात दोनों आवश्यक हैं और किसी की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
थकान मिटाकर पुनः अध्ययन के लिए ताजे (Fresh) होकर तैयार हो जाने के लिए जो भी छोटी, सहज विधि है उनके लिए अधिक समय देना आवश्यक नहीं। अभ्यास करते हुए बीच बीच में भी उपयोग करें तो थकान कुछ क्षणों में ही दूर हो जाती है। इस हेतु कोई खर्च भी नहीं उठाना पड़ता!
(१) हाथ के तलबों (हथेलियों) को दोनों आपस में रगड़कर बंद आंखों पर हल्के से रखें। आंखों को दबाएं नहीं। कुछ पल अपने हथेलियों की ऊष्मा का, हल्के स्पर्श का अनुभव लें। इसे Palming कहते हैं। कुछ क्षण पश्चात दोनों हाथों की बीच की तीन उंगलियों से हल्के से आंखों के ऊपर मस्तक को सहलाएं। तत्पक्षात नाक के दोनों ओर एक उंगली से आंखों के निचले हिस्से से नाक की दोनों ओर सहलाए। फिर दोनों हाथों से गालों पर गोलाकार सहलायें। अंत में सम्पूर्ण चेहरे पर हाथ फेरकर आंखें धीरे धीरे खोलें। यह पूरी प्रक्रिया के लिए अधिकतम तीन मिनट का समय लगेगा। इससे तीन घंटे की थकान तीन मिनट में ही दूर हो जाएगी।
(२) लगभग एक घंटे अभ्यास करने के पश्चात बेसिन पर जाकर दोनों हाथों के अंजुली में पानी भरकर आंखों में हल्के से फेकें। तीन चार बार ऐसा करने से एकदम ताजापन अनुभव करेंगे।
(३) नींद से जागकर अथवा बहुत देर अभ्यास करने पर उठते हुए हम हाथ पैरों को खिंचाव देने हेतु उन्हें इधर उधर हिलाते हैं। यही व्यवस्थित तरीके से, सभी दिशाओं में हिलाकर, घुमाकर देखें। दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में फंसाकर आकाश की तरफ रखते हुए सांस लेते हुए, शरीर को थोड़ा तान दें। सांस छोड़ते हुए हाथ छाती के पास ले जाएं। इसी प्रकार बाएं और दाएं तरफ, तनाव देते हुए झुकें। दोनों ओर शरीर को दो तो शरीर एकदम ताज़ा हो जाएगा! तीन बार शरीर को तनाव दें।
(४) बीच-बीच में एक-एक गिलास पानी पीते रहें (फ्रिज का नहीं)।
(५) सदंती, शितलि और सितकरी प्राणायाम बीच-बीच की अवधि में करने से हल्का अनुभव करेंगे। ये तीनों प्राणायाम अत्यंत सरल हैं और प्रभावी भी! इनको कूलिंग प्राणायाम भी कहते हैं। ये प्राणायाम, विशेषकर मन की शांति हेतु अत्यंत उपयोगी है।
(६) एक घंटा अभ्यास करने के पश्चात थोड़ा बाहर निकलकर बगीचे में पेड़-पौधे, फूल, पत्ती आदि की ओर देखने से भी ताजेपन का अनुभव होता है, मन को शांति प्राप्त होती है।
(७) संगीत तो थकान मिटाने का उत्तम साधन है। संगीत में एक आश्चर्यजनक शक्ति रहती है। हर संभव तीक्ष्ण आवाज में संगीत नहीं बजाएं।
(८) ककड़ी की गोल फांके काटकर आंखों पर रखने से भी आंखों को राहत मिलती है।
(९) शवासन-केवल लेटना, शवासन नहीं कहलाता। कई लोगों को यह अत्यंत सरल लगता है। परन्तु वह इतना सरल नहीं होता है। यह किसी विशेषज्ञ से ही सीखना बेहतर है।
(१०) 8, 16, 32 सांस ऐसा एक सीधा सा, सरल तंत्र है। इसमें जमीन पर पीठ के बल लेटकर (ऊपर की ओर मुंह) आठ बार सांस लेते हैं। तत्पश्चात दाएं ओर लेटकर सोलह बार सांस लेते हैं। फिर बाएं ओर लेटकर बत्तीस बार सांस लेते हैं। इतना करने से एकदम ताजगी का अनुभव करेंगे।
(११) योगनिद्रा यह भी किसी जानकार से ही सीखें।
(१२) हास-परिहास, चुटकुले पढ़ना, अन्यों को सुनाना जिससे हास्यमय वातावरण उत्पन्न होकर मन को प्रसन्नता मिलेगी।
इन सब के अलावा हम अपनी किसी अन्य पद्धति से भी थकान मिटा सकते हैं।
Change in work is rest ऐसा भी कहते हैं। अभ्यास करने से थकान लग रही हो तो अन्य कोई छोटा सा, सादा, सरल काम करने लग जाएं, इससे थोड़ा कार्य परिवर्तन होकर आराम मिलेगा। कपड़ों को तह करना, इस्त्री करना, रसोईघर में जाकर मां के कामों में हाथ बटाना, पेड़-पौधों में पानी देना, बगीचे में टहलना, थोड़ी साफ सफाई करना, अपने समान को ठीक से जमाकर रखना आदि। कितने ही छोटे छोटे काम हैं जिससे आलस, थकान दूर कर सकते हैं।
बारहमासी फूल तो आप जानते ही होंगे। सदैव खिलते रहते हैं। इन फूलों की महक, सुगंध नहीं होती परन्तु सदैव खिलते रहते हैं। इन फूलों का आदर्श सामने रखकर सदैव प्रसन्न, ताजा हम भी हो जाएं। ये रहे सब बाहरी उपाय, परन्तु सही उपचार तो आंतरिक है-
चित्ते प्रसन्ने भुवनम प्रसन्नम!
चित्ते विषण्ण भुवनम विषण्णम।।
(मन प्रसन्न हो तो पूरी दुनिया प्रसन्न नजर आएगी, परंतु मन दुःखी होगा तो पूरी दुनिया दुखी नजर आएगी।)
(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)
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