✍ दिलीप बेतकेकर
(USELESS नहीं USE LESS)
आप युजलेस है ऐसा शिक्षक-पालक, अनेक बार कहते होंगे न? कई बार सुनने पर कुछ को तो लगने लगता होगा कि कहीं वास्तव में हम ‘यूजलेस’ तो नहीं? लेकिन ऐसा सुनते हुए स्वयं को इसी प्रकार लगने लगे तो यह अत्यंत खतरनाक साबित होगा। इसीलिए यदि मानसिक आघात हो गया तो उसमें से बाहर निकलना कठिन हो जाता है।
कोई कुछ भी कहे, ‘यूजलेस’ भी कहें, तो उस ओर ध्यान देना आवश्यक नहीं। उनके इस प्रकार कहना अर्थहीन ही होता है।
हाँ, इसके साथ ही दूसरी बात में अवश्य सत्यता प्रतीत होती है। उसे अनदेखा करना उचित नहीं होगा। आप या अन्य कोई ‘यूजलेस’ नहीं यह बात सौ प्रतिशत सही भी होगी, परन्तु ‘यूज-लेस’ हो रहे हैं यह बात नकारी नहीं जा सकती। इस पर ध्यान देना आवश्यक है।
‘यूज लेस’ का अर्थ कम उपयोग। हमारे पास होते हुए भी उसका पर्याप्त उपयोग नहीं करना! तो अब देखें कि हमारे पास होने पर भी ऐसा क्या है जिसका हम उपयोग नहीं करते! एक सूची ही बनाते हैं इसकी!
१. समय : ईश्वर द्वारा हमें जीवन प्रदत्त है। तब ‘जीवन, ‘जिंदगी’ का अर्थ कितने ‘वर्ष’! एक वर्ष अर्थात बारह महीने, महीने के दिन, दिन के घंटे, फिर मिनट, और सेकंड! ऐसे ये सभी मिलकर होती हैं अपनी जिंदगी, अपना जीवन। ये सब समय ही तो है। अब हम यह देखें कि इसमें से कितना समय ‘अर्थपूर्ण’ उपयोगी व्यतीत होता है और कितना अनुपयोगी रहता है। दिनभर में बहुत सारा समय वास्तव में अर्थहीन रहता है। समय का ‘यूज’ और उपयोग कम अर्थात ‘लेस’ यह तो समझ में आया ही होगा!
२. बुद्धिमत्ता : ईश्वर ने हमें केवल जीवन ही नहीं, वरन ‘बुद्धिमत्ता’ का इतना विशाल भंडार उपलब्ध कराया है कि उसकी कोई कल्पना नहीं की जा सकती! कुछ विशेषज्ञों के अनुसार चालीस प्रकार की ‘बुद्धिमत्ता’ तो निश्चित उपलब्ध रहती है। परन्तु प्रो. हावर्ड गार्डनर के अनुसार आठ प्रकार की बुद्धिमत्ता तो निश्चित होती ही है। दिमाग एक ईश्वर द्वारा प्रदत्त अद्भुत तोहफा है। परन्तु वह हम कितना उपयोग में लेते हैं? ईश्वर ने तो पूरा ही प्रदत्त किया है, कुछ भी अंश स्वयं के पास नहीं रखा, फिर हम उसका पर्याप्त उपयोग करने में कंजूसी क्यों करते हैं? अर्थात ‘बुद्धिमत्ता’ तो ‘यूज’ ‘लेस’ ही न?
३. ज्ञानेंद्री और कर्मकेंद्री : आंख, कान, नाक, वाणी इनका भी पूर्ण उपयोग कहां होता है? कहते हैं ना ‘अपना हाथ जगन्नाथ’! दुनिया में हाथ, पैर, आँखें, कान, जीभ आदि से विहीन कई लोग हैं। ये शारीरिक न्यूनता होते हुए भी उस पर विजय प्राप्त करने वाले लोग भी हम देखते हैं। इन अपंग लोगों की अपेक्षा हम कितने सुखी हैं, कितने भाग्यवान हैं। ऐसे हाथ, पैर, उंगलियां…. आदि से विहीन लोग एकत्र हुए और ‘एबिलिटीज’ संस्था स्थापित की। (डिसेबल्ड होते हुए भी) फिर उन्होंने हाथ न पसारे कभी कहकर अनेक प्रकार के कार्य करना प्रारंभ किया। ये अपंग लोग एवरेस्ट शिखर फतेह करते हैं, पैर न होते हुए नृत्य जैसी कला प्रस्तुत करते हैं, हाथ नहीं होने पर भी मुंह में ब्रश पकड़कर चित्र बनाते हैं, और जिन्हें सुगठित शरीर मिला है, सर्व प्रकार से स्वस्थ हैं, ऐसे लोग समय का पूर्ण उपयोग नहीं करते। यही यूज लेस कहलाते हैं।
४. शैक्षणिक साधन : कापी, पुस्तकें, पेन, पेंसिल, लैपटॉप आदि ऐसे अनेक साधन पालक अपने पाल्य के लिए उपलब्ध कराते हैं, इस हेतु पैसे खर्च करते हैं! इनकी कीमत दिखाई देती है, समझ में आती है। परन्तु असंख्य लोगों के परिश्रम, समय, बुद्धि इस हेतु खर्च हुई है तभी ये साधन उपलब्ध हुए हैं। इन साधनों का यदि उपयोग न हुआ तो परिश्रम, समय, बुद्धि ये सब व्यर्थ हुआ न! पेन, पेंसिल आदि का भी हम सर्वोत्तम उपयोग करते रहते हैं क्या? बिल्कुल न उपयोग करने का अर्थ कुशलता पूर्वक उपयोग नहीं।
घिसेगा चंदन इसलिए, घिसना बन्द किया
चन्दन ने कहा, मेरा शेष जीवन व्यर्थ गया।
५. शक्ति (ऊर्जा) : शरीर एक सुंदर साधन है। हमारे शरीर में शक्ति, ऊर्जा समाहित है। परन्तु इस ऊर्जा का पर्याप्त उपयोग कम होता है, या जहां आवश्यक नहीं वहां हो जाता है। अर्थात ऊर्जा का अपव्यय होता है। जीवन के लिए हानिकारक ऐसी वस्तुओं को देखना, सुनना, आदि में शक्ति का दुरुपयोग ही दिनभर में कई बार होता है। दिशाहीन, निरुद्येश्य भटकना आदि में समय ही नहीं अपितु ऊर्जा भी नष्ट होती है। और जिसे करना आवश्यक है उस कार्य हेतु ऊर्जा शेष न रहने से कार्य नहीं हो पाता, शरीर निर्बल हो जाता है। ऐसा अनुभव तो आता ही होगा!
अब समय, बुद्धि, शक्ति इन साधनों का पूर्ण उपयोग करें!
जन्म लेने की फल प्राप्ति हेतु, कुछ करें सफल,
ना ऐसा करें निर्फल, हम होंगे भूमि भार।
हम भूमि का भार न बने इसीलिए उपलब्ध साधनों का उपयोग करें।
(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)
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