पाती बिटिया के नाम-23 (खामोशियों की मौत गंवारा नहीं है)

 – डॉ विकास दवे

खामोशियों की मौत गंवारा नहीं है मुझे

शीशा हूँ टूट कर भी खनक छोड़ जाऊँगा

प्रिय बिटिया!

हिन्दू संस्कृति प्रारम्भ से ही पुनर्जन्म में विश्वास करती है। हमारे वेद, पुराण, गीता जैसे ग्रन्थ भी इसकी प्रामाणिकता सिद्ध करते हैं। जन्म, मृत्यु और पुर्नजन्म के इस चक्र को सही सिद्ध किया है अनेक घटनाओं ने। तुम सोच रही होंगी जब सम्पूर्ण देश कारगिल और उसके शहीदों को श्रद्धांजली समर्पित कर रहा है तब भला पुर्नजन्म और मरने के बाद के जीवन की बातें यहाँ क्यों कर रहा हूँ? कुछ वर्षों पूर्व सेना के जीवन सम्बन्धी एक पुस्तक का आश्चर्यजनक प्रसंग पढ़ा। भारतीय सेना के एक अधिकारी राष्ट्रसेवा करते-करते शहीद हो गए। आमतौर पर जैसा होता है उनका सामान अगले दिन उनके घर पहुँचाना तय कर लिया गया। उस रात्रि में कई बड़े अधिकारियों को एक साथ यह अहसास हुआ कि वह शहीद उनसे बार-बार निवेदन कर रहा था कृपया मुझे सेना से सेवा मुक्त मत करिए। मैं अभी और देश सेवा की इच्छा रखता हूँ। मुझे जो भी कार्य दिया जाएगा उसे मैं पूर्व की तरह पूरा करता रहूँगा।

दूसरे दिन जब सभी अधिकारियों ने अपने एक जैसे अनुभव आपस में बताए तो सभी आश्चर्य में पड़ गए। अन्तत: प्रथम बार यह प्रयोग किया गया कि मरने के बाद भी उस व्यक्ति को सेवारत माना गया। प्रतिमाह उनका वेतन निकाला जाता जो उनके घर भेज दिया जाता। एक कक्ष उनके सामान हेतु रखा गया। समय-समय पर उनके नाम से आदेश भी निकाले जाते और आश्चर्य कि आदेशों का पालन भी होता था। अपनी सेवा पूरी कर सेवा निवृत्ति की आयु में ही उन्हें सेवा मुक्त किया गया। पूरी यूनिट ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से उस अदृश्य सत्ता को विदा किया।

सेना में इस प्रकार के कई आश्चर्यजनक अनुभवों का खजाना भरा पड़ा है। कारगिल में अभी हुए संघर्ष की शुरुआत ही जिस समय हुई थी तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मा. श्रीकान्त जी जोशी जम्मू तथा कश्मीर के उन क्षेत्रों के भ्रमण पर गए थे। वहाँ से लौटकर उन्होंने अपने यात्रा प्रसंग सबकी जानकारी के लिए प्रकाशित किए थे। उन प्रसंगों में एक बात का उल्लेख उन्होंने भी किया कि जिन स्थानों पर सेना का कोई जवान शहीद हो जाता है वहां उसकी स्मृति में एक अस्थायी छोटा सा मंदिर बना दिया जाता है। वहां से सभी जवान प्रणाम कर ही लड़ाई पर जाते हैं।

जब मा. जोशीजी ने उनसे इस हेतु पुछताछ की तो उन सैनिकों ने बताया कि ये शहीद सैनिक मरणोपरांत भी समय-समय पर हमारा मार्गदर्शन और सहायता करते हैं। कई बार तो जागरण के कारण गश्त के समय झपकी हावी होने लगती है तब अनायास कोई उन्हें गाल पर एक जोरदार चपत लगाकर झिंझोड़ देता है और सतर्क कर देता है। आस-पास कोई न हो और सुनसान वातावरण में ऐसे अनुभव उन मृत सैनिकों के प्रति भय कभी पैदा नहीं करता बल्कि श्रद्धा ही उत्पन्न करता है।

ऐसी घटनाओं से अपना भी मन ऐसे शहीदों के प्रति श्रद्धा से भर उठता है। जिन्होंने जीते जी तो देश सेवा की ही मरने के बाद भी राष्ट्रदेव की सेवा और रक्षा के अपने दायित्व से दूर नहीं हुए।

बेटे! हम पुनर्जन्म की मानें न मानें, मरने के बाद आत्मा के अस्तित्व पर विश्वास रखें न रखें लेकिन क्या ऐसे प्रसंगों से हम यह प्रेरणा नहीं ले सकते कि हम जीते-जी अपने देश की सेवा के अवसर खोजें और ऐसे हर क्षण का उपयोग केवल और केवल राष्ट्रहित में हो?

अन्त में कारगिल में शहीद हुए सभी जवानों को हम सबकी विनम्र श्रद्धांजली इन शब्दों में –

‘यूं तो लोग जीने के लिए जिया करते हैं

लाभ जीवन का नहीं, फिर भी लिया करते हैं।

मृत्यु से पहले भी मरते हैं हजारों,

लेकिन जिन्दगी उनकी है जो मरके भी जिया करते हैं।।

-तुम्हारे पापा

(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)

और पढ़ें : पाती बिटिया के नाम-22 (देवभाषा संस्कृत)

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